Hath Mat Karo कोई नहीं मानता है तो छोड़ो zid mat karo. हठ मत करो

कोई नहीं मानता तो जिद मत करो और हठ नहीं करना (hath mat karo) । आप हट करते हो, किसी का कहना नहीं मानते है या तो आपकी मुसीबत है, या प्रतिज्ञा है। ऐसे में हमें सोचना समझना जरूरी रहता है। यदि कोई अपने से बड़ा अपने लिए किसी मुसीबत में जाने से रोकता है ऐसी परिस्थिति में हठ मत करो (Hath Mat Karo) बात मान लो उसी में भलाई है। चलिए इस सत्संग के माध्यम से स्वामी जी महाराज ने भी इसी हट के बारे में एक उदाहरण दिया है पढ़ते हैं। जय गुरुदेव,

Hath Mat Karo
Hath Mat Karo

महात्मा जी का सत्संग-Hath Mat Karo

एक महात्मा जी का सत्संग हो रहा था। एक दिन एक आदमी आया और कहने लगा कि ये क्या कह रहे हैं ऐसा नहीं हो सकता वैसा नहीं हो सकता। इस तरह बेकार की बक-बक करने लगा। कुछ सत्संगी उसको चुप कराने लगे कि सुन लो महाराज जी की बात, बीच में मत बोलो और वह था कि मान ही नहीं रहा था।

महात्मा जी ने देखा कि वह मानेगा नहीं, ये बेकार भिड़कर अपना समय खराब कर रहा है। तो उन्होंने कहा कि बकने दो उसे तुम लोक इधर चले आओ, छोड़ दो उसको, उलझो मत उससे, पर वे लोग नहीं मान रहे थे। वे लोग भी लड़ने लगे।

सत्संग और महात्मा की बात का उन पर कोई असर नहीं था। वह लोग लड़कर उठ गए और चले गए, लेकिन वह आदमी बैठा रहा सत्संग में आता रहा। बाद में वह पक्का सत्संगी बना, भजन करके अपना काम कर लिया पर जो सत्संगी लड़ रहे थे, महात्मा जी की बात नहीं माने वह सत्संग छोड़ कर दूर हो गए।

हठ मत करो (zid mat karo)

कहने का मतलब ये है कि कोई हठ नहीं करना चाहिए। अगर कोई नहीं मानता है तो छोड़ो उसको, तुम अपना समय क्यों खराब करते हो। मैं मध्य प्रदेश में एक बार गया। नदी थी उसकी धारा बहुत तेज बह रही थी, कोई उसकी धार में आ जाए तो बह जाए। एक आदमी आया वह पार जाना चाहता था मैंने उससे कहा कि इतनी तेज धारा है, मत जाओ (zid mat karo) नहीं तो बह जाओगे और वह बोला कि अरे ऐसा कुछ नहीं मैं तो पार कर लूंगा।

उसने मेरी बात नहीं मानी। वह जैसे ही पानी में उतरा धारा कि चपेट में आ गया। बहता-बहता जाकर कहीं दूर किनाने लगा। बाद में मुझसे मिला तो कहने लगा कि आप ने ठीक कहा था कि धारा बहुत तेज है, मैंने आप की बात नहीं मानी थी। मतलब कि जब कोई चीज मना किया जाए तो तुम्हें (Hath Mat Karo) सोचना चाहिए कि इसमें हमारी भलाई हैं बात मान लेनी चाहिए।

गरुड़ काग-भुसुन्डि संवाद

गरुड़:

है तनाब इस समय में, पूर्ण विश्व में काग।
पता नहीं किस समय पर, लगे युद्ध की आग।

लगे युद्ध की आग, कहो हालत क्या होगी?
तड़प-तड़प कर प्राण तजेंगे मानव भोगी।

खड़ा युद्ध परमाणु, असंख्यों फन वाला है।
नाग-नथैया बिना, न कोई रखवाला है।

काग-भुसुन्डि:

दुनियाँ के हर मुल्क में गरुड़ एक ही होड़।
अस्त्र-शस्त्र रचनार्थ ही, हो प्रयास जी तोड़

हो प्रयास जी तोड़, खूब हथियार बनाये।
रक्षा बजट महान, उसी को सदा बढ़ाये।

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पलें भले ही गरुड़, आभावों में ही दुनियाँ
पर हो उनका लक्ष्य, मिटाना जैसे दुनियाँ

सारे जग की दृष्टि है गरुड़ आज उस ओर।
महाशक्तियाँ विश्व की जाती हैं किस ओर।

जाती हैं किस ओर, परिस्थिति कौन बनायें?
हुईचूक यदि कहीं, न खुद ही ये टकरायें।

होंगे वे ही गरुड़, मनुजता के हत्यारे।
होते सदा प्रयास, युद्ध हित जिनके सारे।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए अमोलक वचन हठ मत करो (zid mat karo) स्वामी जी महाराज ने अपने सत्संग के माध्यम से उदाहरण समझाया है कि Hath Mat Karo यदि कोई महापुरुष हमारे लिए किसी काम करने के लिए रोकते हैं तो हमें मान जाना चाहिए. यदि हम नहीं मानेंगे तो उसका नुकसान हमें ही भुगतना पड़ेगा। क्योंकि जो सतगुरु होते हैं वह हम पर दया करते हैं वह हमें समझाते हैं कि ऐसा मत करो, वैसा मत करो, तो यह छोटी बात बड़ी सीख है। आशा है आपको ऊपर दिया गया सत्संग कंटेंट जरूर पसंद आया होगा। जय गुरुदेव मालिक की दया सब पर बनी रहे।

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