छोटा बच्चा जब संसार में बड़ा होता है तो जीवन के असली लक्ष्य से दूर कैसे?

महानुभाव जब छोटा बच्चा बड़ा होता है और माँ का प्यार मिलता है, परिवार से, संसार से, हिलता मिलता-जुलता है और इस संसारी वस्तुओं में कैसे लीन होता है? कैसे अपने जीवन के असली लक्ष्य को भूल जाता है? सत्संग के माध्यम से महापुरुष सब कुछ बतलाते हैं। इस सत्संग पोस्ट के माध्यम से जानेंगे कि जब छोटा बच्चा संसार में बड़ा होता है अपने असली रास्ते से कैसे भटक जाता है? चलिए जानते हैं महात्माओं के अनमोल वचन;

छोटा बच्चा
छोटा बच्चा

जब तुम पैदा नहीं हुये थे, उस समय तुम कहाँ थे? क्या तुम बता सकते हो, रूह तुम्हारी इस मनुष्य रूपी जिस्म में कहाँ रहती है? क्या डाक्टरों के पास कोई ऐसा एक्सरे है जिसमें जीवात्मा का अक्स दिखाई दे सके? इतनी बड़ी शक्ति होते हुए भी डाक्टरों ने इतनी उन्नति की, परन्तु यह नहीं बताया कि जीवात्मा क्या है?

दो शब्द छोटा बच्चा: Chote Bachha आमतौर पर नवजात शिशु से लेकर 5 साल तक की Age तक समझा जाता है। इस उम्र के बच्चों को अपनी जगह से बाहर निकलकर Duniya का Gyan प्राप्त करना शुरू होता है। इस उम्र के बच्चों की देखभाल और पोषण बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इस age में उन्हें खेल-खिलौने, फिरंगी विषयों के अलावा संगीत, गाना, Kahani सुनाना आदि भी सिखाया जाता है ताकि उनकी व्यक्तित्व Vikas में सहायता मिल सके। इस उम्र के बच्चों के लिए Mata Pita द्वारा सम्बंधों का विकास भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।

जब छोटा बच्चा पैदा होता है

जब बच्चा पैदा होता है उस समय बच्चा किसी को पहचानता नहीं है। माँ की गोद में रहता हुआ छोटा बच्चा अपनी माँ को नासिका इन्द्रिय द्वारा सूंघ कर पहिचान लेते है। आंखो से देखकर बच्चा बार-बार कोशिश करता है कि कौन है? धीरे-धीरे बच्चा का जब महावारा पड़ जाता है और एक वर्ष तक बच्चा नासिका इन्द्रिय से सूंघ कर अपनी माँ की गोद में रहता है, हजारों स्त्रियों में भी बच्चा अपनी माँ को नासिका इन्द्रिय द्वारा पहिचान लेता है।

एक साल के ऊपर बच्चा अपनी माँ की बोली पहचानने लगता है। दो साल पर छोटा बच्चा जोर देकर माँ की बोली सुनकर बोलने की इच्छा करता है और सदा माँ चाहती है कि बच्चा बोले। माता की जब बच्चा कुछ बोली सीख लेता है तब माँ अपने परिवार के लोगों का परिचय कराती है जैसे मामा, वाची, भाई बन्धुओं का।

बच्चा उनकी ओर बार-बार देखता है और उनकी शरणागति का ब्रती बनता जाता है। कुछ समय बाद बच्चा कुल कुटुम्बियों को अपना मानने लगता है। बचपन में रोते-रोते बिताया। माँ ने उन चीजों के नाम सिखाये जो शरीर रक्षा के नाम उन पदार्थों के थे जो नाशवान थे। जब पूर्ण नाम बच्चे ने जाना और उनको देखने लगा तो बच्चे में लोलुपता की जागृति होने लगी।

केवल अक्षरों शब्दों का बोध

छोटा बच्चा उनके पाने का प्रयास करता है। प्रवृत्ति बच्चे की बन चुकी। न पाने पर अत्यन्त दुखी होकर रोता है और उन चीजों को पाने का प्रयास करता है। अपनी आँखों से जो नई वस्तुयें देखता है उनको लेने की कोशिश करता है, माँ और पिता से याचना करता है।

पिता माता ममता के वशीभूत होकर बच्चे को नाना प्रकार की वस्तुयें प्यार में खरीद देते हैं। उन्ही वस्तुओं के पाने पर बच्चा अपने हृदय में उन्ही वस्तुओं तथा अनेक प्रकार की चमकीली वस्तुओं का स्थान बना लेता है। कुछ माता पिता सिनेमा की अनेक वस्तुए दिखाकर बच्चों को और भी चंचल कर देते हैं।

छोटा बच्चा जब अनेक प्रकार की चंचलता में आ गया तो माता और पिता के सन्मुख होकर उत्तर प्रति उत्तर दे देता है। माता प्यार से बच्चे को समझा नहीं सकती। हर समय बच्चा माता पिता की बातों का उलंघन किया करता है। अन्त में बच्चा हर प्रकार के ज्ञान से शून्य रह जाता है, केवल अक्षरों शब्दों का बोध तथा वस्तुओं के नाम सीख लेता है और उन्हीं को बार-बार याद करता है।

असली जीवन के लक्ष्य से दूर

बड़े होने पर बच्चे उन्हीं वस्तुओं को प्रयोग में लाते हैं। फिर उन्हीं वस्तुओं को व्यवहार में लेकर मान सम्मान को लेते हुए अपनी बहुत बड़ी इज्जत समझते है जीवन का आधार बताते हैं, तथा यदि स्त्री सम्बन्ध हुआ तो दुःख में प्राणी फंस गया और स्त्री बच्चों की ममता में फंसकर अपने असली जीवन के लक्ष्य से दूर होकर और अन्त में जीवन के मूल धन को भी न समझ पाया।

अन्त अवस्था दुःख से व्यतीत होनी शुरू हो गई। धन नहीं बच्चे अधिक हैं बीमार रहते हैं स्त्री खुश नहीं क्योंकि उसे अपनी जरूरत का सामान चाहिये। ममता उसे बहुत सताती है। इस कारण अनेक दुःख द्वन्द्वों में फंस गया।

इस प्रकार से इस संसार में एक छोटा बच्चा भी बड़े होने पर सब कुछ भूल जाता है। अपनी असली निज घर को भूलकर, जीवन की असली लक्ष्य को भूलकर इस संसार की रचनाओं में-में भ्रमित हो जाता है।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दी गई कंटेंट के माध्यम से आपने जाना कि जब बच्चा जन्म लेता है, छोटा बच्चा क्या-क्या अपने जीवन बालपन में करता है? और आगे जाकर वह जीवन के असली रहस्य या, अपने लक्ष्य को भूल जाते हैं। निज घर को भूल जाते हैं और संसार में विचरण करने लगते हैं। आशा है ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा। मालिक की दया सबको प्राप्त हो जय गुरुदेव।

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