Powerful Divya Drishti Mantra केवल महात्मा ही जानते हैं

पावरफुल दिव्य दृष्टि मंत्र (Powerful Divya Drishti Mantra) केवल महात्मा ही जानते हैं। इस बात को तभी सिद्ध किया जा सकता है जब किसी पूर्ण महात्मा के पास जाकर उनसे दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) खोलने का मंत्र या नामदान (Mantra) लेकर उससे का प्रयोग करें और उस प्रयोग पर अपना अनुभव व सत्य व्यक्त कर सकता है। क्योंकि Divya Drishti यह एक अंतर की साधना है इसे नाम योग साधना कहते हैं। क्योंकि जब तक योग साधना नहीं की जा सकती है तब तक दिव्य दृष्टि नहीं खुल सकती है। दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) खोलने के लिए पूर्ण महापुरुष चाहिए जिनकी दिव्यदृष्टि खुली हो, जो अपना वर्तमान भूत और भविष्य सभी कालो को अपनी दृष्टि से देखता हो, आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार करता हो, वही पावरफुल (Powerful) महात्मा हमारी दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) खोलने का मंत्र (Mantra) दे सकता है चलिए जानते हैं महापुरुषों के सत्संग वचन।

Powerful Divya Drishti Mantra केवल महात्मा ही जानते हैं
Powerful Divya Drishti Mantra

Divya Drishti kya (दिव्य दृष्टि क्या है?)

सबसे पहले बात करते हैं दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) क्या है? महानुभव दिव्य दृष्टि वह अंदर की पावरफुल लाइट (powerful light) है जिस Light से हमारी दृष्टि चकाचौंध एवं प्रकाश में हो जाती है। या यूं कहें कि हमारी जीवात्मा प्रकाश मय हो जाती है दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) यह अंतर की योग साधना और महात्मा के द्वारा दिया गया Powerful मंत्र या योग विधि के द्वारा हम अपनी दिव्य दृष्टि को खोल सकते हैं।

दिव्य दृष्टि खोलने के लिए साधना (Sadhana) की जरूरत है और बिना गुरु के कोई दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) नहीं खोल सकता है दिव्य दृष्टि हम उसे कह सकते हैं एक उदाहरण के तौर पर कहें कि भगवान शिव के तीन नेत्र थे। या त्रिनेत्र धारी थे। ठीक उसी प्रकार से जीवात्मा की तीसरी आँख (third Eye) खुलना उसे दिव्य दृष्टि कहते हैं। क्योंकि हमारी शारीरिक आंखों से हम संसार देखते हैं और Powerful Divya Drishti से हम उस आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं। यह पावरफुल दिव्य दृष्टि तभी खुलेगी जब पूर्ण महात्माओं के सत्संग व साधना का प्रयोग करेंगे, तभी यह संभव हो सकता है।

सन्त मालिक से मिलने का रास्ता देते हैं

जीवों पर दया करता है। उस समय अपने देश के निवासी सुरत को मृत्युलोक मण्डल पर भेजकर सतगुरु (Satguru) के रूप में आकर दर्शन देता है। यही सतगुरु है जो सच्चे शाहंशाह सत्तलोक (Satlok) निवासी सच्चे प्रभु के पास आते जाते रहते हैं। इन्हीं सन्त सतगुरु का रूप मालिक का रूप है। सच्चे सत्तलोक निवासी प्रभु के रूप में और सन्त सतगुरु (Satguru) के रूप के कोई अन्तर नहीं है।

यही सन्त सतगुरु किसी न किसी दिन जीव को काल, माया व कर्म के देश से छुड़ा लेंगे। जीवात्मा (Givaatma) इन्हीं की अंश है। जीवात्मा की कदर, हमदर्दी इन्हीं सतगरु के हिस्से में है। जीवों की दीन व दुःखभरी अवस्था को देखकर इनका हृदय मक्खन की तरह पिघल जाता है। इन्हीं की कृपा से जीवों के अनेक जन्मों के पाप माफ हो जाते हैं। यही सन्त जीवों को मालिक से मिलने का रास्ता (Powerful Divya Drishti Mantra) देते हैं। इनकी महिमा अपरम्पार है, कोई गा नहीं सकता।

भारतवर्ष में ऐसी विभूतियाँ पहले भी थीं आज भी हैं और आगे भी रहेंगी। इनको दुनियाँ ने हमेशा तंग किया, इर तरह से तकलीफें दीं। आज कलियुग (Kalyug) का समय है और जीव भूले हुए हैं अतः सन्त बराबर उन पर दया ही करते रहते हैं। उनकी बुराईयों की तरफ नहीं देखते हैं और बुरे लोगों को भी प्यार करते हैं।

मनुष्य शरीर किराये का मकान

यह मनुष्य शरीर (human body) किराये का मकान है। चन्द दिनों के लिये 40-50-60 वर्षों के लिये मिला है। “जनमत मरत दुसह दुःख होई” पैदा होते वक्त और मौत (Death) के वक्त अपार पीड़ा होती है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। जब तुम गर्भ में थे तो तुमने वादा किया था कि इस बार मनुष्य शरीर (human body) पाकर भगवान का भजन (Bhagvaan ka bhajan) करूंगा, लेकिन दुनियाँ में आते ही तुम पर माया का परदा पड़ गया और तुम उसको भूल गये।

माँ, बाप भाई, बन्धु, नातेदार, रिश्तेदार, जमीन, मकान, ओहदा, मान, बड़ाई सब में फंस गये और कहने लगे कि खाओ-पिओ, मौज करो कहीं कुछ भी नहीं है। सन्तों (Powerful Divya Drishti) ने देखा कि जीव कर्म करके नर्कों और चौरासी में चले जायेंगे और युगों-युगों तक उन्हें घोर यातना सहनी पड़ेंगी तो वे तुम्हारे बीच आकर उन्होंने उपदेश देना शुरू किया तुम्हारे पाप कर्मों को माफ किया। पापों के कारण तुम्हारी ‘सुरत’ गन्दी हो गई थी।

सत्तलोक में पहुँचकर सुखी हो जाओगे।

उन्होंने परमात्मा (Bhagvaan) के प्राप्ति का भेद ‘नामदान’ (Mantar) दिया और कहा कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए तुम 2-2 घण्टा समय निकाल कर यह काम कर लो। फिर हमेशा के लिए तुम जन्म-मरण, नर्क, चौरासी के चक्कर एवं कष्टों से मुक्त हो जाओगे और अपने देश में, सत्तलोक (Satlok) में पहुँचकर हमेशा के लिए सुखी हो जाओगे।

तुम्हारा सच्चा पिता शाहंशाहों का भी शाहंशाह वहीं निवास करता है। उसके दिल में तुम्हारे लिए दर्द है, पीड़ा है, इन्हीं से काल तुमको वरदान के रूप में मांग कर लाया था और कर्म कांड, उपासना कांड आदि नियमों को बनाकर तुम्हें फंसा लिया और तुम कर्म करके जाल (Karm ke jaal) में फंस गये। इसीलिए तुम अपने धाम को नहीं जा पाते हो।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने महापुरुषों का वह दिव्य सत्संग पढ़ा जो एक जीवात्मा के लिए इस संसार में उस परमात्मा से बिछड़ने के बाद जरूरी है। क्योंकि जब तक हमारे लिए पूर्ण सतगुरु या पावरफुल महात्मा नहीं मिलेंगे। तब तक हमारी दिव्य दृष्टि (Divya Drishti) नहीं खुल सकती है। पावरफुल दिव्य दृष्टि खोलने का मंत्र (Powerful Divya Drishti Mantra) सिर्फ और सिर्फ महात्माओं के पास है। वह-वह भी योग साधना के माध्यम से किया जा सकता है। आशा है आपको ऊपर दिया गया सत्संग आर्टिकल जरूर अच्छा लगा होगा। जय गुरुदेव मालिक की दया सब पर बनी रहे ।

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