मनुष्य जीव कल्याण हेतु, धर्म अनुसार चलना चाहिए। Apne Jiv Kalyan Ke Liye

पाठक सज्जनों इस सत्संग आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे कि महात्माओं के द्वारा दिए गए उपदेश जो मानव जीवन के लिए कल्याणकारी होता है। मनुष्य को अपने जीव कल्याण के लिए (Apne Jiv Kalyan Ke Liye) इस लोक में धर्म के अनुसार चलना चाहिए, जैसे कि आप हम सभी जानते हैं कि पग-पग पर हमें कर्मों से गुजरना पड़ता है। जाने अनजाने में पता नहीं कितने अच्छे और बुरे कर्म हमसे बन जाते हैं।

यदि हम महात्माओं के द्वारा बताए हुए संदेशों का अनुसरण करें और अपने जीवन में उतारे, तो हम एक धर्म के अनुसार चल सकते हैं। मनुष्य को अपने जीवन कल्याण के लिए (Apne Jiv Kalyan Ke Liye) कोई ना कोई धर्म को जरूर अपनाना चाहिए ताकि वह एक शांति सुकून का जीवन व्यतीत कर सकें। चलिए जानते हैं महात्माओं के द्वारा दिए गए मनुष्य जीवन कल्याण हेतु संदेश को पढ़ते हैं तो चलें स्टार्ट करें। “जयगुरुदेव”

Apne Jiv Kalyan Ke Liye
Apne Jiv Kalyan Ke Liye

आत्म कल्याण का मार्ग (Apne Jiv Kalyan)

संत मार्ग परम पुरातन है यह संतों का मार्ग नाम (Name) का है जिसका साधन हर मनुष्य नहीं कर सकता है क्योंकि संतों की क्रिया दुनियादारों के साधन से जुदा है और शब्द के मार्ग में अभ्यास करना पड़ता है। लोग नया अभ्यास करना अपनी मान हानि समझते हैं और पूर्व के स्वभाव अनुसार आत्म निरूपण की क्रिया उन्हें कठिन मालूम होती है।

वास्तव में बात तो यह है कि जब सन्त यह जीवों को समझाते हैं कि तुम्हें शुभ-अशुभ कर्म (Shubh Ashubh Karm) का फल जरूर भोगना होगा और तुम यदि यह काम नहीं त्यागना चाहते हो तो आत्म कल्याण (Jiv Kalyan) नहीं होगा। इसी से संतों से विरोध होता है कि सन्त कर्म का खण्डन करते हैं।

आत्म कल्याण (Atma Kalyan) का भी तो मार्ग कर्म है पर जिस क्रिया से आत्म कल्याण होगा सन्त उसी कर्म को करावेंगे। संसार भाव वाले प्राणी जनों के भाग्य में अभी कल्याण का समय नहीं आया है इसी से महान जनों की क्रिया विपरीत मालूम होती है।

जीव कल्याण के हेतु लोक में धर्म अनुसार (Jiv Kalyan Ke Liye)

चित्त विरोध रहता और आत्मदर्शी महान जनों से दूषित प्रकृति के लोग दूर रहते हैं। इसी से सत्य भाव का उपदेश होने से जीव दूषित क्रिया करते जा रहे हैं और लोगों में सदाचार का अभाव होता जाता है। मालूम होता है कि यही वातावरण रहा तो {भारत के कोने-कोने में अनाचार फैल जायेगा और लोगों का अन्त में खात्मा अवश्य हो जायेगा} ।

मनुष्य को अपने जीव कल्याण के हेतु (Apne Jiv Kalyan Ke Liye) लोक में धर्म अनुसार चलना चाहिए। शास्त्रों का अथवा महात्माओं का वचन है कि जो मनुष्य मेरे बताए हुए मार्ग के विपरीत चलते हैं उन जीवों का धर्म कर्म लोक रीति, मर्यादा रीति सब छूट जाता है और उनकी आत्मा का कल्याण नहीं होता है।

ऐसी आत्मायें कर्म के विधान दंड में आकर जम महराज के हवाले हो जाती हैं और फिर करोड़ों युगों तक उन्हें मनुष्य तन नहीं प्राप्त होता है। लोक में जब अधर्म कर्म होने लगता है और लोगों की प्रवृत्ति पापाचार की ओर हो जाती है जैसे शराब पीना, मांस खाना, व्यभिचार करना, रिश्वत लेना और अपने स्वार्थ हेतु दूसरे मनुष्यों को धोखा देना।

महान आत्मायें इस संसार में (Mahan Atmaye)

ऐसी भावना को जब लोग पाप नहीं समझते हैं उस वक्त परमात्मा अपनी सृष्टि को सुधारने के हेतु किन्हीं महान आत्माओं (Mahan Atmaye) को ऊपर के मण्डल से भेजते हैं। वही महान आत्मायें इस संसार में आकर धर्म, कर्म मर्यादा लोक रीति समाज में रहना सिखाती हैं।

फिर से नवीन रास्ता आत्म कल्याण का जारी करती हैं। ऐसे समय में कर्मी जीव इस सरल रास्ते का जो पुरातन सनातन आदि से चला आता है उसको अन समझता से कहते हैं कि नया रास्ता है! और इस आत्म कल्याण (Atma Kalyan) के पुराने रास्ते से दूर रहते हैं।

मनुष्य भाव का सच्चा निवारण (Bhav Ka Saccha Nivaaran)

मनुष्य भाव का सच्चा निवारण तब होगा जब कि माता पिता के विचार (Mata Pita ke Vichar) शुद्ध होंगे और लोक में रहते हुए उनका कदम पापाचार की ओर नहीं होगा। तभी माता पिता अपनी सन्तान को उच्च आदर्श, की शिक्षा लौकिक सामाजिक देंगे और साथ ही साथ धार्मिक आत्म-उत्थान की भी शिक्षा होगी।

जब मनुष्य लोक समाज में बंध गया और गृह जीवन में रहकर उसको सुख प्राप्ति न हुआ तो उसे इस बात की चिन्ता होगी कि सच्चा सुख गृह जीवन में नहीं है। अब कौन उपाय करूँ जिससे सच्चा सुख प्राप्त हो।

शिक्षा के अनुसार (Shiksha Ke Anusar) गृह जीवन के नवयुवक सज्जन संत पुरूषों की तलाश जिज्ञासा के अनुसार करेंगे और भावपूर्ण जिज्ञासू जीव को महान पुरूष महात्मा अवश्य मिलेंगे और वही आत्मसुखी महात्मा आत्म आनन्द जरूर देंगे तब जीव को सच्चा सुख प्राप्त होगा।

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माता पिता की शिक्षा असत्य है। या तो अपने पुत्र नवयुवक को शिक्षा देते ही नहीं या माता पिता पापाचार करते हैं जिनके आधार पर पुत्र नवयुवक अपने पिता के दुर्गुणों को अपने हृदय स्थल में उतार लेता है और उसी प्रकार के विचारहीन कर्म करना शुरू कर देता है जिससे आगे की सन्तान नष्ट हो जाती है और पाप भाव में बहते रहते हैं।

गुरु महान विद्या के भण्डार (Guru Mahan Vidya ka Bhandar)

जीव का पतन हो रहा है जिसका नमूना आज मालूम होता है। बच्चों में सत्य का खून (Satya Ka Khun) होता तो जरूर विवेकी धीरजवान अर्थात सज्जन भाव में बरतते। अब तो आसुरी भाव में बरत रहे। इसी से अपने जीवन के बहुमूल्य समय को नष्ट करते हैं और अन्त में दुर्गति की ओर चले जा रहे हैं।

यह बिगड़ी सन्तति क्यों? बिगड़े हुए माता पिता (Mata Pita) पुत्र पुत्री को यदि गुरु जन पा जावें यह सत्य है कि अपनी शिक्षा अर्थात दैविक भाव से सुधारने के पश्चात् उनके तौर तरीके को बदल देते हैं और परमार्थ का जो तौर तरीका है उसमें प्रवेश कर देते हैं।

धन्य गुरूजन तुमने पूरा सुधारने का काम कर दिया। बिगड़े हुए जीव को तुमने अपनी अलौकिक शक्ति द्वारा जीवन दान दिया और संसार के सत्य पथ पर अर्थात परमार्थ के सत्य रास्ते पर लगा दिया और महान कृपा द्वारा रास्ता सुरत के बनाने का सुरत शब्द का उसको दिया और सुरत को जगाया। गुरु महान विद्या के भण्डार (Guru Mahan Vidya ka Bhandar) हैं।

बगैर गुरु की शिक्षा (Bagair Guru Ki Shiksha)

आज बगैर गुरु की शिक्षा (Guru Ki Shiksha) के घर-घर हर प्रकार की कपट कटौती होती है और हर घर में हर भाव के झगड़े होते हैं और स्त्रियों अपने पति के कंट्रोल से इस कदर बाहर हैं जैसे पानी की मछली जब चाहा पानी में गोता लगा दिया और पता नहीं कहाँ चली गई।

पति बेचारा क्या करे। उसकी समझ में आता ही नहीं कि मैं क्या करू। परन्तु जब सत्य का और धर्म का वातावरण (Dharm Ka Vatavaran) था उस वक्त स्त्रियाँ अपने पति के अधीन थीं और सन्तान उच्च कोटि की हुआ करती थी। पर अफसोस है मनुष्य ज्यादा चंचल हो गया।

वासना का जब से भण्डार बना तभी से ऐसी महा दशा भारत की बन गई और मनुष्य की क्रिया जानवर भाव में परिणित हो गई। मुझे दुख है मनुष्य जीवन (Manushya Jivan) मनुष्य नहीं बनाता है। सदाचारी दोनों। बनो और आचार विचार ठीक रक्खो।

संसार में उपदेश की कमी (Sansar Mein Updesh ki Kami)

अब प्राणी दुख के कारण पाप करते हैं। पर क्या करें संसार में उपदेश की कमी है। महात्मा बहुत कम हैं। संसार बहुत बिगड़ा हुआ है। अब कौन सुधारे? तालीम तो सदा से? महात्माओं की एक ही रही और आज भी वही है अपने कर्मानुसार तालीम भी ग्रहण की जाती है तालीम एक है पर सबकी एक बुद्धि नहीं होती है।

आजकल तामस भाव की बुद्धि होती है। कौन पुत्र अपने पिता की आज्ञा में चलता है? कोई बिरला। अपने माता पिता (Mata Pita) के पहले तुम उपासक बनो और उनकी आज्ञा का पूर्ण पालन करो तब तुम गुरूजनों के पास पहुँचोगे फिर गुरूजनों की आज्ञा का पालन करो।

महानुभाव सज्जनों अपने ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल में महापुरुषों के द्वारा दिए गए संदेश का अनुसरण किया। वास्तव में यदि महात्माओं के द्वारा दिए गए संदेश का हम अपने जीवन में अनुसरण या पालन करते हैं तो मनुष्य अपने जीव के कल्याण के लिए धर्म पर चलना स्टार्ट कर देगा। आशा है आपको ऊपर दिए गए महापुरुषों कि संदेश जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। “जय गुरुदेव”

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