नैमिषारण्य बाबा जयगुरुदेव गुरु पूर्णिमा सत्संग कार्यक्रम 1997

बाबा जयगुरुदेव जी की बचपन कहानी Baba ji ka bachpan
बाबा जयगुरुदेव जी

जय गुरुदेव समस्त महानुभाव परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा 13 से 22 जुलाई 1997 को 10 दिन का सत्संग कार्यक्रम उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 100 किलोमीटर पश्चिम-उत्तर की तरफ़ सीतापुर जिले में स्थित नैमिषारण्य में जो सत्संग कार्यक्रम किया। उसके महत्त्वपूर्ण अंश यह पोस्ट में आप पढ़ेंगे। शुरू करें।जय गुरुदेव

नैमिषारण्य में बाबा जयगुरुदेव

महानुभाव नैमिषारण्य की पावन भूमि पर बाबा जयगुरुदेव जी ने गुरु पूर्णिमा का महान पर्व 13 से 22 जुलाई 1997 को 10 दिन तक मनाने का निश्चय किया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 100 किलोमीटर पश्चिम उत्तर की तरफ़ सीतापुर जिले में स्थित नैमिषारण्य जो अब नीमसार के नाम से जाना जाता है।

इसके आसपास के स्थानों से जुड़े अनेक ऐतिहासिक प्रसंग है। 88 हज़ार तपस्वियों की तपोभूमि नीमसार। वेद व्यास की निवास स्थली नीमसार। ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यास जी ने वहीं से वेदों का प्रचार किया था। नीमसार से 10 किलोमीटर पर स्थित मिश्रिख जहाँ दधीचि मुनि की दान कथा इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है।

उन्होंने अपनी हड्डियों का दान किया था वह स्थान वहीं पर नीमसार में स्थित है चक्रतीर्थ है। ‘चक्रतीर्थ’ । किवदंती है कि ब्रह्मा ने एक मानस चक्र चलाया जो आकर उस स्थल पर गिरा जिसे आज चक्रतीर्थ कहते हैं ब्रह्मा का को वेद कर पाताल में चला गया।

नैमिषारण्य गोलाकार कुंड

वहाँ से पानी का स्रोत फूटा और यह जन विश्वास है कि वह पानी का स्रोत आज भी उसी अनवरत गति से प्रवाहित हो रहा है अब वहाँ पर गोलाकार कुंड बना दिया गया है जहाँ तीर्थयात्री स्नान करते हैं ऐसा भी कहा जाता है कि वेदव्यास जी ने उसी स्थली पर कभी कहा था कि यह ब्रह्मा अहंकार मत करो।

एक वक़्त आएगा जब तुम्हें ज़मीन पर बैठना पड़ेगा और तुम उनकी हाँ हजूरी करोगे जो अभी तुम्हारे सामने झुकते हैं योगियों की वाणी झूठी नहीं होती है जो कह गए वह कभी ना कभी सख्त सिद्ध होती है 88 हज़ार ऋषि यों ने जो धर्म को बचाने का मंत्रणा की थी।

वह भी बड़ी महत्त्वपूर्ण थी और ऐसा लगता है कि उनकी सारी मंत्रणा विचार गोष्ठियों 150 55 वर्षीय लोकतंत्र के लिए थे, क्योंकि जन्म लेने के साथ ही इस लोकतंत्र ने धर्म-कर्म मान मर्यादा आदर सम्मान प्यार मोहब्बत समाचार सबको पैर से मारना शुरू कर दिया था जो आज अपनी चरम सीमा पर है।

साधु संतों पीर फ़क़ीर की महानता

मंदिर खतरे में पड़ गया मस्जिद खतरे में पड़ गए गुरुद्वार खतरे में पड़ गया जाति बिरादरी खतरे में पड़ गई देवी देवता भगवान का तो अस्तित्व ही ख़त्म हो गया और रहे संत महात्मा पीर फ़क़ीर उन्हें तो इस लोकतंत्र ने गया गुज़ारा बताया लेकिन यह भारत भूमि है धर्म भूमि है।

इसलिए यहाँ वह सब कुछ रहेगा जो सनातन पुरातन मान मर्यादा आदर सत्कार रहेगा साधु संतों पीर फ़क़ीर की महानता रहेगी और देवी देवता भगवान खुदा की एक कभी किसी के नकारने से ख़त्म नहीं हो जाएगा हाँ यह बात अलग है कि इनकी शक्ति को नकारने वाले अपने ही अस्तित्व को नकार बैठे हैं।

इस समय कुछ विशेष महत्त्व का है परिवर्तन के उभरते संकेत का है एक योग के आने और दूसरे योग के जाने का है जय गुरुदेव बाबा ने बहुत पहले आवाज़ उठा दी थी कलयुग में कलयुग जाएगा कलयुग में सतयुग आएगा एस तपस्थली से कलयुग के जाने का भी संकेत मिलेगा और कलयुग में सतयुग आने की भी आहट सुनाई देगी।

सत्य को अंकुरित करने के लिए

सत्य को अंकुरित करने के लिए जय गुरुदेव बाबा ने कर्म प्रशिक्षित महामानव जात आती कुंभ का आयोजन नैमिशराय की तपोभूमि पर किया है बाबा जी ने जगह-जगह सत्संग में कहा कि आप चूको मत मैं सब का आह्वान आव्हान करता हूँ ऐसा दृश्य और ऐसा योग हजारों साल में नहीं पढ़ा होगा।

मैं तो समझता हूँ कि 5000 साल में ऐसे आती महामानव कुंभकरण प्रेषित का अभी तक नहीं लगा नैमिशराय की पुण्य भूमि पर सतयुग आने के चिह्न प्रारंभ होंगे देश और दुनिया में भारी परिवर्तन होगा आगे अति दुर्गम कष्टदायक समय आ रहा है।

नीमसार में पहुँचकर में रचित हेतु याचना करो जब तक कर्मों की माफी नहीं होगी आपको छुटकारा होने वाला नहीं है माफी होने पर मनोकामना पूरी होगी कितने लोगों की बीमारी दूर होगी बुराइयाँ छूटेंगे लगे हुए भूत बेताल छूटेंगे अन्य मुसीबतों में मदद मिलेगी।

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पोस्ट निष्कर्ष

महानुभाव इस आर्टिकल में परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने जो सत्संग कार्यक्रम 13-22 जुलाई 1997 को 10 दिन का सत्संग कार्यक्रम किया और उस सत्संग कार्यक्रम में नैमिषारण्य के बारे में जानकारी दी, जो इस आर्टिकल में आपने पढ़ी। आशा है यह (नैमिषारण्य) नीमसार की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, अपने दोस्तों के साथ इस आर्टिकल को सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें, जय गुरुदेव

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