Last Updated on January 23, 2023 by Balbodi Ramtoriya
महानुभाव जय गुरुदेव राम नाम की महिमा का क्या अर्थ है? गुरु की महिमा के अनमोल वचन, Name Ki महिमा का सत्संग, साधक के कर्तव्य साथ में मूर्ति पूजा पर महापुरुषों ने क्या कहा, जानते हैं नाम की महिमा और साधक का कर्तव्य, मूर्ति पूजा पर महापुरुषों ने क्या कहा? जानते हैं पोस्ट को पूरा पढ़ें, चलिए शुरू करें जय गुरुदेव,
नाम की महिमा (Name Ki Mahima)
नाम दो है। एक नाम जो जिभ्या से लिया जाता है इसी को जाप और वर्ण नाम कहते हैं। सारा संसार जाप लाम का सुमिरन करता है और उसका फल कुछ नहीं मिलता है। है ध्वन्यात्मक नाम, धुनि, आकाशवाणी ब्रह्मवाणी तुम्हारे आँखों के पीछे आती है इसका भेद गुरु से मिलेगा।
जब तक तुम्हें नाम प्राप्ति वाले गुरु नहीं मिलेगे तब तक जरा भी नाम का फल नहीं मिलेगा और तुम्हारी अन्तर की आँख भी नहीं खुलेगी। तुम्हें आवश्यक है कि तुम गुरु को खोजो और प्रार्थना करते हुए गुरु को प्रसन्न करो और नामदान लो। नाम (Name) तुम्हारे अन्दर में है।
नाम उस परमात्मा की आवाज है जो उसके मुंह से निकल रही है साधकों को चाहिए कि वह सुमिरन करने के बाद जब भजन पर बैठे उस समय पूरा ध्यान रखें कि शब्द की धार के साथ जुड़ते रहें और अपना मन किसी ओर न जाने दें। क्योंकि जब तक मन साधन के समय सुरत का साथ नहीं देगा तब तक सुरत नाम की (Name Ki) ध्वनि के साथ स्पर्श होकर साफ नहीं होगी।
साधक का कर्तव्य
नाम भेद गुरु के पास मिलेगा और किसी स्थान पर प्राप्त न होगा। मनुष्य जब गुरु के पास जावे तो उसे क्या करना चाहिए। उस जिज्ञासू को उचित है कि गुरु उपदेश से रास्ता प्राप्त करे। उसी समय लगन के साथ लग जाना चाहिए। गुरु साधनों में तब तक तुम्हें प्रोत्साहन देता रहेगा।
जब तक सुरत आँखों के ऊपर सिमिट कर प्रकाश में खड़ी नहीं होती है तब तक गुरु तुम्हीं से साधना करवायेगा और जब तक प्रकाश में सुरत नहीं पहुँचती तब तक पूरन गुरु हाते हुए भी व्यर्थ में साधक को सन्देह रहता है। रास्ता गुरु से साधन करने वाले जिज्ञासू को मिला कि बस अब हमारा काम खत्म है।
हमारा काम गुरु करें, हम कुछ नहीं कर सकेंगे। यह सर्वदा असत्य है। साधक को साधना निश्चित लगन और मेहनत के साथ काम, क्रोध लोभ को दूर करते हुए करनी होगी यदि साधक विवेक से साधन नहीं करता तो उसकी अन्तर में उन्नति नहीं होगी।
बहुत से उपदेश लेने वाले साधक गुरु के शब्दों पर ध्यान नहीं देते हैं। इस वजह से उन्हें साधना में उन्नति नहीं होती। साधक का प्रथम कर्तव्य है कि गुरु शब्दों पर विशेष ध्यान दें और जो कुछ कहें उसका पूर्ण अमल करे, तब परमार्थ में तरक्की होगी और सुरत अन्तर में सिमिट कर आँखों के पीछे आयेगी उस समय से साधक की उन्नति होनी प्रारम्भ होगी।
मूर्ति पूजा का कारण
एक आदमी ने पूछा कि स्वामीजी लोग मूर्ति पूजा क्यों करवाते है। मूर्ति पूजा लोग इसलिए करते हैं कि बाहर फैलाव है और ऐसा विश्वास में बैठा है। दूसरे ईश्वर का भेद लोगों ने खुद नहीं जाना तीसरे मूर्ति पूजा से लोगों की स्वार्थ सिद्धि प्राप्त होती है। एक रोजी का आधार बना रक्खा है। अब बेचारे इसलिए नहीं छोड़ते कि हमारी रोजी कैसे चलेगी। हम भूखों मर जायेंगे।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने यह जाना कि नाम क्या है? जिसे राम नाम कहते हैं Name Ki महिमा को जाना ।साथ में साधक की कर्तव्य के बारे में पढ़ा। आशा है आपको ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर पसंद आया होगा।
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