संत मत की महानता और सच्चा उद्धार का मार्ग जारी हो सकता

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Last Updated on January 23, 2023 by Balbodi Ramtoriya

Jay Gurudev, संत मत की महानता जो लिखी नहीं जा सकती और संत मत के रास्ते पर चलने वाला प्राणी उद्धार का मार्ग प्राप्त कर लेता है और अपने परम पिता परमेश्वर गुरु के चरणों में लीन होकर अपने जीवन का उद्धार कर लेता है। आइए इन महापुरुषों की सत्संग वाणी यों को आर्टिकल के माध्यम से सजाया गया है आप इन्हें पूरा पढ़े जय गुरुदेव,

संत मत की महानता

मतों के उद्धार के लिए श्रम और कष्ट अधिक और लाभ कम हैं किन्तु सन्त मत में थोड़े परिश्रम ओर सावधानी से अत्यधिक लाभ हो सकता है और सच्चे उद्धार का मार्ग जारी हो सकता है।

संत मत की महानता

जितने मत संसार में प्रचलित हैं, उन सब में कोई न कोई साधन, मुक्ति की प्राप्ति के हेतु वर्णन किये गये हैं। किन्तु सच्ची मुक्ति के भेद और उसके प्राप्त होने की युक्ति से सब अनभिज्ञ हैं। किसी-किसी मत में कोई-कोई. साधन तो प्रायः अत्यन्त ही कठिन और दुस्तर हैं और उनसे लाभ बहुत कम होता है और मुक्ति पद का मार्ग बिल्कुल नहीं मिलता।

पहले तो बहुत कम जीव उन कठिन साधनों को आरम्भ कर पाते हैं और उनमें से बहुत कम जीवों से वे साधन थोड़े बहुत बन पाते हैं। केवल तन मन की थोड़ी निर्मलता के अतिरिक्त और कोई लाभ उनसे प्रतीत नहीं होता।

संत मत मैं महिमा और प्रशंसा का वर्णन

जिन जीवों से वे साधन थोड़े बहुत बन पड़ते हैं वे अत्यन्त अहंकारी और अभिमानी हो जाते हैं। आगे चलकर उन्हें सतगुरू की खोज और अपने अभ्यास की उन्नति की रूचि नहीं रह जाती।

यह है कि किसी-किसी मत में जहाँ विद्या और बुद्धि का प्रचार अधिक है वहाँ गुरु की कोई विशेष आवश्यकता अथवा प्रतिष्ठा नहीं समझी जाती। कोई-कोई साधारण से व्यवहार प्रचलित रखते हैं। किन्तु जो महिमा और प्रशंसा गुरु की सन्तों ने वर्णन की हैं वह किसी के चित्त में नहीं ठहरती इस कारण उन लोगों का पूरे गुरु में भाव नहीं आता और सच्चे प्रभु और उद्धार के नियम से वे अनभिज्ञ रह जाते है।

यह अभ्यास मन और सुरत को समेटने और चढ़ाने का हैं। अन्त समय में अर्थात मृत्यु के समय यह अभ्यास दुःख सुख के भुलाने और मृत्यु का प्रभाव न व्यापने देने में अधिक सहायक होगा। अर्थात जिस सिमटाव और खिचाव का जीव अभ्यास के समय नित्य प्रति उत्सुकता से-से चाहता रहता है वह अन्त समय पर प्रसन्नता से सर्व अंग करके होगा और अत्यधिक आनन्द की प्राप्ति होगी।

परम प्रभु का पता और भेद संत मत मैं

यह सब दशा और विवरण देखकर भी जीवों के मन में इस विषय में खोज करने का विचार उत्पन्न नहीं होता। विपरीत इसके भूल और भ्रम यहाँ तक बढ़े हुए हैं कि कोई व्यक्ति इस विषय के सम्बन्ध में बातचीत भी नहीं करता और न उसका कुछ वर्णन ही सुनना चाहता है

इसका कारण यह है कि जीवों के मन में यह विचार कि परम प्रभु का पता और भेद न सम्भव है और न कोई उसके धाम पहुँचकर मिल सकता है। ऐसे विचार वाले कुछ व्यक्तियों ने परमार्थी भेष धारण करके जीवों को अनेक प्रकार का धोखा दिया उसके साथ अनेक प्रकार के विश्वासघात किये जिसके कारण प्रायः परमार्थी व्यवसाइयों और वार्तालाप करने वालों से उसका उन पर से विश्वास जाता रहा।

इस विषयों में अभ्यास की क्रिया आदि की खोज व्यर्थ समझी गई। इस कारण से सभी जीवों का ध्यान संसार और उनके भोग विलास के पदार्थो और उनके सम्मान की प्राप्ति में ही आकृष्ट होने लगा और परमार्थी क्रिया व्यवहारिक और टेकियों के समान ही रह गई।

सच्चे मन से सच्चा परमार्थ

जो लोग कि विचारवान हैं और सच्चे मन से सच्चा परमार्थ चाहते हैं कि किसी टेक या लीक के बंधे नहीं हैं, उनके लिये यह वचन कहा जाता है कि पहले सतगुरू की खोज करो उनके सतसंग में प्रीति रखो, दीनता और रूचि के साथ चलो और मिलो, तब स्वार्थ और परमार्थ का यथार्थ बोध हो सकेगा।

इन दिनों में सच्चे गुरु और महाप्रभु का भेद, उनके निज धाम का मार्ग और उस पर चलने की युक्ति का विस्तृत विवरण संत सतगुरू की संगत से विदित हो सकता है। जो सच्चा खोजी और पीड़ित है उसे चाहिए कि उस संगत में सम्मिलित होकर सुरत शब्द मार्ग का उपदेश लेकर अभ्यास करे संसार के जाल में न फंसे, भोग विलास, धन माल मान-सम्मान आदि की इच्छा आवश्यकतानुसार करे, जिससे अपना और कुटुम्ब का भरण-पोषण हो जावे। व्यर्थ और अधिक व्यय की इच्छा न करे।

सतसंग में बैठकर सन्तो के वचन

इस संसार और उसके बखेड़े आदि से बचे, सतसंग में बैठकर सन्तो के वचन और वाणी को सुनकर विचार के साथ उनके अनुसार कार्य करे तब सहज में संसार से निवेड़ा हो जावेगा और उसी अनुसार मन और सुरत सन्त सतगुरू की दया से अभ्यास में लगेंगे।

जिनके मन में सच्चे गुरु और सच्चे प्रभु का भय है वही भाग्यवान हैं और वही मन और इच्छा की विपत्तियों से प्रत्येक दशा में बचेगा।

यह कोई आवश्यक बात नहीं कि पहले भय उत्पन्न हो। प्रेम अंग वालों के मन में प्रीतम और उसके धाम की महिमा सुनकर गहरी अभिलाषा और प्रेम एकदम उत्पन्न हो जाते हैं फिर अभ्यास के साथ रस तथा आनन्द प्राप्त होने से प्रेम दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है।

फिर यह भय उत्पन्न होता है कि किसी कार्य से प्रीतम रूष्ट न हो जाय। यह भय बहुत निर्मल करता है और प्रीतम से सम्बन्ध कराता है।

सच्चे प्रेमी के मन में संत मत

सच्चे प्रेमी के मन में यह भय आप ही उत्पन्न होता है और जब तक कि काम पूरा न हो जाय अर्थात प्रीतम का साक्षात दर्शन नहीं प्राप्त हो जाता तब तक वह दूर नहीं होता। यह भय बड़ा प्रभावकारी होता है विरले भाग्यवान परमार्थी के मन में प्रगट होता है। यह भय यथार्थ में प्रेम स्वरूप है और सतगुरू की विशेष कृपा का चिह्न है। जिस घट में यह प्रकट हुआ मानों प्रेम और आनन्द का भण्डार खुलना आरम्भ हो गया।

जिस किसी को भाग्य से ऐसा धन अर्थात गुरूमुखता प्राप्त हो वही जीव महा भाग्यवान और सबसे ऊंचा और परम प्रभु का महान प्रिय है। उसके द्वारा बहुत से जीव तर सकते हैं।

संत सतगुरू के चरणों में

संसार में देखने में आता है कि लोग राजा महाराजा और धनिकों के साथ अकारण और निष्प्रयोजन लगे और सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं और जब अवसर प्राप्त होता है तो अपने प्यार को प्रकट करते हैं और सेवा करके बहुत प्रसन्न होते हैं।

अब विचार करो कि परम स्वामी महा प्रभु दयाल और संत सतगुरू के चरणों में उनका जो उनके निज प्रिय पुत्र और सेवक हैं कहाँ तक प्रेम और सेवा करना उचित और आवश्यक है।

इस प्रेम के द्वारा जीव का सच्चा कल्याण अर्थात पूरा उद्धार होना सम्भव है और जब से कि चरणों में लगे तब से घट में रस और आनन्द प्राप्त होना आरम्भ हो जाता है।

निष्कर्ष

महानुभाव अपने ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल के माध्यम से महापुरुषों ने सत्संग में बताया संत मत की महानता का संक्षिप्त विवरण जाना। आशा है आपको ऊपर दिया गया सत्संग पोस्ट जरूर अच्छा लगा होगा। जय गुरुदेव मालिक की दया सब को प्राप्त हो।

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