रंग बिरंगी होली खेलने का मजा लेता है, लेकिन महात्माओं ने सच्ची होली खेलने का मजा अलग ही बताया है। होली कब है कैलेंडर तारीख के हिसाब से डिसाइड होता है। लेकिन आत्मा की होली जो सच्ची होली होती है वह उस परमपिता प्रभु या राधा-कृष्ण, सीता-राम अपने प्रिय के साथ जब चाहे तब खेल सकते हैं। यह तभी संभव हो सकता है जब हमें महापुरुषों से सच्चा रास्ता मिले, उस रास्ते पर चले, जिस रास्ते पर चलकर हम अपनी असली खुशियों को खोज कर उनके साथ रंगरलिया मना सकते हैं। चलिए महात्माओं ने (परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने) अपने सत्संग के माध्यम से असली होली के बारे में क्या कहा जानते हैं। जय गुरुदेव;
जो होना था वह हो ली
महापुरुषों ने होली क्यों मनाई कि जब कभी संसार में लोग बिचड़ते रहे संसार का रस आनंद लेती रहेगी तब तक होना है और जब महापुरुषों की शरण में आये तो जो होना था सो होली। अब जो कुछ होना था, आप जैसे भी जानो जो होना था सो हो लिया।
मीराबाई ने भी यही कहा। जब तज दिया उसके परिवार वालों ने बहुत सताया, जहर दिया, जो कुछ कहना था सो कह लिया। क्या कहा कि भाई, अब तुम क्या चाहती हो। जो होना था होली। जो कुछ होना था सो हो लिया।
अन्तर में प्राप्त होने के बाद कोई डिगा नहीं सकता
अब हमको कोई भी ताकत, ऐसी शक्ति नहीं है जो डिगा सके। इसलिए जो होना था सो होली समझ गये। तो होली असल में आप की नहीं है। जब आप किसी महापुरुष की संगत में जांय और सच्चा रास्ता अपने परमात्मा का पा जांय तो जो होना था सो होली। असली होली यह है और फिर जब इस दरगाह से इससे ऊपर जाए तो वहीं बहुत सुनहरे मण्डल, वह सुनहरी दिव्य रचना जिसे खेलते-खेलते थकते नहीं।
यहाँ यदि जरा-सा रंग छोड़ दिया जाए तो क्या लोग कहने लगते हैं कि भाई अब तो जाड़ा लगने लगा बहुत रंग खेल लिया। लेकिन खेलते-खेलते वहाँ तृप्त नहीं होते हैं। ऐसे खुशबूदार रंग खेले जाते है उन मण्डलों में जो गोस्वामी जी महाराज ने वर्णन किया।
रंग भूमि जब सिय पगु धारी,
देख रूप मोहे नर नारी।
यह सीता रूपी सुरत, जीव आत्मा जब उस चेतन ब्रह्माण्ड मंडल में जाती है तो इस रास्ते से यह निकल जाती है तो वहाँ होली खेलती है। रंग विरंगे गुलाल, फूल आदि की खुशबुएँ वहाँ छोड़ी जाती हैं और ऐसी-ऐसी बौछारें वहाँ चलती हैं जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। जिन प्रेमी ने बैठकर के इसे देख लिया है वह इस चीज को समझ लेते हैं।
यहाँ भी लोगों की आँख खुली है
इसमें यह बात नहीं है कि यहाँ के सतसंगियों ने, आजमगढ़ के जिले के, इन्होंने देखा नहीं? जो चीज मैं वर्णन करता हूँ उनकी ये आँख भी खुली यह अन्दरूनी कान वह भी खुला भगवान के आकाशवाणी को भी देखते हैं ऐसे ही बाबा जी के पास मखौल के लिए नहीं जाया करते हैं।
यह वह मजमून है यह वह सिद्धान्त है जिसमें आत्मायें होली खेला करती हैं और सदा होली खेलती रहती हैं वहाँ कभी परिवर्तन नहीं हुआ करता। तो ये क्या है जो हेना है सो होली तो इस रास्ते से जो निकल करके जाएँगे वह होली खेल लेंगे।
अगर इस रास्ते से निकल कर जीते जी उधर नहीं गया तो याद रखो कि वह होली फिर नहीं खेल सकता है। यह होलियाँ जो आज कल हम लोग मना लेते हैं और किसी भी त्यौहार को दिया करते हैं यह होली नहीं है। यह हम भूल गये होली मनाना। होली का आनंद कैसे ले? जानना बहुत जरूरी है|
सच्चा त्यौहार तो अन्तर में।
होली का त्यौहार यह सच्चा नहीं है। होली का त्यौहार वही होती है जहाँ सदा होली होती रहती है। दीपावली वही सच्ची है जहाँ सदा दीपक जलते हैं। वह दीपक जिसमें दिया बत्ती और तेल डालने की जरूरत नहीं। वहाँ सदा दीवाली रहती है और वह दीवाली भी मार्ग में आप को चेतन मण्डल में मिलेगी जहाँ कोई गैस नहीं जला सकता।
जहाँ कोई सूर्य पैदा नहीं कर सकता जहाँ कोई दीपक और घी नहीं पहुँचा सकता वहाँ सदा दीपक जलता है। भगवान के सुन्दर स्थान में सदा दीपक जलते हैं वह इस रास्ते में मिलते हैं।
स्वामी जी की वाणी
मौत से दिन रात डरते रहो। जन्मत मरत दुसह दुख हो इस दुख से बचने का कोई यतन करो। मौत के घाट से ऊपर आ जाओगे तो मौत की चिन्ता नहीं सतायेगी। जो साधक जीते जी मर जाते हैं वे दिन में हजार बार मरते हैं। उन्हें मौत का कोई खौफ नहीं रहता।
चार बातों का ध्यान रक्खो। कम खाओ, गम खाओ, कम बोलो और कम सोओ। तभी साधन भजन में तरक्की होगी। बेकार का बक-बक करते रहने से समय बर्बाद होता है इसलिए कम बोलो और सोच समझकर बोलो।
निष्कर्ष:
महानुभाव होली-होली जैसे पर्व के बारे में महापुरुषों ने अपने अंतर के रहस्य के बारे में बताया है। हम आत्मा और परमात्मा की होली खेल सकते हैं क्योंकि हमारा सच्चा प्रीतम प्रिय आत्मा का परमात्मा ही सच्चा मालिक है और उनके साथ हम आप सब महापुरुषों से रास्ता लेकर, उस पर चल कर के, हम उनके साथ रंग बिरंगी होली खेल सकते हैं। आशा है ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा। मालिक की दया सब पर बनी रहे जय गुरुदेव,
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