Jai Guru Dev, परमार्थ कमाने (Parmarth Kamane) के बारे में महापुरुष क्या कहते हैं? कैसे हम पर परमार्थ की अंदरूनी ताकत को बढ़ा सकते हैं और महात्माओं के चरणों में मत्था टेकने से क्या लाभ होता है? हार चढ़ाने से क्या होता है? ऐसी तमाम जानकारी महापुरुषों ने अपने सत्संग में दी है, चलिए जानते हैं परमार्थ कमाने (Parmarth Kamane) की विधि के बारे में महापुरुष क्या कहते हैं?
परमार्थ कमाने की विधि (Parmarth Kamane Ki Bidhi)
जिस किसी को संसार और नाशमानता और जीव का संसार में थोड़े दिन का ठहराव देखकर चेत हुआ और वह सच्चे प्रभु और उसके धाम का जो अमर और परम आनन्द का भण्डार है खोज और पता लगाना चाहता है और जिसको उस स्थान तक चलने और पहुँचने की युक्ति जान लेना स्वीकार है, उसके लिए वचन कहे जाते हैं।
पहले संत सतगुरू या उनकी संगति का खोज लगाकर उसके सतसंग (Satsang) में सम्मिलित हो। फिर दीनता और सच्ची अभिलाषा के साथ उसके सम्मुख जाओ और रूचि और प्रीति के साथ उनके वचन सुनो और समझो। इनमें से अपने लिये जिन वचनों को उचित और लाभदायक देखे उनके अनुसार कार्य आरम्भ करे। जो ओछे और अनुचित विचार (Anuchit Vicharne) उसके मन में पहले से एकत्रित भरे हो उनको शनैः-शनैः निकाले और दूर करे। जो बातें और चाल ढाल उसके सच्चे परमार्थ के निमित आवश्यक प्रतीत हो उनको ग्रहण करे और उनके अनुसार अपने रहन सहन के ढंग को ठीक करे।
इसके अतिरिक्त जो प्रेमी जन सतगुरू के सतसंग में सम्मिलित हैं अथवा होते रहते हैं उनके कार्य तथा रहन सहन को देखकर उनके अनुसार भी अपने कर्तव्य को ठीक रखें तथा उमंग पूर्वक संत सतगुरू (Sant Satguru) और प्रेमी जनों की तन मन से सेवा करे।
संत सतगुरू के सतसंग (Satsang) में प्रतिदिन परम प्रभु की महिमा और उनके मिलने के मार्ग अर्थात् सुरत शब्द अभ्यास का जो वर्णन किया जाता है उसे सुन समझ कर रूचि के साथ उपदेश लेकर अन्तर अभ्यास करे और भेद मार्ग और स्थानों का भली भांति समझ लें।
मत्था टेकने तथा प्रणाम करने से लाभ (Prdam Karne Ke Labh)
प्रत्यक्ष है कि आँखें झरोखे दर्शन की हैं क्योंकि प्रत्येक आदमी की बैठक उसके अन्तर में है और वहीं से जगत और उसकी दृष्टि एक होती है। संत सतगुरू (Sant Satguru) या साधु गुरु ऊँचे देश के वासी, महान निर्मल, महान शीतल और दयाल होते हैं उनकी दृष्टि भी दयालता, शीतलता और कृपा से भरी हुई होती है। जिस पर वह दृष्टि ध्यान के साथ पड़ती है उसके हृदय पर भी दृष्टि के साथ दृष्टि मिलाकर प्रणाम करने से अधिक लाभ होता है।
अर्थात उनकी दया और कृपा की प्राप्ति होती है क्योंकि उनका शरीर विशेषकर उनके हाथों और चरणों से सर्वथा महान पवित्र रूहानी धारें निकलती रहती हैं। अतएव उनके चरणों पर मत्था टेकने से गहरा प्रभाव रूहानियत का होता है तथा प्रीति उत्पन्न करता है।
संसार में भी नियम (Sansar Me Niyam) है कि कोई किसी से मिलता है विशेष कर अपने बड़ों के साथ तो दृष्टि के सम्मुख होकर प्रणाम अथवा नमस्कार करता है। यदि सम्मुख अर्थात् दृष्टि के सामने न हुआ तो प्रणाम नहीं ठीक हुआ। जब कोई इच्छा अथवा प्रार्थना प्रस्तुत करता है तब कृपा दृष्टि की मांग करता है।
जब अपने बराबर के अथवा छोटे से मिलता है स्नेह और लाड की दृष्टि से देखता है। सभी पुरुष अथवा स्त्री अथवा बालक दृष्टि को पहिचानते है अर्थात् हृदय के स्नेह, मित्रता अथवा शत्रुता तथा विपरीतता के भाव को समझकर आपस में व्यवहार करते हैं।
सतगुरू वचन सुनों और मानो (Satsang Vachan Suno)
परस्पर मिलने के समय एक दूसरे शरीर को स्पर्श करने की भी साधारण रीति जिससे समचित व्यवहार मिलता है और स्नेह का लक्षण प्रगट होता है। जैसे (जहाँ स्नेह अधिक है) कोई वक्ष से वक्ष मिलाकर मिलते छोटे-बड़े के चरण छूते अथवा चूमते हैं। इस कार्य से दोनों की आत्मिक धारे परस्पर मिलती हैं और एक का प्रभाव दूसरे में प्रवेश करता है। बालकों को जिनकी आत्मायें तथा मन निर्मल होते हैं हर कोई प्रायः अधिक स्नेह के कारण गोद में लेकर चिपटता और प्यार करता है।
सतगुरू वचन सुनों और मानो।
गुरु चरनन प्रीति पालो और चालो॥
हार चढ़ाने से लाभ (Har Chadane Ka Labh)
हार चढाने संत सतगुरू या साध गुरु की सुरत ऊँचे देश की निवासी होते हैं। वह जब नीचे उतरते हैं तब भी पिण्ड में ऊंचे स्थान पर उनकी बैठक होती है। इस कारण उनकी देह से जो रूहानी धारें निकलती हैं वे भी ऊंचे स्थान की ओर अत्यन्त निर्मल और शीतल होती हैं।
फूल अत्यन्त कोमल और आनन्दमय होते हैं। चाहे किसी प्रकार की धार हो उसका प्रभाव उस पर अति शीघ्र उत्पन्न होता है। अतएव जब कि हार बनाकर संत गुरु (Sant Satguru) या साध गुरु के गले में डाला गया तब उनकी देह और हाथों के स्पर्श से उसमें बहुत प्रभाव उनकी धार का आ जाता है और से लाभ पहिनने वाले के शरीर में वह प्रभाव प्रवेश कर जाता है।
अर्थात् सन्तों की रूहानी धार हार पहिनने वाली रूहानी धार से मिलकर नया प्रभाव उत्पन्न करती है और निर्मलता और शीतलता को बढ़ाती है अर्थात् ऊँचे स्थान की ओर उसका मुख मोड़ती है।
निष्कर्ष
महानुभाव ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल में स्वामी जी महाराज और महापुरुषों के द्वारा दिए गए सत्संग के कुछ वचनों परमार्थ कमाने के बारे में (Parmarth Kamane) महापुरुष क्या कहते हैं? प्रणाम करने से लाभ को पड़ा, आशा है आपको जरूर अच्छा लगा होगा और मालिक की दया सबको प्राप्त हो, जय गुरुदेव।
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