भविष्य में क्या होगा और कैसे महान कष्ट उठाने पड़ेगे। Bavishy Me Kya Hogan महात्माओं के विचार

Bavishy Me Kya Hogan? महात्मा वर्तमान और भविष्य तीनों कालों को जानते हैं वह अपनी दिव्य दृष्टि से संसार और परमेश्वर को देखते हैं और संवाद करते हैं।महापुरुषों ने कहा है कि भविष्य में किए हुए बुरे कर्मों का परिणाम क्या होगा? कैसे महान कष्ट उठाने पड़ेंगे ।महात्माओं के कुछ Bavishy Me Kya Hogan महत्त्वपूर्ण विचार इस सत्संग आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे तो चलिए महात्माओं के विचार जानते हैं।

Bavishy Me Kya Hogan

मन की भी दशा बदल जाती (Man Ki Dasha)

प्रत्येक इन्द्रिय का रस भारी है। मन सर्व अंग करके इन रसो का प्रेमी और वशीभूत हो गया है। उसका ध्यान इन द्वारों के द्वारा बाहरी पदार्थो और अनेक वस्तुओं में अत्यन्त दृढ़ता के साथ जम गया है।

यहाँ तक कि इन पदार्थो और वस्तुओं की दशा बदलने में मन की भी दशा बदल जाती है। उस इच्छा को यदि कोई हटाना चाहे तो वे नहीं हटती अपितु बल और प्रभाव डालने पर मन को अत्यन्त कष्ट होता है।

मन के बाँधने के लिये (Man Ko Badhne Ke Liye)

ये धारायें जो इन्द्रिय द्वारों से निकल कर अनेक जीवों और वस्तुओं में बंध गई है, मन के बाँधने के लिये मानों बेड़ियाँ बन गई है स्वभावतः ऐसी कठोर और दृढ़ हो गयी है कि उनको हटाने या तोड़ने में मन को अधिक कष्ट होता है।

यदि स्वाभाविक रूप से कोई बन्धन एकाएक ढीला होता है या टूट जाता है तो मन अत्यन्त चिन्तित और उदास हो जाता है रोता है, चिल्लाता है और झींकता है।

संसारियों की समझ (Sansariyo Ki Samajh)

संसारियों की समझ ऐसी ओछी होती है कि जिस किसी के ऐसे बन्धन अधिक और बलवान होते हैं, उसी को वे संसार में भाग्यवान सुखी समझते है। वह व्यक्ति स्वयं भी अपने बन्धन पर अपने को बड़ा भाग्यवान समझता है और उन्हें बहुत प्रसन्नता के साथ झेलता है।

हृदय से उनको स्वीकार करके दिन प्रतिदिन उनकी अधीनता चाहता है। यद्यपि प्रतिदिन धक्का और झटका खाता है फिर भी उसी नशे में मतवाला और बेसुध रहता है कि कुछ भी भय और चेतना नहीं रखता। कुछ भी सोच विचार नहीं करता कि मैं किस विपत्ति में फंस गया हूँ भविष्य में क्या होगा और कैसे महान कष्ट उठाने पड़ेगे।

बुरी गति से अवगत (Bad Gati Se)

जब कभी ऐसे जीवों को कोई परमार्थ के बचन सुनाता है, उनको बुरी गति से अवगत कराता तथा उनके वर्तमान रहन-सहन से भविष्य में उनसे प्राप्त होने वाली दशा का वर्णन करते है तो वे आश्चर्य करके उसके बचनों को ध्यान पूर्वक नहीं सुनते अपितु वह बचन उनके बहुत बुरेऔर कठोर प्रतीत होते हैं।

कारण यह होता है कि उनमें उनके भोगों प्रिय सम्बन्धियों और पदार्थो के नाशमानता तथा उनसे प्रीति और बन्धन स्थापित रखने की जो-जो हानि होती है उनका वर्णन रहता है।

जीवों के नाना प्रकार के दुख (Jivo Ko Dukh)

यद्यपि ये लोग रोग शोक, मरी और मृत्यु इत्यादि के दृश्य इस संसार में प्रतिदिन अपनी आँखों से देखते रहते हैं और जीवों के नाना प्रकार के दुखों, कष्ट और पीड़ाओं से व्यथित भी देखते रहते है किन्तु फिर भी उनके हृदय पर इन बातों का बहुत कम प्रभाव होता है। वे कभी इस बात का सोच विचार नहीं करते कि एक दिन इस शरीर को संसार परिवार कुटुम्ब घर बार, जगह सामान धन आदि सभी को छोड़ कर अवश्य जाना पड़ेगा।

उस समय इस मन पर कितना कठोर आघात लगेगा, भविष्य में उन्हें कहाँ जाना होगा और उनकी क्या दशा होगी अर्थात क्या सुख अथवा दुख प्राप्त होगा। इससे इस जीवन में ही उसका कुछ प्रबन्ध में करना चाहिए।

यत्न में सफलता (Pryas Me Saflta)

जो जीव संसार में उत्पन्न होते हैं प्रारम्भ में सब भोले और अज्ञान होते हैं परन्तु संगत करके उनकी अवस्था और दशा बदलती जाती है। तात्पर्य यह है कि जैसी उन्हें संगत मिलती है और जिन दशा का वर्णन सुनते हैं जिन वस्तुओं में लोगों के भाव और प्रलोभन देखते हैं,

उसी के अनुसार उनकी भी इच्छायें होने लगती है उसकी प्राप्ति के लिये यत्न भी होने लगते है। यदि यत्न में सफलता प्राप्त हो गई तो मन प्रसन्न हो जाता है अन्यथा दुखी हो जाता है।

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गलत मार्ग धारण करके भारी भूल (Galat Marg)

इधर परमार्थ की यह दशा हो गयी कि मन बुद्धि से रचे हुए अथवा ईश्वर देवता महात्मा के जारी किए हुए अनेक मत इस संसार में फैल गये हैं। हर एक अपने-अपने विवार और अनुभव, अपनी इच्छा और पहुँच के अनुसारअपनी रीति से वर्णन करता है कि अमुक-अमुक कार्य करने से भविष्य में सुख की प्राप्ति होगी ।

अथवा किसी देवता या ईश्वर या महात्मा की भक्ति करने से अमुक-अमुक लाभ होंगे। अब बेचारे जीव चिन्तित होते हैं कि किसका कहना मानें और किसका न मानें। अतएव सबके सब अपने जाति और वृद्धों के चाल ढाल और कर्म के अनुसार ही थोड़ा बहुत कर्म उपयोग में लाने लगते है।

उनके हृदय में किसी पूरे सच्चे ज्ञान बताने वाले को ढूँढने अथवा पाने की इच्छा नहीं रह जाती। यदि किसी ने अपनी बुद्धि और विद्या के अनुसार उनको ढूढ़ा भी तो विद्वानों के ग्रन्थों और पुस्तकों को पढ़कर गलत मार्ग धारण करके भारी भूल में पड़ जाते हैं और वहाँ से उनका निकलना अत्यन्त कठिन हो जाता है।

सच्चे स्वामी और परम प्रभु का पता (Parmatma Ka Pata)

तात्पर्य यह है कि सच्चे स्वामी और परम प्रभु का पता और भेद किसी को न मिल सका न सच्चा और सीधा मार्ग अपने निज घर में जाने का जिससे आवागमन और देह धारण करके सुख-दुख भोगने से छुटकारा हो, मालूम हो सका फिर सब जीव मन और बुद्धि की उपजाई हुई चालों में जिससे भूल और भ्रम नहीं मिट सकते न सुख दुख के जाल से छुटकारा सम्भव हो, फंस गये।

सच बात तो यह है कि नाना प्रकार के देवता ब्रह्मा विष्णु महादेव, ऋषि, मुनि आदि आप ही सच्चे और परम प्रभु सत्त पुरूष के भेद से अनिभिज्ञ हैं। इस कारण से जो बाणी बचन और धार्मिक पुस्तक बनाई उनमें परम प्रभु का वह भेद और उनके धाम में पहुँचने की युक्ति उन्होंने उसके प्राप्ति की प्राणायाम और साधनों के द्वारा वर्णन किया है।

वे ऐसे कठिन और घातक हैं और उनके नियम ऐसे कठोर वर्णन किये गये है कि उनका प्रयोग गृहस्थ और विरक्त दोनों से न हो सका। इस प्रकार सबके सब शून्य रह गये अर्थातसच्ची मुक्ति के मार्ग पर कोई न चल सका। केवल कुछ लोग थोड़ा बहुत अभ्यास करके और कुछ सिद्धि प्राप्त करके मार्ग में ही तृप्त हो गये आगे न बढ़ सके।

Nishkarsh

महानुभाव आपने Bavishy Me Kya Hogan? महापुरुषों के विचार जाने की, मनुष्य की बुरी कर्म और उसका रिजल्ट क्या होता है? आशा है आपको ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा और अधिक पढ़ने के लिए कुछ लिंक दिए गए उन पर क्लिक करें, जय गुरुदेव।

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