सतगुरू, सन्त, ईश्वर, योगी, माया, जीवात्मा, पिण्ड और ब्रह्माण्ड किसे कहते हैं?

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Last Updated on January 23, 2023 by Balbodi Ramtoriya

जयगुरुदेव: आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर महात्मा ही बतला सकते हैं, सतगुरु किसे कहते हैं? सन्त और योगी, माया और जीवात्मा, पिंड एवं ब्रह्मांड इसको क्या कहते हैं? कैसे जानेंगे तमाम प्रश्नों के उत्तर आध्यात्मिक सत्संग में सतगुरु सबकुछ बतलाते हैं। पढ़े पूरा,

1-प्रश्न-सतगुरू किसे कहते हैं?
उत्तर-जो हद बेहद सुन्न महासुन्न सर्गुण व निगुण को जानता है उसे सतगुरू कहते हैं। जो क्षर अक्षर नि: अक्षर व पांच ब्रह्म व, निर्माण के भेद को जानता है उसे सतगुरु कहते हैं। जो तुरिया और तरियातीत से परे सत्य सिन्धु अनामी की भक्ति करता है उसे सतगुरू कहते हैं।

जो अपनी शरण में आने वाले प्राणियों के समस्त संशय ग्रन्थि को छेदन करके अद्वितीय सनातन तत्व का प्रकाश करते हैं उन्हें सतगुरू कहते हैं। बिना प्रश्न किये ही जो नाना प्रकार के कुतर्को को छिन्न भिन्न कर देते हैं वे सतगुरू सनातन तत्व का प्रकाश करते हैं उन्हें सतगुरू कहते हैं।

जिसके समीप पहुँचने के पहले समस्त संकल्प विकल्प मिट जाते हैं उन्हें सतगुरू कहते हैं। जो अपने मधुर अमृत मय वचनों से अज्ञानान् कर को दूर कर देते हैं विविध ताप की पीड़ाओं को हर लेते हैं चिन्मय सनातन ब्रह्म ज्योति को जगा देते हैं उन्हे सतगुरू कहते हैं।

किसे कहते हैं

2-प्रश्न-दयाल भगवान किसे कहते हैं?
उत्तर-जो उत्पत्ति प्रलय पालनादि का कार्य नहीं करता है, सब जीवों पर दया करके मोक्ष करने के लिये लालायित रहता है उसका जीवन सदा सच्चिदान्द से पूर्ण रहता है।

3-प्रश्न-सिन्धु कितने प्रकार के हैं?
उत्तर-सिन्धु दो प्रकार के हैं। एक काल सिन्धु एक दयाल सिन्धु (भेद) काल सिन्धु से जीव कभी मुक्त नहीं होता और दयाल सिन्धु से जीव सर्वदा के लिये मुक्त होकर निर्वाणानन्द से पूर्ण हो जाता है इसलिये उपासना दयाल सिन्धु की वांछनीय है।

4-प्रश्न हद बेहद सुन्न, महासुन्न क्षर अक्षर, निःअक्षर नि अक्षरातीत पिण्ड ब्रह्माण्ड क्या है?
उत्तर। (हद पिण्ड) हट का वास पिण्ड में और बेहद का वास ब्रह्माण्ड में है। सुन्न अक्षर धाम और महासुन्न निःअक्षर पद में क्षर नाशवान माया कहलाती है। अक्षर अविनाशी आत्मा को कहते है। नि: अक्षर परब्रह्म परमात्मा को कहते हैं और निःअक्षरातीत सतपुरुष सत्करतार अनामी महाप्रभु को कहते हैं।

प्रश्नों का उत्तर

5-प्रश्न किस पद की भक्ति करने से काल खा जाता है और किस पद की भक्ति करने से जीवन मुक्त हो जाता है?
उत्तर-हद में सुन्न सर्गुण ब्रह्म की भक्ति करने से काल खा जाता है निःअक्षरातीत स्वरूप सतकरतार अनामी महाप्रभु की भक्ति करने से परम दयाल पद में यह जीवन चला जाता है फिर जन्म मृत्यु के बन्धन को कभी नहीं प्राप्त होता है।

6-प्रश्न-जीवात्मा का क्या स्वरूप है?
उत्तर-सच्चिादानन्द स्वरूप परब्रह्म परमात्मा की यह सनातन कला है इसलिये यह स्वयं अजर अमर अविनाशी नित्य मुक्त स्वरूप शुद्ध-बोध रूप सच्चिदानन्द स्वरूप है

7-प्रश्न-माया किसे कहते हैं?
उत्तर-यह स्वयं जड़ होकर परमात्मा की चेतन कला जीवन की सत्ता पाकर सब जीवन को मोहन देकर बाँध देती है यही उसका स्वरूप है।

8-प्रश्न-ईश्वर किसे कहते हैं?
उत्तर-जो एक है अद्वितीय है जो न बाल, न युवा है, न वृद्ध है, न स्त्री है न पुरुष है, न नपुंसक है न गर्भ में आकर जन्म लेता है, न मृत्यु को प्राप्त होता है जैसा पहले था वैसा अब भी है और भविष्य में भी वैसा ही रहेगा। अजर अमर अविनाशी नित्य मुक्त रूप शुद्ध बोध रूप अकह अनीह अनाम अरूप शास्वत सच्चिदानन्द स्वरूप है।

आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर

9-प्रश्न-जप और अजपा की गति कहाँ तक है?
उत्तर-हद और बेहद तक जप और अजपा की गति है। हद और बेहद के परे सन पद में न जप है न अजपा है।

10-प्रश्न-योगी किसे कहते हैं?
उत्तर-सहसदल कमल में जो निरंजन पद तक कमाई करते है उन्हें योगी कहते हैं 1

11-प्रश्न-योगेश्वर किसे कहते हैं?
उत्तर-अक्षर निःअक्षर पद तक की कमाई करने वाले को योगेश्वर कहते हैं 1

12-प्रश्न-सन्त किसे कहते हैं?
उत्तर-जो अक्षर निःअक्षर से परे, सुन्न महासुन्न से परे हद बेहद से परे, सर्गुन निर्गुण से परे सतपद का भेद जानकर सतपुरुष सत करतार अनामी महाप्रभु परम दयाल की भक्ति करते हैं उन्हें संत कहते हैं।

किसे कहते हैं

13-प्रश्न-भक्ति के कितने भेद है?
उत्तर-भक्ति तेरह प्रकार की है। नौ प्रकार नवधा भक्ति और दसवी अविरल भक्ति जिसे विशुद्ध भक्ति कहते हैं और ग्यारहवी भेद भक्ति और बारहवी अभेद भक्ति और तेरहवी अन पावनी भक्ति। इस भक्ति के भेद को जाने बिना जो भक्ति करता है उसे काल खा जाता है। सर्वप्रथम भेद को जानकर के ही अभेद को जाना जाता है।

14-प्रश्न-कौन कौन से मुकाम पर कौन-कौन से नाद होते हैं?
उत्तर-सहसदल कमल पर घंटानाद, बंकनाल में शंख ध्वनि, त्रिकुटी मुकाम में नगाड़े की ध्वनि, परवाज ढोल। दसवें द्वारा स्थान में मृदंग की ध्वनि, किंगरी, सारंगी सितार की ध्वनि। भवंर गुफा स्थान में बंशी की ध्वनि। मुकाम सत्य लोक में छ। राग और छत्तीस रागनी व दसों प्रकार के नाद बजते रहते हैं।

और पढ़े: मुख्य ध्येय स्वरूप ब्रह्म कौन हैं? सर्गुण व निर्गुण ब्रह्म का वर्णन

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