सुरत शब्द का अभ्यास कैसे किया जाता है? सर आप कहाँ बैठे हैं और अनहद नाद कैसे सुना जाता है स्वामी जी महाराज ने सत्संग के माध्यम से सब कुछ बताया है जानते हैं surat word practice और surt किस तरह लगती है?
सुरत शब्द का अभ्यास
नासिका के ऊपर दोनों भौवों के बीच में जो भृकुटी है उस जगह पर तीसरा नेत्र है। दोनों नेत्रों को बन्द करके अन्तरवृत्ति द्वारा जो तीसरे नेत्र में तिल है
उसमें सुरत को एक टक जमाना चाहिए जिस तरह चकोर चन्दा को देखता है। सुख आसन से बैठना चाहिए आलस्य निद्रा प्रमाद को कम रखना बहुत जरूरी है। भोजन सूक्ष्म कुछ भूख रखकर कम खाना चाहिए। असत्य भाषण कभी नहीं करना चाहिए। निन्दा और चुगुली से सदा बचना चाहिए।
छल, कपट, दम्भ पाखण्ड से सदा दूर रहना चाहिये। परधन परनारि पर अपवाद से सदा दूर रहना चाहिये। जो सदा सब प्राणियों की निन्दा करते और नाना प्रकार के दुर्व्यसनों में फंसे रहते हैं उनसे मेल-मिलाप कभी नहीं करना चाहिये।
सत्य और मधुरता शब्द उच्चारण
जिस कदर से अपने आप को श्री प्रभु ने शक्ति प्रदान कर रखी हो उसी के अनुसार सर्व प्राणियों की भलाई करने में तत्पर रहना चाहिये। प्रयोजन से अधिक बचनों को भी नहीं बोलना चाहिये।
जो। सत्य और मधुरता से पूर्ण हो वही sabdhy उच्चारण करना चाहिये। जो सत्य सिन्धु अनामी महाप्रभु की भक्ति करते हैं और अन्तरमुख अभ्यास में सदैव लगे रहते हैं उन्हीं प्राणियों से सतसंग व मेल मिलाप करना चाहिये। भृकुटी में सुरत जमाने के साथ-साथ दाहिने कान में अनहद शब्द के सुनने का भी अभ्यास करना चाहिये।
निष्कर्ष
स्वामी महाराज ने सत्संग के माध्यम से सब कुछ योगाभ्यास के बारे में बताया है और surat word practice पूर्ण बखान किया है, और अधिक सत्संग आर्टिकल पढ़ें।जय गुरुदेव
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