सृष्टि की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? रचयिता कौन हैं?

जय गुरुदेव, समस्त महानुभाव इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे, सृष्टि की उत्पत्ति (Creation origin) इसके रचयिता और सृष्टि का इतिहास साथ में, इंसान की सतयुग में उम्र क्या? और कलयुग और द्वापर में क्या? आदि बातों को इस आर्टिकल में आपके साथ सांझा कर रहा हूँ। जो परम संत बाबा जयगुरुदेव जी ने अपने सत्संग के माध्यम से कहीं, तो चलिए जानते हैं।

सृष्टि की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? रचयिता कौन हैं?
सृष्टि की उत्पत्ति कब और कैसे हुई

सृष्टि की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? (Creation origin)

जय गुरुदेव सृष्टि की रचना का इतिहास (History) क्या है? महानुभव जब यह धरती नहीं थी। सबसे पहले हमें यह सोचना है कि हम कहाँ से आए हैं? जब यह धरती (Earth) नहीं थी, यह आकाश नहीं था। सूरज चांद और सितारे नहीं थे, नारको 84 नहीं थे, स्वर्ग वैकुंड नहीं थे, तमाम ब्रह्मांड (universe) और लोक नहीं थे,

ब्रह्मा विष्णु और महेश नहीं थे, तमाम देवी देवता नहीं थे, अर्थात कहीं भी कुछ भी नहीं था। तब अनामी महाप्रभु अनामी लोक में अखंड राज्य (Unbroken state) करते थे। सारी की सारी जीवात्मा वहीं पर थी। फिर अनामी महाप्रभु की-की मौज से उन्होंने तीन लोक बनाए,

अगम लोक अलख लोक और सतलोक ए तीनों लोक एक रस है। इन तीनों राज्य में अगम पुरुष, अलख पुरुष, को सतपुरुष को सौंप दिया गया। रचना का विस्तार सत्पुरुष ने किया। सतलोक यानी सचखंड अचल धाम वहाँ कभी ना परिवर्तन (Change) हुआ ना होगा।

सृष्टि की रचना कैसे की गई? (How was creation created)

सत्पुरुष ने अपनी आवाज़ पर अनेक ब्रह्मांड (universe) की रचना की और 16 पुत्रों को नीचे उतार दिया। निरंजन भगवान (God) जी को ईश्वर कहते हैं। उनके सबसे छोटे पुत्र हैं। इन सब पुत्रों ने घोर तपस्या किया, तो सत्पुरुष प्रसन्न हुए, सब ने सतलोक के समान राज मांगा। तो सत्पुरुष ने कहा योमस्तु ऐसा ही होगा।

बिना जीव आत्माओं (spirits) के राज्य नहीं हो सकता है। इसलिए रूहों का एक छोटा-सा भंडार इन्हें दे दिया गया। राज्य चेतन पर किया जाता है। जड़ पर नहीं, जीवात्मा (spirits) सतलोक से नीचे उतरने में घबराए, तो सत्पुरुष ने कहा कि तुम जाओ मैं संतो को भेजूंगा। फिर तुम वापस चली आना।

जीवात्मा (spirits) को चार कपड़े पहनाए गए, कारण, सूछ्म, लिंग और यह स्थूल कपड़ा, पांच तत्व का यह मानव शरीर (Human body) में जीव आत्माओं को दोनों आंखों (Eyes) के पीछे बैठा दिया गया।

सतयुग में मनुष्य की उम्र क्या थी? (Man’ s age in the golden age)

महानुभाव सतयुग में मनुष्य की उम्र क्या थी सतयुग में मनुष्य (humans) की उम्र एक लाख (100000) वर्ष की थी। “सतयुग योगी सब विज्ञानी कर हरी ध्यान तरहिं भव प्रानी” जीवात्मा (spirits) समय पूरा होने पर अपने देश सतलोक को लौटने लगे, तब निरंजन भगवान ने जीवात्मा (spirits) को फंसाने के लिए कर्मों का विधान बनाया।

उन्होंने पाप और पुण्य बनाए, उनका फल भोगने के लिए चौरासी लाख (8400000) योनियाँ बनाई, तमाम नर्क बनाए, स्वर्ग और बैकुंठ बनाए, कर्म करने का अधिकार मनुष्य को दे दिया और फल देने का अधिकार उन्होंने अपने हाथ में रखा।

शुभ अशुभ कर्मों की बेड़ियों में जीवात्मा (spirits) जकड़ गई और अपने अस्तित्व को, अपने ज्ञान को, अपने प्रकाश को, अपनी शक्ति को अपने पिता सत्पुरुष को भी भूल गई. आज तक ना मालूम कितने युग बीत गए और जीवात्मा इस भवसागर में भटकती हुई, अपार उनके ऊपर कर्मों का बोझ लग चुका है।

तीसरा नेत्र किसे कहते है? (Third eye)

जीवात्मा के ऊपर कर्मो के बोझ से उनकी आँख बंद हो गई है। जीवात्मा में एक आँख है, जिसे दिव्य चक्षु, तीसरा नेत्र (Third eye) कहते हैं। उसमें एक काम है, जिससे वह आकाशवाणी अथवा ईश्वरी संगीत कलमा यानी आयतों को सुनती है। जीवात्मा की आँख और कान बंद हो जाने से ना तो उसे दिखाई देता है और ना सुनाई देता है।

आकाशवाणी (apocalypse) निरंतर 24 घंटे इस मस्तिष्क में हो रही हैं। घंटे घड़ियाल बज रहे हैं। लेकिन कान बंद होने से जीवात्मा (spirits) उसे सुन नहीं पा रही हैं। जीव आत्माओं को अपने अस्तित्व का होश नहीं रहा। उन्हें होश दिलाने के लिए और वापस अपने देश सतलोक ले जाने के लिए बराबर संत (Saint) आते हैं।

लेकिन हम इतने भूल चुके हैं कि उनको पहचान नहीं पाते, उल्टे उनका विरोध करते हैं। लेकिन जो लोग संतों (Saint) का साथ कर लेते हैं। समझते हैं कि हम गिरे हुए जीव हैं, तो संत उनके ऊपर दया करते हैं। क्रोध नहीं करते हैं। उनकी बात मान लेते हैं।

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उनके बताए रास्ते पर चलते हैं, उनका कल्याण हो जाता है, और भी हमेशा के लिए अपने परमधाम सतलोक (Satlok) को वापस चले जाते हैं। वास्तव में मुक्ति और मोक्ष इसी को कहते हैं। जो लोग संतो से विमुख रहते हैं इसी जन्म मरण के बंधन में कष्ट उठाते रहते हैं।

क्या बिना मानव धर्म के आध्यात्मिक साधना संभव है? (Human religion spiritual practice)

जितने भी संत पृथ्वी (Earth) पर आए, जैसे कबीर साहब, गोस्वामी तुलसीदास जी, नानक जी, रैदास जी, आदि सभी संतो ने जीव कल्याण के इसी कार्य की प्रमुखता दी। किंतु संतों का उत्तरदायित्व समाज और राष्ट्र के प्रति भी होता है।

क्योंकि बिना मानव धर्म के आध्यात्मिक (spiritual) साधना संभव नहीं है। जब तक आदमी के कर्म ठीक नहीं होंगे। उसके खानपान और रहन-सहन ठीक नहीं होंगे। वह संतमत की साधना नहीं कर सकता है। जब आदमी रोटी कपड़ा और तमाम छोटे-मोटे घरेलू समस्या में ही उलझ कर परेशान रहेगा। वह क्या भगवान का भजन (Bhajan of god) करेगा।

इसलिए संतो ने धर्म के साथ-साथ कर्म का भी उपदेश दिया और गिरते हुए परिवार समाज और देश की संभाल के संत सर्व समर्थ और सर्वशक्तिमान (all-powerful) होते हैं। उनकी मर्जी के खिलाफ इस मृत्युलोक में तो क्या ब्रह्मांड (universe) में पत्ता नहीं हिल सकता है। सारे देवी देवता काल, महाकाल, माया अंतर के लोको के धनी आदि, सब कोई संत से थरथर कांपते रहते हैं। संत चाहे तो पलक मारते ही सब कुछ कर सकते हैं।

संत सत्पुरुष के स्वरूप होते हैं (Nature of saintly male)

संत सत्पुरुष के स्वरूप होते हैं और उनके आदेश से ही संसार (World) में आते हैं। संपूर्ण ताकत को अपने अंदर समेटे हुए भी वह धीर गंभीर होते हैं। उनकी कोई भी कार्य जल्दबाजी या ग़लत नहीं होता है। उनके हर कार्य में उनकी हर बड़ी में रहस्य छुपा होता है और उनका मुख्य उद्देश परमार्थी होता है। अर्थात जीव कल्याण का होता है।

सब जीवो के लिए सत्संग की बड़ी ज़रूरत है। सबको सत्संग (spiritual discourse) मिलने लगे तो सब लोग ठीक होकर अपनी जगह पर आ जाएँ, सत्संग में हर बात को समझ आती है। सत्संग ना मिलने से सब लोग अपनी इच्छा अनुसार मनमानी क्रिया करने लगते हैं और करते रहते हैं।

सत्संग की ज़रूरत मुसलमान भाइयों को भी है। हिंदुओं को भी है। हर छोटी बड़ी जाति सबके लिए सत्संग की ज़रूरत है। कृष्ण भगवान (Krishna God) ने कहा है यह भारत कर्म भूमि है, धर्म भूमि है, यह आध्यात्मिक बाद रहेगा, मानववाद रहेगा, भौतिकवाद नहीं चलेगा।इसे भोग भूमि मत बनाओ, नहीं तो विनाश हो जाएगा। इस भूमि से धर्म को कभी ख़त्म नहीं किया जा सकता है। धर्म को ख़त्म करने वाले स्वयं ख़त्म हो जाते हैं।

धर्म की स्थापना (Establishment of religion)

कृष्ण ने गीता में साफ़ कहा कि जब इस धरती पर अधर्म बढ़ता है। तब मैं अधर्मियों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना (Establishment of religion) करने आता हूँ। रामायण में गोस्वामी जी ने साफ़ कहा कि “जब-जब होई धरम की हानि” तब-तब वह शक्तियाँ प्रकट होकर अधर्मियों का विनाश करके धर्म की स्थापना करते हैं।

यह सच्ची बात है कि वह शक्तियाँ (powers) अपना एक मिशन लेकर आती हैं और काम पूरा करके वापस चली जाती हैं। उनका जीवन का उद्धार करने और तारने का कोई लक्ष्य नहीं होता है। बे ख़ुद भी कर्म बंधन में बंध जाती हैं और इस बात को स्वीकार भी करते हैं।

कृष्ण को बहेलिया ने जब तीर मारा तो उन्होंने यही कहा था कि मैंने राम (Ram God) अवतार में तुम्हें छिपकर मारा था और आज तुमने अपना बदला चुका लिया है। इसलिए तुम दुखी मत हो। महाभारत हो गया तो भगवान कृष्ण ने पांडवों से कहा कि तुम्हें मनुष्य मारने का पाप लग गया है।

इसलिए उत्तराखंड में चली जाओ और अपना मुंह किसी को मत दिखाना। वहाँ वैतरणी नदी में गिर कर मर जाना। यह आपकी किताबों में लिखा हुआ है। पांडव गए और वहीं वैतरणी नदी में गिर कर मर गए, मरने के बाद सब के सब नर चले गए, आप अपनी किताबों को पढ़िए.जो कृष्ण के साथ 24 घंटे रहते थे। वह नरक (hell) चले गए, तो आपने कृष्ण को तो देखा नहीं, फिर आपका क्या होगा।

नरक की यातनाएँ क्या है? (Hell torture)

नर्क और स्वर्ग भी है। यहाँ कोई कोरी कल्पना नहीं है। जब जीवात्मा की आँख खुलती है तब सब कुछ दिखाई देता है। दोनों आंखों (both eyes) के ऊपर से रास्ता गया हुआ है। अंदर ही अंदर कर्मों की मेल जीवात्मा पर चढ़ी हुई है, इसलिए दिखाई नहीं देता है।

जैसे बादल नज़र आने से सूरज ढक जाता है। दिखाई नहीं देता है। इसी प्रकार यदि कर्म साफ़ हो जाए तो पहले क़दम पर तुम्हारा स्वर्ग ही दिखेगा। नर्क अलग है, यमदुतो की शक्ल बड़ी भयानक होती है। वह कुकर्मी जीवो के साथ बड़ी-सी कड़ाई के साथ पेश आते हैं।

जो मनुष्य (humans) चोरी करते, डकैती डालते, उन्हें यमदूत ऐसे नर्क में ले जाते हैं। जहाँ उन्हें जकड़ कर बाँध दिया जाता है। फिर उन्हें नुकीली संकलो से मारा जाता है। यमदूत का लिंग शरीर होता है और मरने के बाद जीवात्मा भी लिंग शरीर में होती है। जिसमें उसे कष्ट भुगतने पड़ते हैं।

लिंग शरीर 17 तत्वों का होता है। जो जानवर को पक्षियों को मछलियों को अन्य जीवो को मारते हैं और उनका मांस खाते हैं। उनको गर्म तेल कुंड में जलाया जाता है। जो स्त्री-पुरुष संतमत की साधना करते हैं बो इन दृश्यों (scenery) को देखते हैं।

जीवो को बेहोशी भी नहीं आती और उनका शरीर भुनता रहता है, कितने लाखो वर्ष (Millions of years) तक उसमें जलाए जाएंगे, इसकी सजा यमराज सुनाते हैं। चाहे कोई किसी मुल्क का रहने वाला हो, मरने के बाद सब यमराज की कचहरी में पेश किए जाते हैं।

पोस्ट निष्कर्ष

महानुभाव अपने परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा दिए गए आध्यात्मिक सत्संग और उनकी पुस्तकों का अनुसरण करते हुए मैंने यह (Creation origin) आर्टिकल आपके साथ सांझा किया। आशा है आपको यह आर्टिकल ज़रूर पसंद आया होगा। इस आर्टिकल को अपने सोशल नेटवर्क पर अच्छे लोगों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें, पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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