सत्य पुरूष (Satya Purush) की महिमा पर अनमोल वचन

सत्पुरुष (Satpurush) की महिमा अकथनीय हैं। उस मालिक की महिमा का बखान कोई नहीं कर सकता है जब साधक गुरु की कृपा लेकर रूहानी मंडलों में सफर करता है तब वह स्वयं अनुभव करता है कि वहाँ की सत्य पुरूष (Satya Purush) महिमा क्या है? यह सब गुरु की कृपा से होता है। सत्पुरुष की महिमा पर कुछ अनमोल वचन इस सत्संग आर्टिकल के माध्यम से जानेंगे। जो महात्माओं ने थोड़ा संकेत में बताया है चलिए जानते हैं। जय गुरुदेव,

सत्य पुरूष (Satya Purush) की महिमा पर अनमोल वचन
सत्य पुरूष (Satya Purush) की महिमा पर अनमोल वचन

Satya Purush की महिमा

सत्य पुरूष (Satya Purush) से तमाम धनी और आत्माएँ पैदा हैं। करोड़ों सूर्य चन्द्र इस सतपुरुष (Satpurush) के एक-एक रोम-रोम में प्रकाश करते हैं। यही सर्वशक्तिमान पुरूष हैं। इसी पुरूष ने अपने सत्य संकल्प से बेशुमार पारब्रह्म तथा अनगिनत ईश्वर पैदा किये है। यही अथाह पुरूष हैं।

इस पुरुष की हाजिरी सोह पुरूष दिये हैं। सोहं पुरुष को सत्तपुरूष (Satya Purush) ने बहुत बड़ी प्रधानता दे रखी है। सर्वशक्तिमान पुरूष की एक बार मेहर दृष्टि हो जाने पर जुगजुग का बोझ आत्माओं से उतर जाता है महान खुशी होती है। यह मालुम होता है कि बहुत दिनों से इस देश से निकलने के बाद वापस घर में आये हो और स्पष्ट होता है कि यही सच्चा घर है।

इस महान प्रकाशवान स्वरूप की मूर्ति विचित्र आदमी या बड़े से बड़े पुरूष की प्रतीत होती है। एक बहुत अद्भुत सुन्दरी के साथ महान सिंहासन पर विराजमान हैं। पूर्ण पुरूष में से महान सुरीली राग निकल रही है। उसका लघू प्रमाण बीन जैसी आवाज है पर वास्तव में बीन है नहीं।

मालिक (Satya Purush) की महिमा अकथनीय

इस मालिक की महिमा कथन में नहीं आ सकती है। अकथनीय है। बडे-बडे धनी सहसदल कवल में ईश्वर माने जाते हैं। (नाम निरंजन) और त्रिकुटी में ब्रह्म (नाम ऑ) दसवां द्वारा में रंकार पुरूष (नाम-रारंग) इनके कितने लोक हैं और कितने ब्रह्मा विष्णु शिव देवी देवता और इनसे भी बड़ी पदवी के हैं।

यह सब खुद सत्पुरूष (Satpurush) का ध्यान करते हैं। सत्यदेश में सदा आनन्द बरसता है। सर्वदा नई-नई लीलायें एक-एक क्षण होती रहती हैं। उनमें मिला और उनसे अलग हो कर फिर आरती करना यह तो हर क्षण पर सर्वदा होता रहता है।

सुरत को सत्तपुरूष (Satpurush) के दरबार में पहुँच कर स्वतः इतनी ताकत प्राप्त होती है और सोहं पुरूष की दया से यह बल प्राप्त होता जाता है। सुरत सतपुरुष की आज्ञानुसार अलख लोक और अगम लोक तथा उससे आगे अनामी धाम में पहुँच कर अनामी पुरूष का दर्शन करती है कितनी खुशी होती है अनुमान किया जा सकता है।

सत्तलोक अजीब जलवा

सत्तपूरूष (Satya Purush) , अलख, अगम और अनामी धाम में स्वाधीनता का बंधन नहीं है। सुरतें इन चारों विशाल परम धामों में खुली विचरती रहती हैं। अमृत के समुद्र जगह-जगह भरे हैं। हीरों के चचूतरे हैं। वृक्षों पर विविध प्रकार का क्रीडा नृत्य होता रहता है, जो वहा के नृत्य है उनका अनुमान लगाना सुरत के लिये सदा असम्भव है।

करोडों युगों रहने पर भी उस का अन्दाजा नहीं लगता वहाँ के एक वृक्ष करोड़ों कोस की बुलन्दी रखते हैं जिनका गिनना सुरत के बाहर है इसी तरह एक वृक्ष की महिमा नहीं हो सकती तो फिर कितने वृक्ष हैं उनका क्या हिसाब कहा जावे। सत्तलोक अजीब जलवा है। साधक गुरु कृपा से सब पा सकता है। बिना कृपा के पाना कठिन है। गुरु के पास जाओ।

सत्यता से बहुत दूर हो चुके

दुनियाँ के वह लोग जो तीर्थ करने जाते हैं वह परमात्मा की सत्यता से बहुत दूर हो चुके हैं। उनके लिए एक साथ कितने भगवान आकर जन्म लें और स्पष्ट शब्दों में आकर कहें कि हम स्वयं भगवान हैं तब भी मानने को कदापि तैयार नहीं। क्योंकि उन्हें पहिचान नहीं है और स्वार्थ में रत हैं। इस कारण लोग नहीं समझ पायेंगे कि भगवान का क्या नाम क्या काम है।

मनुष्य को भगवान की तरफ से स्वाधीनता प्राप्त हुई है कि वह मनुष्य के अवतार में मुझे आकर पहिचान ले। स्वाट निता का अर्थ अनुचित कर दिया गया है जिसके कारण हर मनुष्य यह समझ चुका है कि हमारा कल्याण ही नहीं हो सकता है और स्वर्ग नर्क यहीं पर हैं। फिर मनुष्य अवतार मनुष्यों को भोग भोगने के लिये प्राप्त हुआ। क्या मालुम फिर मिला न मिला। देखा जायेगा।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने सत्य पुरूष (Satya Purush) की महिमा पर अनमोल वचन पढ़ें। आशा है ऊपर दिया गया कंटेंट सत्पुरुष (Satpurush) की महिमा आपको जरूर अच्छा लगा होगा। मालिक की दया सबको प्राप्त हो, जय गुरुदेव।

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