यमलोक के दक्षिण द्वार तथा नरकों का वर्णन विस्तार पूर्वक

पापी जीव दक्षिण द्वार में होकर किस प्रकार यमपुरी में प्रवेश होते हैं यह हम सुनना चाहते हैं। आप विस्तार पूर्वक बतलाइये। से सुनो! दक्षिण द्वार अत्यन्त घोर और महा भंयकर है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वहाँ सदा हिंसक जीव जन्तुओं गीदड़ियों के शब्द होते रहते हैं। वहाँ दूसरों का पहुँचना असम्भव है। उसे देखते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

भूत पिशाच और राक्षसों से यह द्वार सदा घिराा रहता है। पापी जीव दूर से उस द्वार को देखकर त्रास से मुर्छित हो जाते हैं और विलाप प्रलाप करने लगते हैं। तब यमदूत उन्हें सांकलों से बाँध कर घसीटते और निर्भय होकर डण्डों से पीटते हैं साथ ही डांटते फटकारते रहते हैं। होश आने पर वे खून लथपथ होकर पग-पग पर लड़खड़ाते हुए दक्षिण द्वार को जाते हैं।

यमलोक के दक्षिण मार्ग

मार्ग में कहीं-कहीं तीखे काटे होते हैं और कहीं-कहीं छूरे की धार के समान तीक्ष्ण पत्थरों के टुकड़े बिछे होते हैं। कहीं-कहीं कीचड़ ही कीचड़ भरा रहता है और कहीं ऐसे गडढे होते हैं जिनको पार करना असम्भव-सा होता है कहीं-कहीं लोहे की सूई के समान कीलें गड़ी होती हैं।

कहीं-कहीं तपे हुए अंगारे अग्नि के बिछे होते हैं। पापी जीवों को उसी मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है। कहीं ढेले कहीं तपाई हुई बालू और तीखे कांटे होते हैं, कहीं तपी हुई पत्थर शिला होती है। कही दूषित जल और कहीं कण्डे की आग से वह मार्ग भरा रहता है।

कहीं सिंह भेड़िये बाघ डांस और भयानक कीड़े डेरा डाले रहते हैं। कहीं बड़ी-बड़ी जोक और अजगर पड़े रहते हैं। भंयकर मक्खियाँ विषैले सांप और खूखार बलिष्ट हाथी चीरा फाड़ा करते हैं। खुरों से खोदने वाले मार्ग को खोदते हुए तीखे सींघों वाले बड़े-बड़े सांड, भैसे और मतवाले चीते सबको कष्ट देते हैं।

यमलोक के दक्षिण द्वार
यमलोक के दक्षिण द्वार

भयानक डरावने और भीषण नरक दक्षिण द्वार

भयानक डरावने और भीषण रोगों से पीड़ित होकर जीव उस मार्ग से यात्रा करते हैं। कहीं धूल मिश्रित प्रचण्ड वायु चलती है जो पत्थरों की वर्षा करके निराश्रय जीवों को कष्ट पहुचाती रहती है। कहीं-कहीं बिजली गिरने से शरीर विदीर्ण हो जाता है। कहीं बड़े जोर से बाणों की वर्षा होती है जिससे सब अंग छिन्न-भिन्न हो जाते हैं।

कहीं-कहीं बिजली और बादल गड़गड़ाहट के साथ उल्कापात होते रहते हैं और प्रज्वलित अंगारों की वर्षा हुआ करती है जिससे जलते हुये पापी जीव आगे बढ़ते हैं। कभी-कभी धूल की वर्षा होने से सारा शरीर धूल से भर जाता है। धूल के जो कण होते हैं और जो कण शरीर में आकर लगते हैं वह बाणों की भांति शरीर में चुभते चले जाते हैं।

See also  Divya Drishti खुलने पर सब दिखाई देता है। दिव्य दृष्टि नहीं खुलती

ये बालुका के कण महा दुखदाई होते हैं मेघों के भंयकर गर्जन से जीवों को अति दुख होता है। बाण वर्षा से घायल हुये शरीर पर खारे जल की धारा गिराई जाती है और उनकी पीड़ा सहन करते हुये जीव आगे बढ़ते हैं। कहीं-कहीं अत्यन्त शीतल हवा चलने के कारण अधिक सर्दी पड़ती है तथा कहीं सूखी और कठोर जहरीली वायु का सामना करना पड़ता है।

इससे पापी जीवों के अंग से बिवाई फट जाती है। वे सूखने वै सिकुड़ने लगते हैं। ऐसे मार्ग पर न तो राह खर्च के लिए कुछ मिल पाता है और न कहीं कोई सहारा ही दिखाई देता है। इस मार्ग से पापी जीवों को यात्रा करनी पड़ती है। सब ओर निर्जन और उजाड देश दृष्टिगोचर होता है।

पापी जीव यमलोक

बड़े परिश्रम से पापी जीव यमलोक पहुँच पाते हैं। यमराज की आज्ञा पालन करने वाले दूत उन्हें बलपूर्वक ले जाते हैं। साथ में कोई मित्र भी नहीं होता है। जीव अपने कर्मो को सोचते हुये रोते रहते हैं। प्रेतों का उनका शरीर होता है। उनके। कंठ, ओट और तालू सूखे रहते हैं वे शरीर से अत्यन्त दुर्बल और भयभीत हो जाते हैं।

क्षुधाग्नि की ज्वाला से जलते रहते हैं। कोई सांकल में बंधे होते हैं। किसी को उतान सुलाकर यमदूत उनके दोनों पैर पकड कर घसीटते हैं और कोई नीचे मुँह करके घसीटते जाते हैं। उस समय उहें अत्यन्त दुख होता है उन्हें खाने को अन्न और पीने को पानी नहीं मिलता।

वे भूख प्यास से पीड़ित हो हाथ जोड़ दीन भाव से आंसू बहाते हुये और विलाप कर याचना करते और कहते हैं कि कुछ दीजिये इसी का रट लगाये रहते हैं। उनके सामने सुगन्धित पदार्थ दही, खीर, घी, भात, सुगन्ध युक्त दूध और शीतल जल प्रस्तुत होते हैं। उन्हें देखकर वह बारम्बार उनके लिए याचना करते है।

उस समय यमराज के दूत क्रोध से लाल आँखें करके उन्हें फटकारते हुये कठोर वाणी में कहते हैं ऐ पापियों, तुमने समय पर सन्तों ऋषि मुनियों, साधु और योगी जनों के उपदेश को क्यों नहीं सुना? और उनकी वाणी की मनमानी अवहेलना की है और निन्दा करने में और उन्हें दुख पहुँचाने में क्या-क्या उपाय किये हैं?

यमदूत की बात सुनकर

तुम परनारियों के? बिगाड़ने में चोरी मांस आदि व्यसनी वस्तुओं का सेवन करने में लगे रहे अर्थात साधु सन्त का तनिक स्वागत नहीं किया और शास्त्रों और सन्तों की वाणियों का मनमानी अर्थ निकाल कर घटाते रहे। ऐ पापियों होशियार। आवाज देते हुए उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं।

See also  जब सुरत ऊपर सत्य लोक जाती है तो मार्ग में क्या-क्या नजर आते हैं?

तुमको बहुत दफा मना किया। उस वक्त अपने मद में चूर थे, बल में चूर धन में चूर, जाति में चूर हुकुमत मद में चूर थे। होशियार। तलवार लेकर यमदूत उसकी ओर दौड़ते हैं। फिर कहते हैं उसी का फल तुम्हारे सामने प्रकट हुआ है। तुम्हारा धन आग में नहीं जला था,

जल में नहीं डूबा था, राजा ने नहीं छीना था, चोरों ने नहीं चुराया तब भी तुमने साधु सन्तों और अतिथि की सेवा से अपाना आत्म कल्याण क्यों नहीं किया। इसी धन की सेवा से तुम उन महात्माओं के पास जाते जिनकी दया से आत्म कल्याण होता। इस वक्त तुम्हें कहाँ से कोई प्राप्त हो। तुम सुगन्धित पदार्थो को पाने एवं खाने की मत करो। इच्छा यमदूत की बात सुनकर पापी जीव अन्न की अभिलाषा छोड़ देते हैं और भूख से चिल्लाते रहते हैं।

भयानक अस्त्रों से पीड़ा, भीषण नरक दक्षिण द्वार

सर्वदा यमदूत उन्हें भयानक अस्त्रों से पीड़ा देते रहते हैं। मुग्दर, लोह दण्ड, शक्ति तोमर, पहिश, गदा फरसा और बाणों से उनकी पीठ पर प्रहार किया करते हैं और सामने की ओर से सिंह तथा बाघ आदि उन्हें काट खाते हैं। इस प्रकार के पापी जीव न तो भीतर प्रवेश कर पाते हैं और न बाहर ही निकल पाते हैं।

अत्यन्त दुखी होकर रूदन किया करते हैं। इस प्रकार भांति-भांति की पीड़ा देकर यमदूत उन्हें भीतर प्रवेश कराते हैं और उस स्थान पर ले जाते हैं जहाँ सबका इन्साफ, न्याय होता है। न्याय करने वाले धर्मात्मा यमराज रहतें हैं। वहाँ पहुँचकर वे दूत यमराज को उन पापियों के आने की सूचना देते हैं और उनकी आज्ञा मिलने पर उन्हें उनके सामने उपस्थित करते हैं।

तब पापाचारी जीव भयानक यमराज और चित्रगुप्त को देखते हैं। यमराज उन पापियों को बड़े जोर से फटकारते हैं। चित्रगुप्त धर्मयुक्त वचनों से पापियों को समझाते हुये कहते हैं पापाचारी जीवों, तुमने दूसरों के धन का अपहरण चोरी एवं घूस और दूसरों को देकर किया है। अपने रूप एवं वीर्य के घमण्ड में आकर पराई स्त्रियों का सतीत्व नष्ट किया है। जो तुमने कर्म किया है उसका फल तुम स्वयं भोगो।

कर्मो से ही पीड़ित

यह क्यों किया? अब क्यों शोक करते हो। अपने कर्मो से ही पीड़ित हो रहे हो। तुमने अपने कर्मो द्वारा जिन दुखों का उपार्जन किया है उन्हें अब भली भांति भोगो इसमें किसी का कुछ दोष नहीं है। ये जो लोग हमारे पास आये हुए हैं उन्हें भी अपने राज्य का बड़ा घमण्ड था। इनकी बुद्धि बहुत ही खोटी एवं मलिन थी।

तत्पश्चात् यमराज राजाओं की ओर दृष्टिपात करके कहते हैं-अरे ऐ दुराचारी नरेशो, तुम लोग प्रजा का विध्वंस करने वाले हो। थोड़े दिनों तक रहने वाले राज्य के लिये तुमने क्यों भयंकर पाप किया? तुमने राज्य के लोभ, मोह मद बल तथा अन्याय से जो प्रजाओं को कठोर दण्ड दिया है उनका यथोचित फल इस वक्त भोगो।

See also  संतों का देश सतलोक अविनाशी पुरुष की महिमा-Santo Ka Desh

कहाँ गया वह राज्य, कहाँ गई व रानियाँ जिनके लिये तुमने पाप कर्म किये हैं। उनको छोड़ कर तुम असहाय अकेले खड़े हो। यहाँ सारी सेना दिखाई नहीं देती जिनके द्वारा प्रजा का तुमने दमन किया। इस वक्त यमदूत तुम्हारे अंग फाड़ डालते हैं। देखो उस पाप का अब कैसा फल मिल रहा है।

इस प्रकार यमराज के वचनों को सुनकर राजा लोग चुपचाप खड़े हैं। तब उनके पापों की शुद्धि के लिये यमराज अपने सेवकों को इस प्रकार आज्ञा देते हैं। वह चण्ड महाचण्ड! इन राजाओं को पकड़कर ले जाओ और क्रमशः नर्क की अग्नि में तपा कर उनके पापों के दण्ड से इन्हें मुक्त करो।

पापों की मात्रा के अनुसार

धर्मराज की आज्ञा पाकर यमदूत राजाओं के दोनों पैर पकड़कर वेग से घुमाते हुये उन्हें ऊपर फेंक देते हैं और फिर लौटकर उनके पापों की मात्रा के अनुसार उन्हें बड़ी-बड़ी शिलाओं पर देर तक पटकते रहते हैं, मानो बज्र से किसी वृक्ष पर प्रहार करते हों इससे पापी शरीर जर्जर हो जाता है।

उनके प्रत्येक छिद्र से रक्त की धार बह निकलती है और वह हिलने डुलने से भी असमर्थ हो जाते हैं। शीतल वाय, क स्पर्श होने पर उन्हें चेतना आनी प्रारम्भ होती है। तब यमराज के दूत उन्हें पापों की शुद्धि के लिये नर्क में डालते हैं। फिर पापियों के विषय में यमराज से निवेदन करते है कि आपकी आज्ञानुसार हम दूसरे पापी को भी ले आये हैं यह सदा धर्म से विमुख पाप परायण रहा है यह व्याध है।

इसने महापातक और उत्पात सभी किये। यह अपिवित्र मनुष्य सदा दूसरे जीवों की हिंसा में सलग्न रहा है। यह जो दुष्टात्मा खड़ा है अगम्या स्त्रियों के साथ समागम करने वाला है। इसने दूसरे के धन का भी अपहरण किया है। यह कन्या बेचने वाला, झूटी गवाही देने वाला, कृतघ्न तथा मित्रो को धोखा देने वाला है। इस दुरात्मा ने मदोन्मत्त होकर धर्म की निन्दा की है। मृत्युलोक में केवल पाप के ही आचरण किये हैं।

पापी को यमराज के सामने

मैंने आपकी आज्ञानुसार खड़ा कर दिया है। आपके सेवक हैं अब क्या करें, आप आज्ञा दें। यमदूत उस पापी को यमराज के सामने सम्मुख करके वहाँ से दूसरे पापियों को पकड़ने के लिये रवाना हो जाते हैं। जब पापी पर लगाये हये दोष की सिद्धि हो जाती है,

तब यमराज अपने भंयकर सेवकों को उसे दण्ड देने का आदेश देते हैं। ऋषियों के द्वारा जो विधान लागू किया हुआ है उसके अनुसार यम किंकर दण्ड देना प्रारम्भ करते हैं। त्रिशूल, बरछा, भाला, मुग्दर तीरों से और भांति-भांति की तलवार से उस पापी के शरीर को भीषण नरक दक्षिण द्वार में विदीर्ण कर डालते हैं।

read: पापाचारी जीव जब नरक में जाता है तब उसकी क्या गति होती है?

Comments are closed.