अद्भुत दृश्य ऊपरी मण्डलों में नजर आया करते है, लीलाओं का वर्णन

एक अद्भुत दृश्य ऊपरी मण्डलों में नित्य ही हुआ करता है उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है सभी सीन तो बदलते रहते हैं लेकिन साधक को सुरत शब्द के अभ्यास में जब कि सुरत (आत्मा) आसमान में चढ़ती है, हमेशा ही नजर आया करता है।

ऊपरी मण्डलों में अद्भुत दृश्य

वह क्या है? नीले, पीले, सूर्ख, सब्ज, सफेद रंग के सूक्ष्म बिन्दु जिस तरह बालुका के कण होते हैं बिजली के समान दमकते हुए झिलमिल-झिलमिल प्रकाश करते हुए नजर आते हैं। पुष्यों के हार व पुष्प आसमान से बरसते हुए नजर आते हैं यह घटना अक्सर ही होती रहती है।

विविध प्रकार की मूर्ति विविध प्रकार के पुष्पों से सजी हुई कि जिसके किरीट मुकुट मण्डल पुष्यों के ही बने हुए होते हैं आसमान में झलका करती है और अपनी मधुर छवि से साधक के मन को आकृष्ट किया करती है। कभी-कभी आसमान में कतार के कतार सूर्य उगे हुये अद्भुत दृश्य नजर आते हैं।

विशेष तन्मयता हो जाने पर सूरज की फर्श भी जमीन पर बिछी हुई नजर आती है। कभी-कभी सुन्दर बगीचे भी नजर आते हैं जिसमें वृक्षों की डाल साख-साख में जिस तरह से अंगूर के गुच्छे लटकते हैं उसी तरह से सूरज चांद सितारों के गुच्छे लटकते हुये अद्भुत दृश्य नजर आते हैं।

सर्वेश्वर भगवान श्री के अद्भुत दृश्य

 अद्भुत दृश्य
अद्भुत दृश्य

दरअसल बात तो यह है कि बहुत अर्से से कितने युग और कितने एक कल्प बीत गये कि यह जीव परम पुरुष परमात्मा से बिछुड़ कर इस काल के देश में जब से आया तब से असह दुःख ही उठाते बीते। किन्तु जब सन्त सतगुरू की दया हुई,

तब शाहंशाह बन कर अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के स्वामी नि: अक्षारातीत स्वरूप अनामी महाप्रभु के धाम की यात्रा किया तब सारे दुःख काफूर हो गये। उन करुणामय प्रभु ने अपनी योग माया को इस जीव के स्वागत के लिए भेजा जो कि इस प्रकार के अनहद को बजाती है।

छ: राग छत्तीस रागनी को सुनाती है। विविध के अद्भुत दृश्य खेल तमाशों को दिखलाती हुई जीव रूपी शाहंशाह को प्रसन्न करती हुई सर्वेश्वर भगवान श्री राम पुरुषोत्तम पुरूष के सन्मुख ले जाती है जो कि आनन्द के समुद्र हैं। इन्हीं को अनामी महाप्रभु कहते हैं।

यही जन्म और मृत्यु से रहित हैं। यही अविनाशी महाप्रभु वर्णन करने योग्य हैं। जीवात्मा इन्हीं की सच्ची अंश है इन्हीं के लोक से काल के देश में आयी है। इस अपने सच्चे प्रियतम के पास पहुँचकर जन्म मृत्यु के बन्धन से सर्वदा के लिये मुक्त हो जाती है। निर्वाणानन्द से पूर्ण हो जाती है।

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