सच्चे महात्मा कौन, भक्त और अभक्त के लक्षण, परमात्मा स्वरुप ब्रह्म ज्ञान

महानुभाव जय गुरुदेव, सच्चे महात्मा कौन है? भक्त कौन कहलाता है? अभक्त कौन होता है? यह सभी महात्माओं के सत्संग ब्रह्म ज्ञान में सब कुछ सुनने को मिलता है। ठीक इसी टॉपिक पर हम आपके साथ सत्संग आर्टिकल शेयर कर रहे हैं। जिसमें आप जानेंगे सच्चे महात्मा भक्त कौन है? अभक्त कौन है और उसके क्या लक्षण है? चलिए जानते हैं। जय गुरुदेव

सच्चे महात्मा
सच्चे महात्मा

सच्चे महात्मा कौन हैं?

Sachche Mahatma (सच्चे महात्मा) :-सच्चे महात्मा सदा सत्य बोला करते हैं। उनके बचन में कभी असत्य रहता ही नहीं है, न तो स्वयं गलत रास्ते पर जाते हैं और न दूसरों को असत्य मार्ग का प्रदर्शन करते हैं।

भक्त कौन है?

भक्त वह हैं जो उस परमात्मा को प्राप्त कर चुके हैं। भक्तों की पहुँच आत्म साक्षात्कारी ज्ञान आँखें शिवनेत्र खुले होते हैं। सहस दल कंवल में पहुँचकर निरंजन भगवान ज्योति स्वरूप को पाते हैं। उसके ऊपर ब्रह्म को प्राप्त करते हैं। जिनका नाम वेद में शास्त्र में ओम आता है। इसके ऊपर वेद कहता है कि नेति-नेति और कुछ है। उसको पारब्रह्म कहते हैं जिनका नाम और स्थान ररंकार है तथा दसवां द्वार स्थान है।

उसके ऊपर महाकाल ब्रह्म सोहं पुरूष है। भंवर गुफा स्थान है। सत्यलोक में सत्यपुरूष विराजमान है। मन में विश्वास न होने पर भक्त अपनी साधना का भार गुरु पर डाल देता है। 3 घण्टे समय न देकर साधक का मन मोटा हो जाता है। दिन पर दिन मन पर गन्दगी आती जाती है परमार्थ की तरफ से मन सुरत होकर गुरु पर दोष लगाकर तरह-तरह की तदबीर निकालता है। यह सब दुश्मन मन सुरत के साथ धोखा देता है।

जिसको गुरु से नाम, रूप, स्थान प्राप्त हुआ उनको अपना भाग्य सराहना चाहिए और गुरु आज्ञा मान कर सुरत शब्द की साधना करना चाहिए। कलयुग में सुरत शब्द की साधना प्रधान है और किसी भी क्रिया से सुरत साफ नहीं होगी। सुरत का निर्मल होना जरूरी है। जप, तप, व्रत, होम, नाम, जाप तीर्थ वगैरह सुरत के निर्मल होने के साधन नहीं हैं। इन शुभ कर्मो से सुरत गन्दी होती है। शुभ अशुभ सुरत के ऊपर चढ़ने वाले परदे हैं।

अभक्त वह है

अभक्त उसे कहते हैं जो सच्चे महात्माओं की बातों पर विश्वास करता ही नहीं है। उसके मन में जो आया उसी को करता है। जड़ पत्थर तीर्थ मूर्ति में तथा चारो धामों में अपना आत्म कल्याण समझता है और अनेक प्रकार के होम, जाप, व्रत करता है और उसी को करना अपनी मुक्ति मान रहा है। जिनकी रसाई ईश्वर ब्रह्म पार ब्रह्म में है तथा जो सत्यलोक में पहुँचे हैं उनकी वचन वाणी को न सुनना और उनकी आज्ञा का पालन न करना उनके ऊपर अविश्वास तथा उनको नास्तिक मानना इसी को अभक्त कहते हैं।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने सच्चे महात्मा के बारे में जाना, भक्त के बारे में जाना, अभक्त कौन कहलाता है? इसको पढ़ा। आशा है आप ऊपर दिया गया ज्ञान जरूर अच्छा लगा होगा। मालिक का आशीर्वाद सबको प्राप्त हो जय गुरुदेव।

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