Mahapurushon Ke Vichar: वक्त की पुकार महापुरुषों के वचन बेकार नहीं जाते हैं। वह सब कुछ जानते हैं और जो भी बचन उनके मुखारविंद से निकलते हैं वह पत्थर की लकीर होते हैं। Mahapurushon Ke Vichar In Hindi के माध्यम से आप जानेंगे। बाबा जी ने ऐसे कौन से वचन बताए हैं कि जो सार्थक हो सिद्ध होते हैं। महापुरुष अपने सत्संग वाणी के माध्यम से लोगों को मंत्रमुग्ध करते हैं एवं वर्तमान, भूत, भविष्य के बारे में ज्ञान कराते हैं। महापुरुषों के वचन क्या है चलिए जानते हैं।
वक्त की पुकार Mahapurushon Ke Vichar
एक वक्त था जब राम को आना पड़ा कृष्ण को आना पड़ा। अब वक्त ने पुकारा है तो बाबाजी को मैदान में उतरना पड़ा। अब राम और कृष्ण भी आ जायें तो काम नहीं कर सकते क्योंकि वे काल के अवतार थे, उन्हें संहार करना था। अब तो आपस में ही इतना संहार बढ़ गया है कि राम और कृष्ण क्या संहार करायेंगे? अब जरूरत पड़ी ऐसे महापुरूष (Mahapurushon) की जो सम्हाल ले, गुनाहों की मांफी दे दे। पहले राजाओं का वक्त था किन्तु,
‘अब बिन नरेश को राज।’ बहुमत तियमत बालमत,
बिन नरेश को राज, सुख सम्पदा की कौन कहे, प्राण बचें बड़ भाग।
अब तो सहारा चाहिए।
सन्त क्षमा करते हैं, रक्षा करते हैं, नाम की डोर पकड़ाते है। नाम की डोर पकड़कर जीवात्मायें स्वर्ग, बैकुण्ठ, ईश्वर धाम, ब्रह्मलोक आदि अनेक रूहानी मण्डलों को पार करती हुई अपने असली वतन, सत्तलोक, सचखण्ड में पहुँच जाती हैं जहाँ न मरना है, न जन्मना है, न दुःख है न क्लेश है, न रोना धोना है।
कहें कबीर वाधर चलो जहंकाल न जाई। ‘
अब राम को या कृष्ण को तीर धनुष या चक्र सुदर्शन चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, सबके क्रिया कर्म की तलवार ही सफाया कर देगी, Mahapurushon Ke Vichar फिर परिवर्तन हो जायेगा। अब यह बात स्पष्ट होती चली जा रही है। बाबजी सबको समझा रहे हैं आगाह कर रहे हैं मार्गदर्शन कर रहे हैं। जो उनकी बातों को मानेंगे उनकी रक्षा हो जायेगी, जो नहीं मानेंगे उनके लिए उन्हीं के कर्मों की तलवार उनके सिर पर लटक रही है, कोई क्या कर सकता है।
भूमिजोतकों का राष्ट्रीय महा सम्मेलन
निगोहाँ (लखनऊ) में 7 से 15 जुलाई 1995 तक भूमिजोतकों का राष्ट्रीय महासम्मेलन हुआ। 6 जुलाई को भूमिजातकों की सायकिल शोभा यात्रा और 7 जुलाई को बड़ी गाड़ियों की शोभा यात्रा जिसमें स्वयं बाबा जयगुरूदेव जी उपस्थिति थे लखनऊ के लिए एक यादगार बन गई।
Mahapurushon बाबाजी ke vichar मैं बराबर सबको आगाह करता रहा कि सब लोग बुराइयों से बचो, अच्छे काम करो। आगे समय आ रहा है परिवर्तन का। मैं चाहता हूँ कि आध्यात्मिक विद्या को सब लोग। अपना लो, रूहों को आत्माओं को जगा लो और इस काल के देश से निकल चलो।
यह परदेश है। यहाँ सुख नहीं। अपना देश सतलोक है। तुम्हें जगाने के लिए ही मैं सारे परिश्रम कर रहा हूँ। कुछ समय तुम पूजा में, इबादत में दो। ये शरीर जो आत्मा का घर है इसे ठीक रखो इसमें बीमारी न आए क्योंकि इसी शरीर से आत्मा को जगाया जाता है और परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है।
Mahapurushon Ke Vichar आपके सामने आ जाये
हमने ये भी कहा था कि जब चारों तरफ से तुम्हारी पिटाई होगी, रोम-रोम पिटेगा तब हारकर मजबूर और लाचार होकर इस मैदान में आओगे। अगर तुम महात्माओं से पूछ कर घर का समाज का राज्य का काम करते तो तुम्हें सही तरीका बता देते। खेती दुकान दफ्तर सबके काम ठीक-ठीक होते फिर कोई किसी को धोखा नहीं दे सकता था।
कोई किसी को लूट नहीं सकता था। सब लोग अपनी-अपनी जगह पर अपना-अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करते और समय निकालकर परमात्मा की सच्ची पूजा आत्मा से करते, रूह से खुदा की इवादत करते। हम यही चाहते हैं कि इस तरह की एक नई व्यवस्था आपके सामने आ जाये।
शरीर किराये का मकान
Baba JaiGuru Dev Ke Vichar मैं बराबर आप से कहता हूँ कि यह शरीर किराये का मकान है। जहाँ स्वासों की पूंजी खत्म हुई यह मकान गिर जायेगा। मैं भी किराये के मकान में ही हूँ। मैं कोई पट्टा लिखाकर नहीं आया हूँ। इस किराये के मकान से तुम काम ले लो और पिंजरे से मरने के पहले ही निकल चलो और निश्चित हो जाओ।
जब उसका बुलावा आए तो कह दो कि मैं तो बिस्तर बाँधकर तैयार हूँ। ऐसी चालाकी और होशियारी करो। बद्धि से काम ले लो अच्छा रहेगा। जब कयामत आती है तो गुनाह करने वालों को खाना-पानी नहीं मिलता। थोड़ी भूख प्यास बर्दाश्त कर सकते हो,
लेकिन उस समय पर भूख इतनी लगती है कि माँ बच्चे को मार कर खा ले कोई किसी को मारकर खा ले, घास दाना, फल फूल कुछ नहीं होता। दो ही दिन में ये शरीरलेट जाता है। महाकाल के नाके तक सिमटाव होता है। उसके आगे सिमटाव नहीं होता।
द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन
काशी में गंगा रेती पर 9 से 11 फरवरी 1996 को भूमि जोतकों का द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। बाबाजी ने एक नई चुनाव प्रणाली का सूत्रपात किया जो विश्व में कहीं नहीं है। बाबाजी ने कहा कि काशी नगरी प्राचीन तीर्थ स्थली है। इस भूमि पर शिव जी ने बीस हजार साल तक तपस्या की, ब्रह्मा और विष्णु ने भी इसी भूमि पर तपस्या की।
इसी भूमि पर कबीर, रैदास, गोस्वामी तुलसीदास जी आदि महान सन्त रहे। जितने भी सन्त फकीर हुए सब लोग काशी में आए और इसको पवित्र किया। इसके कण-कण धर्म से ओत-प्रोत है। इसे भोग भूमि बनाने की कोशिश की गई तो कणों पर गन्दगी जमा हो गई है और वह जब साफ कर दी जायेगी तो धर्म फिर ऊपर आ जायेगा।
सब लोगों की यही चाह रहती है कि आनन्द मिले इसीलिये लोग धन दौलत जमा करते है। महल कोठियाँ बनवाते है। परिवार बसाते है फिर भी आनन्द नहीं मिलता। इसलिए लोगोंको यह सोचना चाहिए था और इसकी जानकारी करनी चाहिए थी कि आनन्द कहाँ मिलेगा।
आन्तरिक जगत प्रकाशमान
संसार की इच्छा बुझती नहीं जितना ही उसका पाने की कोशिश करो उतनी ही बढ़ती है जैसे आग में घी पड़े। यह आर्टीफीशियल, बनावटी और क्षणभंगुर संसार है। यहाँ सूरज निकलेगा और डूबेगा दिन होगा और रात होगी। इससे परे दूसरा देव लोक है। वहाँ न सूरज डूबता है न निकलता है।
वहाँ अन्धेरा नहीं है वहाँ प्रकाश है। उस सृष्टि की रचना अद्भुत है। ये जल मिट्टी, वायु वहाँ नहीं। वहाँ का वर्णन नहीं हो सकता वह आन्तरिक जगत है, दिव्य जगत है जिसे जीवात्मा, सुरत और रूह की आँखों से देखा जा सकता है। कानों से सुना जा सकता है और नाक से सूंघा जा सकता है।
बाहर दो आँखों से दिखाई देने वाला जगत यह मिथ्या है और वह आन्तरिक जगत प्रकाशमान है। पर आप इसको जानते नहीं और इसी मिथ्या जगत में बुद्धि की कसरत बाजी करते रहते हो पर मिलता कुछ नहीं। अन्ततोगत्वा तुम फना हो जाते हो और सब यहीं छूट जाता है।
Mahapurushon Ke Vichar सुनने के लिए
समय आ रहा है इस सन्देश को सुनने के लिए सब लोग भागेंगे। सब लोग प्यार और सम्मान चाहते है। आप महापुरूषों के सन्देश से दूर हो गए इसलिए संघर्ष की आग हृदय में जल उठी। फिर महापुरूषों की जरूरत है।
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