आध्यात्मिक जागृति के बढ़ते चरण का काफिला-जय गुरुदेव

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने 1952 से आध्यात्मिक जागृति का अभियान चलाया। तब से आज तक निरंतर बाबा जी अपने अभियान में लगे हुए हैं। धीरे-धीरे उनका अभियान अनेक अवरोधों प्रतिरोधों अफवाह को पार करता, आगे बढ़ता चला आया और बढ़ता चला जा रहा है।

बाबा जयगुरुदेव जी की बचपन कहानी Baba ji ka bachpan
बाबा जयगुरुदेव जी

संघर्ष ही संघर्ष हो गया (Struggle is a struggle)

शुरू शुरू में हम बाबा जी की बातों को नहीं समझ पाते थे। जबकि सच यह है कि उनकी वाणी उनके संदेश हमारे आध्यात्मिक कल्याण के हैं। संतों की वाणी में आता है। “जो नहीं होते संत जान, डूब जाते संसार” वर्तमान में इस वाणी की महत्ता विशेष रूप से है। क्योंकि 50 साल में बड़े-बड़े जागरण के अभियान चलाए गए, सब को उनके अधिकारों को समझाया गया।

परिणाम में हुआ कि अधिकारों की लड़ाई छिड़ गई, समाज में, देश में, परिवार में घर-घर में और कर्तव्य पीछे छूटते चले गए, सब के दायरे छूट गए, सब ने अपनी सीमा तोड़ दे, सब के बंधन टूट गए और संघर्ष ही संघर्ष हो गया है।

अधिकारों की लड़ाई शुरू हो गए, आजादी के साथ ही लगाया गया। यह संघर्ष का बीज फैल गया और चारों तरफ़ यह दिखाई पड़ रही है। काम ठप, फैक्ट्रियाँ कल कारखाने ठप, आए दिन आंदोलन हड़ताल तोड़फोड़ आगजनी अब हर कोई जाग उठा है।

फरवरी 2003 को बुंदेलखंड की यात्रा (Visit to Bundelkhand in February 2003)

वहाँ किसी वर्ग का हो, किसी कौम का हो, किसी प्रांत का हो, शहर को हो, या गाँव का हो, परिणाम आज हम आप सब देख रहे हैं। कितनी जल्दी-जल्दी बदला, यह सब आजादी के जागरण अभियान में कितना सब कुछ उलट पलट दिया कि हम ऐसे दोराहे पर भौचक्के खड़े हैं। कि किधर आजादी हमको ले जाएगी या समझ नहीं पा रहे हैं।

5 वर्ष बाद बाबा जयगुरुदेव जी ने अपने काफिले के साथ 3 फरवरी 2003 को बुंदेलखंड की यात्रा पर निकल पड़े, साथ में 53 गाड़ियों थी। इटावा, हमीरपुर, सतना, चित्रकूट, इलाहाबाद आदि स्थानों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सत्संग सुनाया और 1 मार्च को मथुरा आश्रम पर आ गए,

स्वामी जी ने सत्संग में कहा कि पहले मैं कुछ कह देता था। लेकिन 5 साल में कुछ भी कहना बंद कर दिया, अब यह कहता हूँ कि तुम चलो जितना इकट्ठा करो, कोई तुम्हें रोकता नहीं है। मन में कोई ख़्वाहिश ना रह जाए, लेकिन इतना याद रखो कि जब यहाँ से तुम जाने लगोगे तो सब यही छोड़ कर जाना होगा।

वर्ष 2003 का दूसरा काफ़िला (Second convoy of the year 2003)

वर्ष 2003 का दूसरा काफ़िला 26 मार्च को निकाला और पांच प्रांत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात तथा राजस्थान में गए और 3 मई को वापस आ गए। बाबा जी के संदेश को सुनने के लिए, क्या गाँव, क्या शहर, क्या पढ़ा, क्या अनपढ़ सब लोग आए, मीलों लंबी कतार सड़क पर दोनों तरफ़ बाबा जी के दर्शन के प्रतीक्षा करती थी।

जगह-जगह भव्य स्वागत हुए, शुद्ध आध्यात्मिक और धार्मिक संदेश ने भटकती जनता को एक राह दिखाई. मानव धर्म क्या है? और आध्यात्मिक धर्म क्या है? इसका बाबा जी ने विस्तार से अपनी सीधी और सरल भाषा में समझाया। बाबा जी के संदेशों ने अच्छे-अच्छे विद्वानों के दिल दिमाग़ को झकझोर दिया।

आजादी के नाम पर हमने क्या खोया और क्या पाया। यह आम लोगों की समझ में आ गया। काफिले में 500 से अधिक गाड़ियाँ चल रही थी, तीसरा काफ़िला उत्तर प्रदेश का था जो 13 मई को मथुरा से निकला अनेक जिलों में अपना सत्संग सुनाते हुए बाबा जी ने 15 जून 2003 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुँचे। जहाँ इसका समापन हुआ।

बाबाजी का काफ़िला इटावा (Babaji’ s convoy Etawah)

बाबा जी के साथ कारों जीपों मेटाडोर तथा अन्य वाहन की बड़ी संख्या में थे, बाबाजी का काफ़िला इटावा जिले के मुलायम सिंह समाज पार्टी अध्यक्ष के गाँव पहुँचा, तो गाँव वालों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस गाँव में प्रधानमंत्री आ चुके हैं। उनके साथ इतनी गाड़ियाँ नहीं थी जितनी बाबा जी के साथ आई थी।

साथ चल रहे गाड़ियों की गिनती बहुत लोगों ने कोशिश की उन्हें सफलता नहीं मिली, जिस रास्ते से काफ़िला गुजरता सड़क के दोनों ओर लंबी-लंबी कतार दर्शनार्थियों की खड़ी रहती थी, गाँव के लोगों में श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा था। साइकिल की संख्या हजारों में थी।

गांव की स्त्रियाँ अपने-अपने घर से रोटी बना का प्रेमियों के लिए लाती थी। स्वामी जी ने उनसे कहा एक-एक रोटी तुम लोग खाओ उसका जवाब था, एक रोटी लाना हमारे यहाँ अशुभ माना जाता है। इसलिए तो इसलिए हम दो लाएंगे ही, रोटियाँ दो से ज़्यादा ही रहती, स्वामी जी महाराज ने कहा एवं रोटियों के बदले में उन्हें क्या दूंगा, उन्हें आगे मालूम होगा।

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लखनऊ में प्रेमियों की इच्छा (Lovers wish in lucknow)

किसी किसी रास्ते पर तो गाँव की सारी स्त्रियाँ पीले कपड़ों में काफिले में स्वागत करती नज़र आई, इस तरह है से जनमानस में श्रद्धा भावना को भरता हुआ बाबा जी का आध्यात्मिक जागरण का काफ़िला लखनऊ पहुँचा। लखनऊ में प्रेमियों की इच्छा थी कि पड़ाव अंबेडकर मैदान में रखा जाए, जो इस समय लखनऊ का सबसे बड़ा मैदान माना जाता है।

लेकिन कुछ कारणवश वह पड़ाव ना नहीं लिया गया। काफिले का पड़ाव अमौसी हवाई अड्डे के पास विशाल मैदान में पड़ा। काफ़िला अंबेडकर मैदान से गुजरते हुए, हवाई अड्डे की तरह चल रहे प्रेमियों ने बताया कि जो जन उपस्थित थी, लखनऊ उसको देखते हुए अंबेडकर मैदान बहुत छोटा था। पढ़ाओ का मैदान बहुत बड़ा था।

लेकिन खचाखच भर गया, जगह-जगह से आई बसें की कतार वाहनों की कतार लगी थी। जिसकी गाड़ी थोड़ी देर से पहुँची उसे पीछे ही रोकना पड़ा। साथ चल रहे प्रेमियों की जो अभी पीछे ही थे और सड़क जाम हो गई थी लखनऊ के इतिहास में अभी तक इनकी जन उपस्थिति कभी किसी जनमानस से सभा में नहीं हुई.

गाँव की देवियाँ जो रोटियाँ लाई (Village ladies who brought loaves)

स्वामी जी महाराज ने बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी होकर हंसते हुए कहा कि वह जिधर देखो। उधर से ही सिर ही सिर दिखाई पड़ता था। अंदाज़ लगाना मुश्किल था अनुपस्थिति लाखों पार कर रही थी। या करोड़ों पार कर रही थी। लोगों का अनुमान था कि डेढ़ करोड़ से कम लोग अधिक नहीं रहे होंगे।

लखनऊ में 3 भंडारी चल रहे और गाँव की देवियाँ जो रोटियाँ लाई थी। वह जो भी खाना खाने गया। उसको ना नहीं कह गया, एक बात अब विशेष नज़र आई कि जो लोग भी आए उन्होंने बाबा जी को पूरी बात सुनी। बीच में कोई उठकर नहीं गया। यह दृश्य हर पड़ाव पर देखने को मिला। ऐसा लगता था कि जनता अब एक नए रास्ते चाहती है। Read भगवान के ज्ञान की बातें सच्चा और अच्छा विचार कैसे बनाएँ?

जो उसे सुख और शांति दे, लड़ाई वाले, नफ़रत फैलाने वाले, मारकाट करवाने वाले, भाषण से सब लोग ऊब गए हैं। हमें याद आता है कि एक बार स्वामी जी महाराज ने कहा कि भारत की आम जनता मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भरना चाहती है। बस उसे न्याय सुरक्षा मिल जाए. राजा मंत्री कोई बने, अब वह चीज दिनोंदिन जनमानस में उभरती जा रही है।

कानपुर के प्रेमियों का काफिले स्वागत (Kanpur lovers welcome the convoy)

कानपुर के प्रेमियों ने काफिले का स्वागत हेलीकॉप्टर से फूल बरसा कर किया, लखनऊ का समापन कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ। राजधानी लखनऊ में एक नया इतिहास रचा फिर एक पुरानी बात दोहरा नी पड़ेगी कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ वहाँ पर इतने विशाल कार्यक्रम का आयोजन, जहाँ पर श्री लालजी टंडन भी पहुँचे पर मीडिया मौन रही कुछ थोड़ा बहुत निकाला।

उनकी आवाज़ कितनी दूर तक जाती लेकिन जो चैनल ख़बर देने में सबसे आगे रहते थे। सबसे तेज हैं सबसे पहले ख़बर देने का दावा करते हैं, उन लोगों की नज़र वहाँ नहीं पड़ी। फिर यहाँ भी दोहराना पड़ेगा कि इतनी चश्मदीद गवाहों को किसी मीडिया की मोहताज नहीं है। यह खुदाई आवाज़ कैसे किस को बुलाती है।

हम आप जैसे साधारण इंसान क्या समझेंगे, यह तो वह बुलाने बाला जानता है कि कैसे किस को बुला लेता है। एक गाँव के पड़ाव पर गाँव की औरतें आई प्रेमियों के लिए रोटी बना कर लाए थे, उनमें से कुछ औरतों ने बाबा जी को जब देखा तो कहा यह तो वही बाबा है।

आध्यात्मिक जन जागरण के लिए (For spiritual awakening)

जो सांझ के आए और कह गए हो कि तुम लोग एक रोटी लाना, स्वामी जी महाराज ने कहा अभी तो मैं जीवो को जगाने का काम कर रहा हूँ। 15 दिन में कर्नाटक में समय दूंगा वहाँ मेरी भाषा सब लोग समझते हैं। उनके बाद मौसम ठीक रहा तो उत्तर प्रदेश के जिले बच गए, वह भी उनका कार्यक्रम करूंगा। लखनऊ में इसका समापन हो रहा है।

उत्तर प्रदेश तथा उत्तरांचल के आध्यात्मिक जन जागरण व जीवात्मा के कल्याण के लिए चौथा काफ़िला 30 सितंबर 2003 को मथुरा से बाबा जयगुरुदेव जी ने निकाला, जिस का समापन 29 अक्टूबर 2003 में वाराणसी में हुआ।

स्वामी जी ने अपने संदेश में कहा कि दुनिया के काम ना कभी कम हुए हैं ना कम होंगे। इसलिए जितना ज़रूरी है उतना करो, बाक़ी अपना काम करो। अपना काम यही है कि अपनी जीवात्मा के लिए भी कुछ कर लो, तुमने अभी नहीं पड़ा किताबों में तुम्हें अकेले आए हो और अकेले जाओगे, जैसे अज्ञान में आए वैसे ही अज्ञान में जाओगे।

अन्न का बड़ा असर होता (Food would have a big impact)

जैसे ही वहाँ आवाज़ देगा कि चलो हम लेने आ गए, तो फौरन बुद्धि पागल हो जाएगी। देखना सुनना सब बंद हो जाएगा। सब ज्ञान ख़त्म हो जाएगा। सच तो यह है कि विश्वास तुमको किसी का भी नहीं है लेकिन कहते भर हो कि हम देवी मानते हैं देवता को मानते हैं, बस देखा देखी करते हो,

मेहनत मशक्कत की कमाई खाओ, अन्न का बड़ा असर होता है। उसका असर भजन ध्यान पर भी पड़ता है, भजन को खराब कर देता है जय गुरुदेव गुरु का काम है ठगों से बचाना जो तुम अपना समय दुनिया वालों के साथ बेकार की बातों में बर्बाद करते हो, उससे तुम्हें वह बचकर भजन में लगा देना चाहिए ।जय गुरुदेव

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