कलियुग का प्रभाव सन्तों के मार्ग में रूकावटें। विचार करने योग्य Satya Vachan

महानुभाव सज्जनों जय गुरुदेव, विचार करने योग्य Satya Vachan, महापुरुषों के साथ कलयुग में उनकी मार्ग में रुकावट संसारी लोग पैदा करते हैं। जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं उनकी पगड़ी पर दाग कभी नहीं लगता है। चाहे संसार के लोग कितना ही कीचड़ उछाले, लेकिन जो पूर्ण महापुरुष होते हैं उस कीचड़ को भी साफ कर देते हैं। इस सत्संग आर्टिकल में कलयुग का प्रभाव संतो के मार्ग में रुकावट Vichar Karne Yogya Satya Vachan, विचार करने योग्य शब्द वचन पड़ेंगे। जो महापुरुषों ने अपने सत्संग वाणी में कहा है तो चलिए शुरू करते हैं।

आशिकों के साथ जुल्म और उपाधि (Aashiqon Ke Sath Zulm)

महानुभाव यह Vichar Karne Yogya Satya Vachan है कि इस कलयुग रूपी संसार में पूर्ण महापुरुषों के साथ जुल्म किए जाते हैं और उन्हें उस रास्ते से हटाने की पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन महापुरुष दृढ़ संकल्प भी होते हैं वह कीचड़ और गंदगी को भी हटा देते हैं।

भक्तों के साथ संसारी लोग कुछ गलत अर्थ निकालते हैं और उन पर कीचड़ डालते हैं। इसका प्रमाण आप मीराबाई (Meera Bai) से देख सकते हैं उन्होंने कृष्ण की भक्ति की और लोगों ने क्या-क्या कहा? गुरु रविदास (Guru Ravidas) को बनाया। लोगों ने क्या-क्या कहा ऐसे तमाम प्रकार के भक्ति करने के मार्ग में लोग रुकावट पैदा करते हैं। भक्तों के साथ दुनियाँ हमेशा से जुल्म करती रही है जैसा कि पलटू साहब (Paltu Sahab) ने इस कड़ी में कहा है:

पलटू नाहक भूकता जोगी देखे स्वान। ।
जक्त भक्त से बैर है चारो जुग परमान॥

संत साधु महात्मा और भक्तजनों को दुनियाँ में हमेशा तंग किया। हर तरह से उनको तकलीफ दी और दुनियाँ दार बराबर इस बात का जलन करते रहे कि जिसमें सच्चे परमार्थ की युक्ति प्रकट न होने पावे।

कलियुग का प्रभाव सन्तों के मार्ग में रूकावटें (Kalyug Ka Prabhav Santan ke Marg Me)

अब कलियुग का प्रभाव (Kalyug Ka Prabhav) है और जैसे-जैसे घोर कलियुग आता जा रहा है दुनियाँ की तरफ से खिलाफत और उपाधि बढ़ती जा रही और बढ़ते-बढ़ते किस वक्त में जाकर इस उपाधि और विरोध की क्या सूरत होगी और किस कदर यह जोर पकड़ेगा।

इसके निसबत पेश्तर जो सन्तों ने इशारों में फरमाया है उस पर जब गौर किया जाता है तो रोमांच हो जाता है और शरीर कांपने लगता है। इसाई मजहब (Christian Religion) की तारीख में आता है कि एक फिरके के लोगों ने दूसरे फिरके वालों के साथ क्या ज्यादतियाँ या जुल्म किये हैं।

उससे कहीं बढ़कर जोर व जुल्म सन्तों और सन्तों के भक्तों पर कयास किया जाता है कि आइन्दा होंगे। जो सच्चा भक्त और परमार्थी होगा वही उनको बरदास्त कर सकेगा और भक्ति और परमार्थ के रास्ते में डिगमिगायेगा नहीं।

काल यह पसन्द नहीं करता कि सन्तों का मत जारी हो। इसलिए वह हमेशा से सन्तों के मार्ग में (Santan ke Marg Me) रूकावटें डालता रहा है और डालता रहेगा और जैसे-जैसे वक्त गुजरता है काल की तरफ से मुखालफत और उपाधि है रूप भयंकर होता जायेगा।

नाना प्रकार की हँसी उड़ाते (Hansi Udanaa)

जब पहिले-पहल सन्त यहाँ पधारे थे उस वक्त उनके और उनके भक्तों और सेवकों के पीछे छूआछूत और जात बिरादरी और घर वालों वगैरह की तरफ की उपाधि थी। जाति बिरादरी और घर वाले लोग रोकते थे और विध्न डालते थे कि जिसमें सच्चा सतसंग। खड़ा न होने पावे।

जो भक्त और सेवक वहाँ जाते थे उनको उनके जात बिरादरी और घर वाले लोग तंग करते थे। सैकड़ों तरह की बातें करते कि वहाँ ऐसा होता है कि केवल स्त्रियाँ आती हैं ये तो जानकी माई हैं सीता बनी हैं। रास्ते में औरतों को तंग करते थे। बदनाम करते थे और कहते थे कि महात्मा दूसरों का धन हर लेते हैं पुलिस को केस दिए जाते थे। सीआइडी लगाये जाते थे।

लोग नाना प्रकार की हँसी उड़ाते (Hansi Udanaa) हैं। जितनी बदनामी होती है संसार में और धूर्तबाजी, वह सब दुनियाँ वाले, , महात्मा और उनके सेवकों के गले में बाँधते हैं। दुनियाँ वालों को डर समाज धर्म का नहीं रहा और वह अब बन्द नहीं हो गया है।

विचार करने योग्य सत्य वचन (Vichar Karne Yogya Satya Vachan) जहाँ सच्ची भक्ति और परमार्थ की सच्ची यह कार्यवाही हो रही होगी वहाँ यह सब उपाधि मौजूद होगी। दुनियाँ में सन्तों और उनके भक्तों सेवकों को चैन से नहीं रहने दिया और न रहने देंगी। बल्कि रोज नई-नई उपाधि पैदा करेगी।

यह सब भी मालिक की मौज मसलहत से है। सच्चे परमार्थियों की भक्ति और परमार्थ में कोई हर्ज नहीं होगा। बल्कि जिस कदर दुनियाँ उनको तंग करेगी उनकी भक्ति दृढ़ मजबूत और बढ़ती जावेगी दूसरी बात यह है कि ऐसा न हो तो सच्चे झूठे की पहचान कैसे होगी।

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विचार करने योग्य सत्य बचन (Vichar Karne Yogya Satya Vachan)

विचार करने योग्य सत्य बचन यह है कि उसका बीज गुरु का बचन ही है जो गुरु का और शिष्य के बीच भक्ति का सम्बन्ध उत्पन्न करता है और जिसके द्वारा गुरु शिष्य को भक्ति का धन प्रदान करता है। यदि बचन की पाबन्दी न हो तो गुरु संगत में रहता हुआ भी शिष्य उनके लाभ से खाली रह जाता है।

गुरु के बचन (Guru Ke Vachan) का पालन करने वाला दूर रह कर भी रंग जाता है। इसलिए गुरु की आज्ञानुसार कर्म करना गुरु भक्तों का प्रथम और उत्तम धर्म है क्योंकि जिसको गुरु के बचनों में विश्वास नहीं उसको इहलोक और परलोक दोनों दुख रूप में बने रहते हैं। ।

विचार करना (Vichar Karna) चाहिए कि हम इस संसार में क्यों आए हैं और क्या चाहते हैं। अगर हमकों सुख की इच्छा है और इसी इच्छा को लेकर फिर रहे हैं तो वह सुख बाहर नहीं है तुम्हारे अन्दर है। सन्तों का कथन है कि यह जीव स्वयं सुख रूप है।

तुममें सब शक्तियाँ भरपूर हैं मगर भूल और भ्रम के कारण यह दुर्बल और कमजोर बना बैठा है। यह शक्ति कब प्राप्त होगी? जब यह गुरु के साथ सम्बन्ध पैदा करेगा। जब गुरु का आदर्श उसके सामने होगा और गुरु के सतसंग व बचनों का लाभ इसको प्राप्त होगा, तो फिर संशय और भरम की जड़ आप से आप कट जायेगी और इसे अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होने लगेगा।

सतगुरू के मिलाप से (Satguru ke Milap se)

भूमि जीव संकुल रहे गये शरद ऋतु पाय।
सतगुरू मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाय॥

हे लक्ष्मण, वर्षा ऋतु के अन्दर मच्छर कीड़े मकोड़े आदि इस कदर भी जीव जन्तु पैदा हो गये थे वह शरद ऋतु के आते ही इस प्रकार नाश हो गये हैं जैसे सतगुरू के मिलाप से (Satguru ke Milap se) संशय तथा अधमों का नाश हो जाता है।

आम लोग ग्रन्थों और वाणियों के पाठ को किस्से कहानियाँ समझ कर पढ़ते हैं। परन्तु यह वास्तव में किस्से कहानियाँ नहीं हैं। इनके अन्दर हकीकत के भेद छुपे होते हैं जिनको भक्ति भाव का दिमाग रखने वाला जीव ही समझ सकता है।

यह पूर्ण गुरु की निशान होती हैं कि उनकी शरण प्राप्त होने से दिल सम्पूर्ण संशय भरमों से साफ हो जाता है जब दिल से संशय भरमों की गन्दगी दूर हो गई फिर संसार कहाँ? संशय भरमों का नाम ही संसार है। संसार की और कोई हैसियत ही नहीं है जब तक जीव संशय भरमों के रोग से पीड़ित हो रहा है तब तक संसारी है।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल में आपने भक्ति मार्ग में संसारी लोग रुकावट पैदा करते हैं इस Vichar Karne Yogya Satya Vachan को पढ़ा। वास्तव में सत्य है क्योंकि माया इस देश से निकालना नहीं चाहती है, माया में फंसी रहना इस संसार का एक खेल बन गया है। क्योंकि भक्त वह जन्म मरण के चक्कर से छूटकर महापुरुषों के चरणों में लीन होकर अपने धाम जाना चाहता है जो माया नहीं चाहती है। आशा है आपको ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा और अधिक सत्संग आर्टिकल पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। “जय गुरुदेव मालिक की दया सबको प्राप्त हो”

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