Swami Ji महाराज क्या कहते हैं? सत्संग में आना और आदेश का पालन करो, भजन करो (Bhajan Karo) तभी तुम कुछ समझ सकते हो। चलिए जानते हैं Param Sant बाबा जय गुरुदेव Swami Ji Maharaj ने अपने अनुयायियों को सत्संग (Satsang) के माध्यम से क्या-क्या बताया है? स्वामी जी महाराज (Swami Ji Maharaj) ने हमेशा सत्संग में बताया है कि दिन में काम (Din Me Kam) करो, अपने परिवार की सेवा (Parivaar Ki Seva) करो, मात पिता की सेवा (Mata-Pita Ki Seva) करो और शाम को समय निकालकर सुमिरन, ध्यान, भजन (Sumaran, Dhyan, Bhajan) जरूर करो।
Mahatama हमेशा जीवो की दया देखते हैं और इस संसार में आकर जीव फंसा हुआ है। परेशानियों को झेल रहा है और मुसीबतों के बीच रहकर महात्मा (Mahatama) सब कुछ देखते हैं। इसलिए Swami Ji महाराज ने अपने सत्संग के माध्यम से लोगों को कहा है कि स्वयं को देखो। पहले अपने आप को देखो कि हाँ हम सही हैं तब किसी को देखो। चलिए जानते हैं क्या कहते हैं Swami Ji Maharaj.
Swami Ji Meaning (स्वामी जी का मतलब)
महानुभाव यह जानकारी में अपनी तरफ से सांझा कर रहा हूँ कि (Swami Ji Meaning) स्वामी जी का मतलब क्या होता है? जैसे कि आप सभी जानते हैं कि जो Swami एक पति (Pati) के रूप को भी कहा जाता है और मालिक (Maliak) के रूप को भी कहा जाता है। स्वामी होता है जो हम सब का रखवाला और देखरेख करने वाला, दुख-सुख में मदद करने वाला Swami हैं। Ji एक सम्मानजनक शब्द होता है जो अपने से श्रेष्ठ, पूजनीय, सम्मानीय एवं (Ji) जी का मतलब एक समान हाजिर, इसलिए बाबा जयगुरुदेव को उनके भक्त स्वामी जी महाराज (Swami Ji Maharaj) जैसी सम्मान पूर्वक शब्द से याद करते हैं। तो Swami Ji महाराज का Meaning आप भली-भांति जान गए होंगे। चलिए जानते हैं सत्संग में Swami Ji महाराज क्या-क्या बताया है जय गुरुदेव।
तुम अपने को देखो (Aapne Ko Dekho)
हम सत्संग में आते हैं अपने को सुधारने (Sudharne) के लिये, अपना आत्म कल्याण (Aatma Kalyan) करने के लिये। सत्संग (Satsang) में आने का लक्ष्य तो यही है कि परमार्थ की प्राप्ति करें। अगर हम सब अपने निशाने (Nisane) पर रहें तो हमारे पास इधर-उधर देखने का समय ही नहीं रहेगा।
आते तो हम बड़े जोश खरोश के साथ हैं, परमार्थ के लिये (Parmarth Ke Liye) ही आते हैं लेकिन हमारा स्वभाव, हमारी आदतें (Hamari Aadte) हमारा मन हमें धोखा देने लगता है और हम काल माया (Kal Maya) के जाल में फंस जाते हैं कि अपने लक्ष्य से दूर हो जाते हैं।
Swami Ji Maharaj कहते है
महापुरूष (Swami Ji) बराबर यही समझाते हैं कि तुम अपने को देखो और जो तुम्हें आदेश दिया जाय उसका पालन करो (Aadesh Ka Palan) और भजन (Bhajan) करो। स्वामी जी महाराज (Swami Ji Maharaj) कहते है कि तुम किसी को समझाते हो तो ठीक है समझा लो लेकिन अगर उस पर कोई असर ही न होतो तम चुप हो जाओ,
उलझो मत क्योंकि यह तो खुला मंच है खुला दरबार (Darvaar) है, इसमें हर तरह के लोग आएंगे। महात्मा (Mahatma) सबको रखेंगे क्योंकि वह तो आए ही इसलिये है। सबकी भावनायें एक नहीं हो सकती, सबकी श्रद्धा एक नहीं हो सकती, सबका विश्वास एक नहीं हो सकता, सबकी भक्ति एक नहीं हो सकती, सब अपने-अपने तरीके से आते हैं और महात्मा सबको समभाव (Sambhao) में रखते है।
इसी संदर्भ में स्वामी जी महाराज (Swami Ji Maharaj) ने ये भी कहा कि महात्माओं में कुदरती अलौकिक शक्ति (Natural Supernatural Power) होती है इसलिए वह सबको अपनाते है। वह जानते हैं कि ये सब जीव (Jeev) भूले हैं, धीरे-धीरे समझ आएगी। जो नहीं समझेंगे उनकी वह जानें। महात्मा (Mahatma) अपनी तरफ से किसी को नकारते नहीं। ये काम इन्सान नहीं कर सकता।
महात्मा जी ने पूछा (Swami Ji Ne Pucha)
अपने को सुधारने की बात चली तो एक उदाहरण याद आया। एक आदमी एक महात्मा जी के सत्संग (Satsang) में गया। पूरे सत्संग के दौरान वह इधर उधर ये देखता था कि कौन क्या कर रहा है? किधर देख रहा है, सत्संग वचनों (Satsang Vachno) में उसका ध्यान नहीं था। सत्संग समाप्त हुआ तो महात्मा जी (Swami Ji) ने उससे पूछा कि कुछ समझ में आया? वह बोला कि हाँ। आपके सत्संग में सब चोर उचक्के और खराफात करने वाले बैठे है।
महात्मा जी बोले (Mahatma Ji)
Mahatma Ji (महात्माजी) ने कहा कि ठीक। सत्संग में आते रहो। वह सत्संग में (Satsang Me) आता रहा। अब उसका ध्यान धीरे-धीरे सत्संग के वचनों (Satsang Ke Vachno) पर लगने लगा। कुछ दिन बोता। महात्मा जी (Swami Ji) ने उसको बुलाया और पूछा कि कुछ समझ में आया। उसने कहा कि हा आप के सत्संग (Satsang) में सब अच्छे इन्सान बैठे है। महात्मा जी बोले कि ठीक सत्सग में आते रहो। वह सत्संग में आता रहा। महात्मा जी (Mahatma Ji) ने भजन का रास्ता बता दिया।
वह साधना (Sadhana) करने लगा। कुछ दिन और बीते। Mahatma Ji ने पूछा कि कुछ समझ में आया? वह बोला कि सत्संग में सब देवता (Devta) बैठते हैं। महात्मा जी बोले कि ठीक लगे रहो। वह सत्संग और भजन (Satsang Or Bhajan) में लगा रहा। कुछ दिन और बीते। महात्मा जी ने बुलाया और उसको पूछा कि समझ में आ गया? उसने कहा कि सत्संग में मालिक (Satsang Me Malik) रहता है।
कहने का मतलब ये कि कबीर साहब के शब्दों में:
आपे उरझे उरझिया दीखे सब संसार। आपे सुरझे सुरझिया, दीखे सब संसार॥
निष्कर्ष
महानुभाव सज्जनों आपने ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल के माध्यम से स्वामी जी महाराज ने सत्संग के माध्यम से क्या-क्या बताया है? और महात्मा जी (Mahatma Ji) की बात को यदि हम अपने जीवन में उतारते हैं तो इस शरीर रखने का मतलब पूरा हो जाता है। यदि Swami Ji Maharaj द्वारा बताए हुए आदेश का पालन करते रहे और सुमिरन, ध्यान, भजन करते रहे तो निश्चय ही मानव जीवन मैं इस जीव का आना सफल हो सकता है। आशा है Swami Ji महाराज द्वारा दिया गया सत्संग आपको जरूर अच्छा लगा होगा।
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