मन को पवित्र और खुश कैसे रखे, इस लाचार मन को जीतने की कहानी

महानुभाव जयगुरुदेव, यह मन बहुत ही चंचल है पता नहीं कब किस जगह पहुँच जाए, वर्तमान भूत भविष्य ना जाने कितनी कल्पनाओं के साथ सबसे तीव्र गति से चलने वाले इस मन की प्रवृत्ति से सभी वाकिफ हैं। महापुरुष मन को कंट्रोल करने को, मन को सही रास्ते पर लाने के लिए तरह-तरह की कहानियाँ और उदाहरण पेश करते हैं। ठीक उसी पर आधारित मन के बारे में कैसे क्या अच्छे कामों में और सही रास्ते पर मन को लगाया जाए, चलिए जानते हैं साहूकार की कहानी के साथ, जय गुरुदेव पूरा पढ़े हैं।

मन का स्वभाव

मन अनेक जन्मों के स्वभाव से अत्यन्त लाचार है क्योंकि इन्द्रिय द्वारों पर बैठ कर हर प्रकार का स्वाद लिया है और उन स्वभावों तथा आदतों को छोड़ने में मन बहुत दुखित होता है। बम्बई में स्त्री जिसको नाम भेद दिया, उसने मुझसे कहा कि स्वामी जी मैं भजन करूँगी और सिनेमा नहीं जाऊँगी। अपने सास ससुर की आज्ञा में रहूँगी और उनकी सेवा हर प्रकार से करूँगी। माता पिता का पूरा ध्यान रक्खूगी और अपने पति की आज्ञा का पालन करूँगी।

दैविक गुणों को अपना साथी बनाओ क्योंकि सबसे ऊँचे दर्जे के धनी ही मालिक कुल के दरबार में पहुँचते हैं। जिस प्रकार से कि बादशाहों के जहाज पर मैले कुचैले कपड़े पहिने मुसाफिर नहीं ले जाये जाते हैं इसी प्रकार सन्तों के रूहानी जहाज पर केवल निर्मल और नेक आत्मायें ही ले जाई जाती हैं। एक दिन सबको मरना है, इसलिये समय, निकल जाने से पहले अपनी आत्माओं के लिए एक अजर और अमर स्थान परलोक में क्यों नहीं सुरक्षित करते हो।

साहूकार की कहानी मन को लगाए

एक साहूकार अपने धन से बहुत-सा परोपकार करता था। अधिक समय गुजरने पर वह समय के चक्कर में आकर गरीब हो गया। स्त्री बच्चे मुहताजी में रहने लगे। किसी-किसी दिन भोजन भी नसीब नहीं होता था। दुःख से बहुत दुखी थे। दोनों प्राणी सोचने लगे कि भगवान क्या हमारा दिन अच्छा भी आयेगा?

परन्तु अच्छा दिन नहीं आया। जिसके राज्य में वह रहता था वह राजा सबका पुण्य अपने धन से खरीदा करता था। स्त्री ने अपने पति साहूकार से बात की कि हमारे बच्चे बहुत दुःखी हैं। आप क्यों न ऐसा करें कि जो पुण्य हमने अपनी सारी उम्र में किया है उसका फल इसी राजा से चलकर ले आवें।

स्त्री और साहूकार

स्त्री और साहूकार राजा के पास गये। राजा ने कहा कि राजन मैं अपना पुण्य बेचने आया हूँ।

राजा ने कहा कि आप इस शीशे के सामने खड़े हो ताकि आपको मालुम हो कि कितना पुण्य है और कितना आप बेचना चाहते हैं।

साहूकार और उसकी स्त्री शीशे के सामने खड़े हुए। तब उन्होंने देखा कि उनका कुछ भी पुण्य उस शीशे में न निकला। स्त्री बहुत दुखी हुई कि इतना करते हुए भी हमारा कुछ भी पुण्य न निकला अब क्या करें।

एक दिन उनके बच्चे भूख से पीड़ित और खुद स्त्री पुरूष दुखी थे। एकाएक एक आदमी उनको रोटी दे गया। जब स्त्री पुरुष उसको खाने के लिए बैठे तो बच्चा रो रहा था। बच्चे को एक टुकड़ा दे दिया। उसी समय एक कुत्ता भूखा आ गया।

स्त्री ने पुरूष से कहा कि हमारी तरह यह भी भूखा है इसमें परमात्मा की आत्मा है इसको एक टुकड़ा दे देना चाहिए। अपनी भूख को रोक दुखी कुत्ते को टुकड़ा दे दिया और आप भूखे रहे। क्या करें अपनी वेदना की तरह सेठ और उनकी धर्म देवी ने कुत्ते की भूख को मिटाया। वह कुत्ता खाकर चला गया।

कुछ दिन बीते मन में आया

कुछ दिन बीते स्त्री पुरुष ने बात की अब ऐसा करें कि फिर से राजा के यहाँ चलकर देखा जाय यदि भूल से पुण्य बन गया हो तो उसका फल ले लिया जावे। साहूकार फिर राजा के पास गया और कहने लगा कि अब हमारे पुण्य को लिया जावे। राजा ने कहा कि शीशे के सामने खड़े हो।

स्त्री पुरूष साहूकार उस शीशे के सामने खड़े हुए तो देखते हैं कि भूख से व्याकुल होकर रो रहे हैं, उसी समय एक रोटी किसी ने दे दिया उसको खाने ही जा रहे थे कि एक कुत्ता भूखा आ गया। सेठ जी अपनी भूख को रोककर उस संतप्त भूखे कुत्ते को अपने हक में से एक टुकड़ा दे रहे हैं।

यह एक पुण्य बना। राजा ने पूछा यह पुण्य सब दोगे? साहूकार को मालुम न था कि हमारा पुण्य इतना हो सकता है। उसने कहा कि हम सब देना चाहते हैं। जब पुण्य तराजू पर तौला गया तो राजा का सारा धन चढ़ गया और पुण्य का पलड़ा भारी रहा। भूखी आत्मा को खिलाने का अपार पुण्य होता है।

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साहूकार की समझ में आया

इस वास्ते भूखे को जरूर देना चाहिए। साहूकार की समझ में आया कि ऐसा पुण्य दुख उठाकर और दूसरी भूखी आत्मा को शीतलता पहुँचाई जावे कभी नहीं किया। राजा का धन उस साहूकार के पुण्य के तराजू पर चढ़ गया उसे भी दुख हुआ, वह तो पुण्य खरीदा ही करता था।

साहूकार उस धन को लेकर बहुत खुश हुआ और सारा धन भूखी आत्माओं की सेवा में अभिमान को त्याग कर लगा दिया। अपना न खाकर दूसरों की सेवा की अतः साहूकार स्वर्ग लोक को प्राप्त हुआ। आज की भौतिक दुनियाँ में लोगों के आँखों की शरम खत्म हो गई। प्रत्येक स्वभाव के लोग आपसी बर्ताव सदाचारी नहीं रखते हैं।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने मन को कैसे सही रास्ते पर लाया जाए, कैसे मन को शांत किया जाए और मन को खुश कैसे किया जाता, इसके बारे में कहानी के माध्यम से जाना। आशा है ऊपर दी गई जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी और अधिक पढ़ें। मालिक की दया को प्राप्त हो जय गुरुदेव।

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