गुरु कृपा (Guru Kirpa) का पात्र शिष्य, घट में आवाज सुनता। सच्चा आत्मा भाव

जय गुरुदेव, इस सत्संग आर्टिकल (Satsang Article) के माध्यम से आप जानेंगे कि गुरु की कृपा (Guru Kirpa) जब जीव पर होती है तो उसके अंतर घट में वह शब्द व वाणी प्रकट होती है जिसकी हर जीव को हर प्राणी को तलाश होती है। क्योंकि शब्द रस पीकर ही यह Surat शक्तिशाली होती है। वह गुरु चरणों में लीन होती है।

गुरु कृपा (Guru Kirpa) से हम क्या कर सकते हैं? और यह माया, इस संसार का खेल क्या है? आदि तमाम बातों को इस सत्संग आर्टिकल (Satsang Article) के माध्यम से आप जानेंगे। पूरा पढ़ें यह स्वामी जी महाराज के द्वारा दिया गया आध्यात्मिक सत्संग है, तो चलिए शुरू करें।

गुरु कृपा (Guru Kirpa) का पात्र शिष्य
गुरु कृपा (Guru Kirpa) का पात्र शिष्य

घट घट की आवाज (Ghat Ghat Ki Avaaj)

हर घट में घनघोर रसीली आवाजें होती हैं। यह आवाजें उनके अन्दर हर वक्त होती हैं जिनके ऊपर गुरु कृपा (Guru Kirpa) के परदे खुल जाते हैं। गुरु कृपा (Guru Kirpa) का पात्र शिष्य सदा घट की धुनों को सुनता रहता है और जो रस धुनों के द्वारा आता है उसी रस से सुरत तृप्त रहती है।

सुरत की ताकत में मन हरा भरा रहता और इन्द्रियाँ शान्त शीतल रहती हैं जिससे संसार (World) के दोष नहीं आने पाते हैं। गृहस्थियों को शिकायत रहती है कि मेहनत के समय याद नहीं कर पाता हूँ क्योंकि जब तन मन लगाकर संसार का काम (Sansar Ka Kam) करता हूँ।

तब कहीं संसार की कामना (Sansar Ki Kamna) की पूर्ति हो पाती है। यह तुम्हारा विचार सत्य नहीं है। तुम्हारे लिए सन्तों ने अथवा गुरु ने इतना सस्ता कर दिया है कि बगैर परिश्रम के पाते हो और थोड़ी वृत्ति नहीं जमाते हो।

मन माया का बनाया (Man Maya Ka Banaya)

बिना आधार के मन रोका नहीं जा सकता। बिना ध्येय पदार्थ के ध्यान जमाया नहीं जा सकता। मन माया (Man Maya) का बनाया हुआ है। मन पत्थर की तरह सख्त हो गया है। मन पर अधिकार कैसे जमाना होगा? प्रथम माया का पूरा आश्रय लेना होगा।

इस लोक में और सूक्ष्म लोक में सब खेल माया का है। जो भी शरीर है वह माया (Maya) का बना हुआ है। सारे शब्द और रूप माया के बने हुए हैं। निराकार की कोई कल्पना नहीं वहाँ के ध्यान और धारणा कहाँ हो। इसलिये इस काम के लिये निराकार भी कोई न कोई कल्पित मूर्ति बनाता है पर वह साकार उपासकों की तरह नहीं बल्कि सूक्ष्म होती है।

इसका एक लाभ भी है जैसी वस्तु का ध्यान किया जाता (Dhyan Kiya Jata) है वैसा अन्तःकरण बनता है। इस सूक्ष्म मूर्ति या शब्द के ध्यान से वह एक दम सूक्ष्म मण्डलों में पहुँच जाता है और गुरु के बल (Guru Ke Bal) से शीघ्र प्रकाश पा जाता है। अन्तरी प्रकाश से ही उसे यानी। जो साधक है, ज्ञान मिलता है उसी ज्ञान (Gyan) का परिणाम शक्ति आनन्द है।

तस्वीरों में रस नहीं (Sansari Image Me Ras Nahi)

दुनियाँ वाले सब सिनेमा के अन्दर जाकर स्त्रियों की नकली छाया (Fake Women Image) पर आशिक हैं और उन्हीं की सूरतों में जो आर्टीफिशियल (Artificial) तस्वीरों पर है अपनी आँखों को गड़ा रहे हैं। अपनी आँखों से उन नकली सूरतों (Nakli Image) को देखते-देखते उन्हीं का तदरूप हो रहे हैं।

आज हमारी धर्म राजभूमि (Dharm Rajbhumi) पर रहने वालों का क्या यही धर्म है जो कि इन्हीं नकली तस्वीरों (Fake Image) में आनन्द खोज रहे हैं? क्या ऐसे शख्सों को आत्म आनन्द अर्थात् परमात्मा (God) की प्राप्ति होगी? हरगिज नहीं। अपना अमूल्य समय नाहक गुजार रहे हैं और मनुष्य होते हुये अपनी दिनचर्या जानवरों जैसी करते जा रहे हैं।

यह नहीं जानते हैं कि यह मनुष्य जन्म (Human Birth) बड़े भाग से पाया है। इसे वृथा बरबाद नहीं करना चाहिये। क्या आगे तुम्हें पछताना नहीं होगा? तुम पछताओगे और मरना जरूर होगा मौत तुम्हारे सिर पर अपना सामान लेकर खड़ी है। तुम समझते हो कि हम पर मौत नहीं आवेगी। मौत जरूर आवेगी। जिनकी अवस्था जीर्ण हो गई हो वह जीव परमात्मा (Parmatma) की याद नहीं कर सकता है,

ध्यान देकर सतसंग सुने समझे (Dhyan Dekar Satsang Sune)

एक तो उसने संसारी साधन (Sansari Sadhyan) वासनाओं के सारे जीवन किये हों और अन्त समय पर चाहे कि हमारी वासनायें पूरी हों इस पर यदि उसे सतसंग (Satsang) भी न मिले तो वह वृद्ध इस दुनिया में आकर परमात्मा को नहीं पा सकता है।

उसको चाहिए कि अपने घर पर ही महात्माओं को बुलावे और ध्यान देकर सतसंग सुने समझे (Dhyan Dekar Satsang Sune) कि अब मुझे दुनियाँ से जाना है। इस प्रकार महात्माओं से समझौती लेकर और उनकी कुछ कृपा से भाग्य बनेगा नहीं तो चौरासी जरूर जाना होगा। बगैर गुरु के गति हरगिज नहीं मिलेगी। 1

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साधन में बाधक भाव (Sadhan Me Badhak)

तुम्हारे अन्दर हर वक्त शब्द होते रहते हैं। तुम अन्दर के शब्दों को क्यों नहीं सुन पाते हो? इसका खास कारण है कि तुम्हारा ध्यान संसार (Dhyan Sansar) के प्रत्येक पदार्थो के चिन्तन में रहता है धन कमाना, खाना खाना, कपड़ा पहनना, स्त्री का ध्यान, पुत्र का ध्यान,

कुटुम्बी जनों का ध्यान, मान हानि का ध्यान, लोक तरक्की का ध्यान, हुकूमत करने का ध्यान, जायदाद पैदा (Paisa Kamana) करने का ध्यान और बाकी समय रात्रि में विषय कमाना। भोग वासना सोना इसी तरह के अनेक गन्दी वासनाओं में हमारा ध्यान लगा हुआ है।

इसीलिए अन्तर का शब्द-वेद ध्वनि, अनहद ध्वनि, आकाश वाणी खुदा की आसमानी आवाज सुनाई नहीं देती है। अब तुम्हें ऐसा पुरूष मिले जो तुम्हारा ध्यान संसार (Dhyan Sansar) की ओर से बदलकर अनहद नाम ध्वनि के साथ लगा दे और गुरु की कृपा से नाम ध्वनि का रस तुम्हें आने लगे।

ऑखें के पीछे गुरु की खास दया (Aakho Ke Pichhe Guru Daya)

तुम्हारे ऑखों के पीछे दोनों ऑखें बन्द करने पर सामने एक नुख्ता सफेद तिल है जो कि गुरु कृपा (Guru Kirpa) द्वारा मिलेगा। गुरु से अन्दर का भेद लेकर जो युक्ति गुरु तुम्हें अपनी कृपा से तुम्हारी जिज्ञासा के अनुसार बता दें उसे शुरू कर दो और तुम गुरु के सामने उनकी आँखों को देखा करो।

जब तुम उनके पास बैठो आँखों से एक अजीब रोशनी मिलेगी, उसी रोशनी का सहारा लेकर अन्तर में साधन शुरू कर दो। इस बात का पूरा ध्यान रक्खो कि साधन के वक्त आँख एक जगह टिकी रहे हिले डुले नहीं और भाव में आकर तुम बैठो कि आज मालिक की दया (Malik Ki Daya) अन्दर में जरूर प्रकट करूंगा।

जब दया आती मालूम न पड़े और पूर्व के स्वभाव अनुसार मन तुम्हें साधन पर न बैठने दे तो तुम उस वक्त क्या करो? आखें खोल लो और जोर से अन्दर ही अन्दर रोओ और अपने कर्मो पर पश्चाताप करो कि मालिक अथवा गुरूदेव दया कर दो (Guru Dev Daya Kar Do) हम बहुत पातकी हैं अब मुझे सदबुद्धि दो ताकि मैं कोई बुरा कर्म न करूं।

ऐसा करने से कर्म (KARM) का परदा साफ होगा और तुम्हारे अन्तर में शब्द सुनाई देगा व प्रकाश भी प्रकट होने लगेगा। ऐसी दया आते हुए जब तुम्हें आभास मालूम होने लगे तब तुम अपने को भाग्यशाली समझो और गुरु का महान (Guru Ka Mahan) शुकर करो कि आज गुरु की खास दया हुई है।

सच्चा आत्म भाव (Sachha Aatma Bhao)

जब जीव आत्म भाव से रोकर पुकार लगाते हैं तब वह गुरु जो तुमको मालिक का भेद देने आया है जरूर दया करता है क्योंकि आत्म वेदना की बरदास्त संत सतगुरू को नहीं होती है। गुरु के भेदभाव में आत्म वेदना (Aatma Vedna) का फल तुम्हें मिलेगा।

बगैर गुरु के जिन जीवों में आत्म वेदना पैदा होती है उसका फल यह है कि वही आत्म वेदना गुरु के पास पहुँचा देती है जो आत्म वेदना होगी उसका फल मालिक की प्राप्ति का होगा जरूर होगा। मैंने आपको दोनों आत्म वेदना (Aatma Vedna) के भाव बतला दिये हैं।

मालिक का नियम (Malik Ka Niyam) है कि जो जीव मुझसे मिलना चाहे वह हमारे पास पहुँचा देंगे वरना बगैर गुरु के तुम हमारा रूप नहीं समझ पावोगे। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने जीव कल्याण की चाह नहीं होती वह महात्माओं के पास पहुँचना और उनसे नेक नसीहत, आत्म कल्याण (Aatma Kalyan) की लेना पाप समझते है।

उन्हें खाना पीना भोग भोगना सोना सच्चे महात्माओं के रास्ते में विरोध करना अपनी नामवरी समझते हैं, अपने को जानते है कि बहुत बड़े जानकार हैं। मुझे तो दुख होता है कि वे अपना अमूल्य कीमती समय किस कदर बरबाद करते हैं जिसकी सजा उन्हें जरूर मिलेगी। महात्माओं के विरोधी बनकर धर्म समाज (Dharm Samaj) का पतन करते हैं।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल के माध्यम से आपने गुरु कृपा (Guru Kirpa) के बारे में जाना। जब एक सत्संगी पर गुरु कृपा होती है तो उसके अंदर कैसे भाव जागृत होते हैं? अंतर में क्या दृश्य उदित होते हैं? आदि Guru Kirpa सत्संग को पढ़ा। आशा है आप को ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा। अच्छे लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। “जय गुरुदेव”

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