Sant Umakant Ji Maharaj || बाबा उमाकांत जी के बारे में पूरा विवरण

जय गुरुदेव प्रेमियों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताने वाले हैं। परम संत पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बाबा उमाकांत जी महाराज (Sant Umakant Ji Maharaj) का संक्षिप्त परिचय एवं अतीत से अब तक उसका विवरण हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले हैं। यह आर्टिकल लिखा गया है एक प्रचार पत्र के आधार पर लिखा गया है। जो गांव-गांव प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और हमारे जिले के अध्यक्ष डॉ. सी. एल. वर्मा संगत छतरपुर व अन्य साथियों के द्वारा इसका प्रचार प्रसार किया जा रहा है जिसको मैंने इस आर्टिकल में अंकित किया है। आप बाबा Umakant Ji Maharaj के बारे में पूरा विवरण पढ़ सकते हैं तो चलिए हम जानते हैं।

अध्यक्ष डॉ. सी. एल. वर्मा संगत छतरपुर व अन्य साथियों के द्वारा इसका प्रचार प्रसार
अध्यक्ष डॉ. सी. एल. वर्मा संगत छतरपुर व अन्य साथियों के द्वारा प्रचार प्रसार

बाबा उमाकांत जी महाराज (Baba Umakant Ji Maharaj)

उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव के नशामुक्त, शाकाहारी परिवार में जन्मे उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज (Umakant Ji Maharaj) बाल्यावस्था से ही आध्यात्मिक रुचि के कारण पढ़ाई पूर्ण होते-होते ही सन् 1973 में खिंचकर बाबा जयगुरुदेव के पास पहुँचे। नामदान (दीक्षा) लिया और बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आदेशानुसार सेवा, भजन कार्य में लग गए।

थोड़े समय के लिए गुरु के पास रहते तथा बीच-बीच में गाँव जाकर माता-पिता की सेवा करते रहे। फिर कुछ ही वर्ष बीते कि देश में इमरजेंसी लगी और तत्कालीन सरकार ने विपक्ष के नेताओं और सत्य बोलने, सत्य के रास्ते पर चलने-चलाने वाले महात्माओं को जेल में डालने का अभियान चला दिया। उसमें बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (Baba Jaigurudev Ji Maharaj) तथा उनके भक्तों को जेल में डाल दिया। उन्हीं में अहिंसा और सत्य की राह पर चलने वाले जो उस समय उमाकान्त तिवारी (Umakant Tiwari) के नाम से जाने-जाने वाले एक महान आत्मा यह भी थे।

सन् 1976 में जेल से निकलने के बाद परम् पूज्य बाबा Umakant Ji Maharaj पूर्ण रूप से बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के साथ उनके मिशन को पूरा करने में लग गए और सन् 2012 तक परछाई की तरह बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के अंतिम समय तक उनके साथ लगे रहे।

पुरानों की संभाल नए को नामदान देंगे Umakant Ji Maharaj

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज इस धरती पर मौजूदा समय में देश विदेश में जगह-जगह पर इन उज्जैन के बाबा को पत्र लिखकर भेजने लगे। लिखा कि “उमाकान्त तिवारी (Umakant Tiwari) को भेज रहा हूँ। यह हमारे संदेश को बताएंगे, समझ लेना मैं ही आ गया।”

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (Baba Jaigurudev Ji Maharaj) कितना विश्वास करते थे, उन्हीं के शब्दों से स्पष्ट होता है:-10 मार्च 2012 होली के कार्यक्रम में सतसंग मंच से कहा कि “ये उमाकान्तं तिवारी (Umakant Tiwari) हैं। मेरी जो सेवा होगी इनको दे दोगे तो मुझे मिल जाएगी” (सिर पर हाथ घुमाते हुए बोले) “इनका दफ्तर चौबीसों घंटे खुला रहता है। मेरी छोटी बड़ी जो भी सेवा इनको दे दोगे मुझे मिल जाएगी।”

दिनांक 16 मई 2007 दिन बुधवार को बसीरतगंज, जिला उन्नाव के आश्रम पर सतसंग के दौरान आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में घोषणा करते हुए वहाँ मौजूद संगत के सामने इनको खड़ा करके कह दिया “यह उमाकान्त तिवारी हैं, यह पुरानों की संभाल करेंगे और नए को नामदान देंगे।”

Umakant Tiwari Ji ne निवेदन किया तब संगत मानी

पूरे सन्त सतगुरु का वचन ही दस्तावेज होता है इसलिए उस सुनी हुई, रिकॉर्ड की हुई बात को आज भी सच्चे गुरु भक्त मानते हैं। परम् पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज् के 18 मई 2012 को निज धाम जाने के बाद ऐसी परिस्थिति बनी कि इन उज्जैन वाले बाबा के ऊपर संकट के बादल मंडराने लगे। जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था मथुरा (Jai Gurudev Dharma Pracharak Sanstha Mathura) के लिखे हुए बाइ लॉज (संस्था के विधान) के अनुसार उमाकान्त तिवारी संस्था के अध्यक्ष नहीं बन जाए इसलिए धन, पद के लोभी तरह-तरह का मुहिम चला दिये।

संस्कार के दिन पहले से निर्धारित मंसूबे को लोभी लालची लोगों ने जब लागू किया तो संगत भांप गई और विरोध करने लगी। तब शांति के पुजारी बाबा उमाकान्त जी महाराज (Baba Umakant Ji Maharaj) ने लाखों प्रेमियों को मंच से शांत रहने और गुरु की मौज समझकर जो हो रहा है होने के लिए निवेदन किया तब संगत मानी। फिर उसी दिन से बहुत से प्रेमी बाबा उमाकान्त जी महाराज के विचारों के साथ हो गए और आज भी हैं। जिनके सहयोग से जनहित और परमार्थ का यह कार्य हो रहा है।

Baba Umakant Ji Maharaj तुरन्त निकल पड़े

30 मई 2012 को गुरु का कर्म भंडारा समाप्त होते ही खतरा भांप कर परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज तुरन्त निकल पड़े। उन्हीं के शब्दों में ” सोचे कि कोई अनहोनी हो जाए, खून बह जाए, गुरु का नाम बदनाम हो जाए इसलिए ध्यान-भजन के समय मैं आश्रम छोड़ने का ऐलान करके खाली हाथ निकल पड़ा और रात्रि 2: 30 बजे भरतपुर होकर जयपुर आ गया। वहाँ से देराहूँ, जिला अजमेर गया।

काफी प्रेमी इकट्ठा थे, उनको शान्त रहने, भजन ध्यान सुमिरन करने का आग्रह करके उज्जैन व इंदौर में कुछ समय बिताया। प्रेमियों के आग्रह पर दुःखी सतसंगियों को ढांढस बंधाने हेतु देराहूँ के प्रेमियों के द्वारा दी गई स्कॉर्पियो गाड़ी से दौरा शुरू किया। “

Sant Umakant Ji Maharaj द्वारा नामधन की बरसात

प्रेमियों के आग्रह पर जुलाई 2013 के गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम में जयपुर से खुले मंच से अपने गुरु की तरह शब्द से जुड़ा हुआ ध्वन्यात्मक नाम जो पूर्व के सभी पूरे सन्तों ने दिया। ‘नामधन की बरसात’ की यानी नामदान दिया।

परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज के शब्दों में “नामदान देने की इच्छा तो नहीं हो रही थी क्योंकि कर्मों का बोझा आता है। लेकिन गुरु महाराज का आदेश हो गया कि टाट उतार दो और यह कपड़ा पहन लो, नामदान देना शुरू कर दो। इनको नामदान दे दोगे, ये भजन करने लगेंगे और इनका शरीर छूट भी गया तो मनुष्य शरीर पा जाएंगे।” वह लोग जो कई वर्षो तक परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज (Baba Umakant Ji Maharaj) के साथ में भोजन, विश्राम किये।

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सतयुग को धरती पर लाने का संकल्प किये, वही लोग भूल भ्रम में पड़कर परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज का विरोध करने लगे। कई प्रकार के व्यवधान उत्पन्न करने लगे, लेकिन इन विरोधों के बावजूद परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज अपने गुरु के उद्देश्य पूर्ति में 74 साल की इस उम्र में लगे हुए हैं जिसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है।

Guru dwara बताए अन्तर्मुखी साधना से होती

भारत व विश्व के 40 देशों में प्रचार कराया तथा विश्व के 15 देशों में जाकर लोगों को समझा कर शाकाहारी, नशा मुक्त, गुरुमुख बना दिया। कई जनहित कार्य करके विश्व रिकार्ड बनाया।

अपने उपदेश के द्वारा कितने लोगों के अंदर से जातिवाद, भाई-भतीजावाद, भाषावाद, कौमवाद, प्रान्त व देशवाद ही नहीं निकाला बल्कि उपदेश के द्वारा आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद जैसे ज़हर को भी निकाल दिया। कोई मालूम करना चाहे तो परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी (Most respected Umakant ji) महाराज के बड़े कार्यक्रम में जहाँ लाखों की भीड़ होती है उसका प्रमाण मिल सकता है।

देश-विदेश में आश्रम व भंडारा खुलवाकर भोजन जलपान कराने व असहाय लोगों को कंबल, जर्सी आदि कपड़े की व्यवस्था, छोटे-बड़े अस्पताल खुलवाकर निःशुल्क चिकित्सा व दर्जनों निःशुल्क एंबुलेंस चलाकर तथा बच्चों को प्रोत्साहन राशि व सम्मान वस्तु, प्रमाण पत्र वितरण अपने दोनों संस्था द्वारा करवा रहे हैं।

सच्चे गुरु की पहचान (Jai Guru Dev)

सच्चे गुरु की पहचान बाहरी हाड़-मांस के शरीर व वेशभूषा से नहीं होती है बल्कि गुरु द्वारा बताए अन्तर्मुखी साधना से होती है। संतों की वंशावली के अंतर्गत हाथरस वाले तुलसी साहब व अन्य अब तक के पूरे संतो के अनेक शिष्य हुए लेकिन उन लोगों ने एक ही शिष्य को नामदान देने व जीवो की संभाल के लिए आदेश दिया। जैसे-

  1. (Pujy) पूज्य तुलसी साहब हाथरस वाले ने पूज्य शिवदयाल जी महाराज (राधास्वामी दयाल) को।
  2. पूज्य शिवदयाल जी ने पूज्य गरीबदास जी को।
  3. Pujy गरीबदास जी ने पूज्य विष्णुदयाल जी को।
  4. पूज्य विष्णुदयाल जी ने पूज्य घूरेलाल जी (दादा गुरु) को।
  5. पूज्य घूरेलाल जी महाराज ने परम पूज्य तुलसीदास जी (बाबा जयगुरुदेव जी महाराज) को।
  6. बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज को। (Baba Umakant Ji Maharaj)

नामदान देने, जीवों की संभाल व अधूरे काम पूरा करने के लिए धरती पर सतयुग लाने हेतु खुले मंच से आदेश दे दिया। सन्त के चोला छोड़ने के बाद जैसे मक्खन शाह ने बाबा बकाला में गुरु तेग बहादुर में सच्चे गुरु की पहचान की थी वैसे ही सच्ची पहचान की जा सकती है।

उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज (Baba Umakant Ji Maharaj) के उपदेश

  1. यह मनुष्य शरीर लाखों योनियों में भटकने के बाद मिला है। इसके पाने के लिए देवता, फरिश्ते तरसते रहते हैं। धन, बल, पद प्रतिष्ठा पाकर मौत और प्रभु को भूलना नहीं चाहिए।
  2. इस शरीर के अंदर किसी भी पशु-पक्षी का मांस, मछली, अंडा मत डालो वरना यह मानव मंदिर यानी जिस्मानी मस्जिद, गुरुद्वारा द्वारा पूजा उपासना इबादत कुबूल नहीं होगी बल्कि सजा मिल जाएगी।
  3. प्रेमियों गुलाबी वस्त्र धारण करने से मन को शांति सन्तोष तो मिलता ही है परन्तु यह वस्त्र मुसीबत के समय मददगार भी है।
  4. गुरु के द्वारा बताए गए पांच नाम का सुमिरन भजन नित्य करते रहो तथा जान अनजान में मन, तन, वचन व धन से बन गए कर्मों को काटने के लिए मानव धर्म सच्चा आध्यात्मिक धर्म का प्रचार करते रहो व करने में सहयोग करते रहो।
  5. गुरु के वचन हमेशा याद रखो! अपने को देखो और गुरु रूप में प्रभु को देखो। लोगों को मत देखो जो वचन को छोड़कर धन, बल, प्रतिष्ठा बढ़ाने में लगे हुए हैं।
  6. यह भी याद रखो! जो गुरु व गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने में सहयोग करते हैं इस दुनिया में उनको मनचाहा पद प्रतिष्ठा देकर गुरु एहसान चुका देते हैं और जब एहसान खत्म हो जाता है तब उसको पछतावा व दुःख ही मिलता है।

Baba Umakant Ji Maharaj के उपदेश

  1. गुरु की दया दुआ लेकर लोक परलोक बनाने के लिए जरूरी है कि:-

” तन मन से सच्चा रहे, सतगुरु पकड़े बांह
काल कभी रोके नहीं, देवे राह बताय”

  1. मृतक शरीर की मुक्ति तो श्मशान घाट पर हो जाती है परन्तु आत्मा की नहीं इसलिए जन्म-मरण की पीड़ा नर्क चौरासी के कष्ट से बचने के लिए वक्त के समर्थ गुरु के पास पहुँचकर आदिकाल का पांच नाम लेकर प्रार्थना सुमिरन ध्यान भजन करके आत्मा की मुक्ति करनी चाहिए।
  2. याद रखो! यह मृत्यु लोक है यहाँ का नियम है जो पेड़ फलता है झड़ता है, जो आग जलती है बुझती है, जो पैदा होता है वह मरता है इसलिए सच पूछो तो यहाँ अपना कुछ है ही नहीं।
  3. कितना भी बलवान धनवान उच्च पद पर आसीन राजा, महाराजा, बादशाह मनुष्य योनि में हो एक दिन सबको यह माल असबाब छोड़कर मृत्यु लोक से जाना पड़ेगा यानी मरना पड़ेगा इसीलिए तो कामिल मुर्शिद यानी समर्थ गुरु के पास जाकर लोग के इल्म लेकर निजात (मुक्ति मोक्ष) लेते थे। यह तवारीख (इतिहास) में मिलता है।
  4. जिसको नामदान देने का अधिकार होता है उसके मुख से सुनना जरूरी होता है।
  5. सन्त सतगुरु के अंदर पूरी दयाल की धार होती है।

बाबा उमाकान्त जी महाराज के उपदेश

  1. सुमिरन-ध्यान-भजन करने से ही देवी-देवताओं का दर्शन होगा।
  2. परमात्मा से मिलने का सीधा सरल रास्ता समर्थ गुरु के पास होता है।
  3. सन्त जाने से पहले अपना काम किसी न किसी को जरूर देकर जाते हैं, पहले उसे करने के लिए कार्य सिखाते हैं फिर उसे पावर-शक्ति दे देते हैं फिर चले जाते हैं।
  4. जब तक समर्थगुरु नहीं मिलते तब तक जीवात्मा जन्म-मरण की पीड़ा भोगती रहती है।
  5. पाप-पुण्य दोनों खत्म होंगे तब आत्मा को मुक्ति मोक्ष मिलेगा।
  6. प्रारब्ध को आगे-पीछे करने की पावर वक्त के समर्थ संत सतगुरु के पास होती है।
  7. त्रिकालदर्शी से सन्तों का दर्जा ऊंचा होता है। जिसको आदि अंत का पता होता है वही सन्त होता है।
  8. महापुरुष, महात्मा, सन्त, अवतारी शक्तियाँ सब मानव शरीर में ही आते हैं।
  9. युग के विधान के अनुसार साधना, पाठ-पूजा करना चाहिए तभी लाभ होता है।
  10. सन्त ने ही आकर सतलोक का रास्ता खोला।
  11. याद रखो कर्मों की सजा सबको भोगनी पड़ती है।
  12. सबसे बड़ा परोपकार जीवात्मा को शब्द का भोजन कराना है।
Sant Umakant Ji Maharaj
Sant Umakant Ji Maharaj

गुरु बचा लोगे जिसको वह बच जाएगा, फेर लोगे नजर तो वह फंस जाएगा। मेरे प्यारे गुरु दातार, सब पर दया करो! अक्ल-बुद्धि दो। बीमारी व तकलीफों में जयगुरुदेव आराम देने वाला नाम है। जयगुरुदेव-जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव की ध्वनि रोज सुबह शाम बोलिए और परिवार वालों को भी बोलवाइए।

लेखक के दो शब्द

प्रेमियों व सज्जनों बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की मौज क्या है क्या नहीं है? यह तो स्वयं आप सतगुरु ही जानते हैं। उनको किनके द्वारा क्या-क्या कार्य करवाना है वह सब उनकी लीला है।बाकी मैं किसी के बारे में कुछ भी नहीं लिख सकता हूँ क्योंकि मेरी औकात ही क्या है? मालिक की मौत हुई और जो भी हो रहा सब उनकी मर्जी से होगा। क्योंकि मैं एक छोटा व तुच्छ प्राणी हूँ मेरी औकात ही क्या है किसी के बारे में खास लिखना या बोलना। महानुभाव आपसे विनम्र निवेदन है कि मालिक की दया लेते रहे। आगे क्या मालिक की मौज है वही जानते हैं। आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद। बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की दया सब पर बनी रहे जय गुरुदेव,

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