मन तरंग को जो रोकेगा वही पारस मणि पा जावेगा

मन तरंग को जो रोकेगा वही पारस मणि पा जावेगा। अपने मन को बस में करने से अमर हो जाते हैं। मन में जब मणि का प्रकाश हो जावे, तभी तीनों लोक में उजाला ही उजाला हो जाता है। गुरु के वचनों में लीन जो भी होगा उसका आवागमन नष्ट निश्चय हो जावेगा।

मनुष्य तन मन मन्दिर है इसी में एक अलौकिक मणि है जिसे इसी तन रूपी मन्दिर में पहिचान लेना था। मणि इसी तन में दिव्य रखी है पता तो मणि का गुरु से मिलेगा। इसी तन में बज्र दरवाजा लगा है तभी तो सुरत जाग नहीं पा रही है क्योंकि भेद मालुम नहीं है।

मन तरंग
मन तरंग

मणि के प्रगट होने का दरवाजा

गुरु आपको मणि के प्रगट होने का दरवाजा बतायेगा। तन रूपी गढ़ में सुरत रूपी मणि छिपी हुई है सुरत रूपी मणि नाम के द्वारा जगेगी। बिना नाम के सुरत अन्धी है और रहेगी। सुरत की आँख खोलने का औजार नाम शब्द है। गुरु के पास जाओ देर मत करो सतगुरू जुगती व कुंजी देगा।

उसी वक्त वज्र किवाड़ खुलेंसे और वहीं मणि रोशनी करने वाली मिलेगी, उस मणि का महत्त्व है। ज्योति मणि को दूरबीन कहते हैं। चौदह भुवन तथा चौदह तबक एक पल में दिखाई देते हैं। तन रूपी मन मन्दिर में शिव रूपी नेत्र खुलने पर प्रकाश हो जाता है और मन की मलीनता का समूह एक छिन में जाता रहता है।

सुरत रूपी आत्मा में हंस के समान श्वेत प्रकाश हो गया और महान खुशी हुई। ज्ञान रूप दृष्टि प्रगट हुई, तथा ज्ञान के पंख प्रगट हुए तथा और तीनों लोकों की दृष्टि सुरत में हो गई। गुरु की कृपा का वार पार न रहा। निर्वाण पद को सुरत ने पा लिया।

नाम रसायन

जिन प्रेमी गुरूवर्ती जनों के पास गुरु का नाम रसायन है उनके पास सभी सुख सम्पदा मौजूद हैं। नाम का वह तेज है हैं। जिससे काम भी जगता ही नहीं है। जब काम नष्ट होता है तभी मणि मस्तक पर आ जाती है। नाम सूरज है जिससे भर्म नष्ट हो जाता है और नाम की घटा दोनों आँखों के ऊपर आकर छा गई है उसी के अन्दर अमी रस की वर्षा होने लगी आनन्द ही आनन्द बरसने लगा।

नाम की रसायन का सोमरस रोम-रोम में रम गया। इसी से भगवान मिला। जो भी नाम में लीन होगा वहीं ब्रह्माण्ड के परे सन्त देश के ऊपर अनामी पद को पावेगा। अनामी को पा लिया उसी का आना जाना खत्म हो गया। जो भी इस रस की महिमा जानेंगे और वास्तव में है भी। फीके योग यज्ञ जप तप पूजा पाठ होम तीर्थ करते हैं। गिना नाम के यह सब बथा हमने जाना।

साहब कहाँ है

जगत के मनुष्य अवतार में आने वाले अज्ञानी तू कहाँ-कहाँ परम पिता अनामी पुरूष की तलाश कर रहा है। जरा तो विचार। सन्तों में वह साहब छिपा हुआ है और किसी स्थान पर नहीं है। जहाँ-जहाँ सन्त जाते हैं वहाँ-वहाँ संग में स्वामी पीछे-पीछे फिरते हैं। दूर तलाश करने से दूर स्वामी रहते हैं।

जो मार्ग साहब का है उसके मार्ग को स्वामी नाम से सन्त जानते हैं। सन्तों की सेवा से सब कुछ मिलता जाएगा। अन्तर में ध्यान लगेगा और अनुपम घुनि आ रही है, उसमें तुम्हारी सुरत लग जाएगी। सुरत धुनि के साथ लगी कि परम सुख मिला इसी सुख की तलाश में सुरत भी है और मन भी तलाश रहा है। यदि तुम सुख पाना चाहते हो और जीव का कल्याण चाहते हो तो सन्तों के मार्ग में डूब जाओ।

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