जब यह जगत कुछ नहीं था तब क्या था? इस संसार की रचना

संत महात्मा सृष्टि और जगत के बारे में, इस संसार की रचना कैसे हुई? इस संसार की रचना के बारे में सब कुछ बतलाते हैं। यह कैसे उत्पन्न हुई? किन महा शक्तियों के द्वारा तीन लोक 14 भुवन का स्थापना हुई और सत्पुरुष ने कौन-सा वरदान इस लोक के राजा को दिया। आदि आध्यात्मिक सत्संग बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सब कुछ सत्संग के माध्यम से बताया है। यह आध्यात्मिक सत्संग है इसे पूर्ण रूप से समझना है तो पहुँचे हुए महात्माओं की शरण में यदि हम जाते हैं तो सब कुछ समझ में आ जाता है। चलिए जानते हैं आध्यात्मिक सत्संग की रहस्यमई बातें।

कुछ नहीं था तब इस संसार की रचना

सृष्टि के पहिले सत्य पुरुष सत्य करतार अनामी महाप्रभु परम दयाल ही थे। सतपुरुष सत करतार की मौज से कृष्ण वर्ण का पुरूष पैदा हुआ जिसके तप करते-करते कई युग बीत गये। उसके तप और सेवा से प्रसन्न होकर सतपुरुष ने वरदान मांगने को कहा। तब उस पुरूष ने सत्य पुरूष के राज्य के समान ही राज्य का वरदान मांगा। सत्यपुरुष ने एवमस्तु किया फिर इन्होंने समस्त जीव और प्रकृति का मसाला लेकर तीन लोक चौदह भुवन का भवसागर बनाया और अपना नाम अलख निर्गुन निरंजन रखा और अलख निर्गुण निरंजन ज्योति धारण किया। इन्हीं की स्वांस से वेदों की उत्पत्ति हुई। अष्टांगी महाशक्ति के द्वारा इन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को उत्पन्न करके तीन लोक चौदह भुवन का राज्य स्थापित किया।

जब यह जगत कुछ नहीं था तब

1-प्रथम कमल मूलाधार चार दल कमल रक्त वर्ण की ध्वनि गणेश देवता। ऋद्धि सिद्धि जिनके मुर्छल करते हैं। यह मुकाम भुलोक जम्बू द्वीप का है।
2-स्वाधिष्ठान चक्र छः दल कमल, पीत वर्ण ओंकार की ध्वनि ब्रह्मा देवता गायत्री सावित्री सरस्वती सहित विहार करते हैं। ऋषियों मुनियों का सदा यहाँ जमघट बना रहता है। वेद ध्वनि यहाँ सदैव होती रहती है। इस चक्र के खुल जाने से साधक को ज्यों का त्यों साक्षात्कार हो जाता है।
3-मणिपूरक चक्र दस दल कमल नील वर्ण पखडी है। ध्वनि भक्त वत्सल भगवान विष्णु देवता लक्ष्मी सहित विहार करते
4-अनहद चक्र कंठ स्थान द्वादस दल कमल शिव देवता पार्वती सहित विहार करते हैं।

जीवात्मा का वास

5-विशुद्ध चक्र कंठ स्थान सोलह दल कमल हरित वर्ण पंखड़ी अविद्या महाशक्ति श्री ध्वनि जिनके ब्रह्मा, विष्णु शंकर मुर्छल करते हैं। यहीं पर जीवात्मा का वास है।
6-आज्ञा चक्र दो दल कमल ज्योति देवता स्थान भृकुटी।
7-सहस दल कमल स्वेत वर्ण। निरंजन देवता जो कि तीन लोक के ईश्वर हैं।
8-त्रिकुटी चक्र सहस दल कमल से बंकनाल के रास्ते जो कि कुछ दूर सीधा गया है फिर टेढा पड़ के सीधा हो गया है आगे चलकर मुकाम त्रिकुटी मिलता है जहाँ पर चार दल का कमल है। ओंकार की ध्वनि होती है रक्त वर्ण सूर्य ब्रह्म का वास है।
9-सुरत कमल दो दल का कमल है श्याम वर्ण है। इसी कमल पर सुरत का वास है यहाँ सदगुरू के दर्शन होते
10-दूसरे सुन्न में पुरूष प्रकृति का बास है।
11-अक्षर धाम है। दल कमल स्वेत वर्ण ररंकार ध्वनि अक्षर पुरुष का वास है।

महासुन्न स्थान

12-महासुन्न स्थान निः अक्षर पद आट दल कमल पर पार ब्रह्म का वास है और दस दल के कमल पर दाहिनी तरफ अचिन्त्य पुरूष का बास है। चार मुकाम इस महासुन्न स्थान पर गुप्त है। यहाँ पर बन्दीवान पुरूष शासन करता है इस महा मैदान में करोड़ों योजन महा तिमिर खण्ड है और पांच ब्रह्माण्ड का दर्शन आगे चलकर होता है।
13-भंवर गुफा स्थान यह सत्य लोक का नाका है यहाँ दो पर्वतों की सन्धि से सत्य लोक जाना होता है। इस भंवर गुफा में अट्ठासी हजार अमर दीप बने हुये हैं। यहाँ सोलह ब्रह्म राज्य करते हैं।
14-सत्यलोक से अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक में जाता है फिर सदैव के लिये मुक्त हो जाता है।

आध्यात्मिक प्रश्न उत्तर

1.प्रश्न-सर्गुण ब्रह्म किसे कहते है?
उत्तर-जो माया के गुणों को धारण करके संसार का कार्य करता है उसे सर्गुण ब्रह्म या माया सम्मिलित ब्रह्म या कार्य ब्रह्म कहते हैं।

2.प्रश्न-सर्गुण ब्रह्म के नाम क्या हैं?
उत्तर-ब्रह्मा, विष्णु, शिव सूर्य, शक्ति गणेश व राम, कृ ष्ण आदिक अवतार, हिरर्ण्य गर्भ विराट यह नाम ब्रह्म या सर्गुण ब्रह्म कहलाते हैं।

3.प्रश्न-निर्गुण ब्रह्म किसे कहते हैं?
उत्तर-जो अलख निर्गुण निरंजन निराकार ज्योति रूप सर्वव्यापी है इस लोक में उसे निर्गुण ब्रह्म कहते हैं।

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