महानुभाव जयगुरुदेव इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे, परम संत बाबा JaiGuruDev जी महाराज द्वारा सत्संग वाणी, जो महात्मा की सत्संग आम लोगों के ऊपर केस प्रभाव डालते हैं। वास्तव में महात्माओं के द्वारा दिया गया संदेश हमारे जीवन को बदल सकता है और हम एक अच्छे मार्ग पर चल सकते हैं। बशर्ते हमारा उद्देश होना चाहिए महात्माओं के निर्देशों का पालन करना। इस Post मैं आपको महापुरुषों के द्वारा दिए गए कुछ जीवन में मुख्य ध्येय क्या है? परमात्मा की सत्ता पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए यही हमारे जीवन का मुख्य ध्येय होना चाहिए, चलिए जानते हैं पर परमार्थी वचन संग्रह के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश,
सहायक सदा परमात्मा रहता है
कभी किसी के प्रति द्वेष कभी मत करो। द्वेष करोगे तो तुम्हारे मन में बैर, हिंसा आदि अनेक नये-नये पापों के संस्कार उत्पन्न हो जावेंगे। फिर उसका मन भी शुद्ध नहीं रहेगा। फिर इसका परिणाम क्या होगा? तुम्हारे और उसके बीच राग द्वेष पैदा हो जावेगा, तत्पश्चात् सदा दोनों का हदय जलता रहेगा। इसी जलने से कभी भी ईश्वर का नाम न ले सकोगे।
दूसरे के द्वारा तुम्हारा थोड़ा-सा भी भला हो अथवा तुम्हें सुख पहुँचे तो उसका हदय से उपकार मानो, ऐसा न सोचो कि उसका मेरे ऊपर क्या उपकार है? वह तो निमित मात्र है बल्कि यह जानो कि उसने निमित बनकर तुम पर बड़ी ही दया की है।
उसके उपकार को जीवन भर याद रक्खो, समय बदल जानेसे उसे भूल न जाओ और सदा उसकी सेवा करने और सुख पहुँचाने का प्रयास करते रहो। काम पड़ने पर हजारों मनुष्यों के सामने भी उसका उपकार स्वीकार करने में संकोच न करो।
ऐसा करने से परस्पर प्रेम पैदा होता रहेगा, आनन्द और शान्ति की वृद्धि होगी। लोगों से दूसरे को सुख पहुँचाने की शक्ति और आधिकाधिक पैदा होगी, सहानुभूति और सेवा भाव उत्पन्न होगे। याद रक्खो सेवा करके जो मनुष्य लोगों की निगाहों में कृतज्ञ होता है उसका आदर्श कभी नहीं गिरता है। सेवा की भावना और प्रबल हो उठती है और उसका सहायक सदा परमात्मा रहता है जो उसे अपने शक्ति से प्रोत्साहन देता रहता है।
अपने दोषों को देखने की आदत डालो
हमें जो दूसरों में दोष दिखायी देते हैं उसका मुख्य कारण हमारी चित्त की दूषित भावना ही होती है। अपने चित्त को निर्दोष बना लो फिर संसार में दोषी बहुत ही थोड़े दीखेंगे। सदा अपने दोषों को देखने की आदत डालो।
बड़ी ही होशियारी से अपने मन के दोषों को देखो, तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हारा मन दोषों से भरा है। फिर तुम्हारी यह दशा होगी कि दूसरे के पाप देखने की फुरसत ही नहीं मिलेगी। जीवन बहुत थोड़ा है सबसे प्रेम पूर्वक हिलमिल कर चलो और सबसे शुद्ध बर्ताव करो।
मधुर वाणी का विस्तार करते जाओ, विष की बूंद कहीं न डालो। तुम्हारा प्रेम-पूर्ण व्यवहार अमृत और द्वेष पूर्ण व्यवहार विष है। यदि क्षण भर के लिए कोई मनुष्य तुमसे मिले तो अपने प्रेम पूर्ण सरल व्यवहार से उसके हदय में अमृत भर ले।
होशियार रहो तुम्हारे पास से कोई विष न ले जाये। हदय से विष निकाल कर अमृत भर लो। पग-पग पर केवल वही अमृत वितरण करो। जाति वर्ण विद्या धन या पद में तुम बड़े हो इसलिए तुम अपने को बड़ा मत समझो। हमेशा याद रक्खो सबमें एक ही प्रभु रह रहा है।
परमात्मा की सत्ता पर पूर्ण विश्वास रक्खो
व्यवहार में सब प्रकार की समता असम्भव और हानिकारक है। इससे व्यवहार में आवश्यकतानुसार विषमता रखते हुए भी मन में समता रक्खो। आत्म रूप से सबको एक ही समान मानो। किसी को अपने से छोटा समझकर उससे घृणा न करो और अपने बड़प्पन का अहंकार ही न आने दो।
बड़ा और उच्च वही है जो अपने को सबसे छोटा मानता है। इस मंत्र को सदा याद करते रहो। परमात्मा सदा तुम्हारे साथ है इस बात को किसी काल में मत भूलो। परमात्मा को साथ जानने का भाव तुम्हें निर्भय और निष्पाप बनाने में बड़ा मददगार होगा।
यह संकल्प नहीं है। सचमुच ही परमात्मा सर्वदा सबके साथ हाजिर नाजिर है। परमात्मा की सत्ता पर पूर्ण विश्वास रक्खो जिस दिन परमात्मा की सत्ता का पूर्ण विश्वास हो जायेगा उस दिन तुम पाप रहित होकर परमात्मा के सम्मुख पहुँच जाओगे।
कुसंग से सर्वदा बचना चाहिए और सतसंग का सदा आश्रय लेना चाहिए, विषयी मनुष्य का संग तो बहुत ही हानिकारक है। चैतन की बात ही जुदा है। मन और इन्द्रियाँ सदा जड़ पदार्थ में लगी रहती हैं। इनसे विषयी मनुष्य को चेतन। का भान नहीं होता है और कुकर्म करके विषयी चौरासी में सदा के वास्ते चला जाता है।
भूल कर भी न करनी चाहिए
परमात्मा के विरोध की बात कभी भूल कर भी न करनी चाहिए और न परमात्मा के भक्त जनों की निन्दा करना चाहिये। यही सबसे बड़ा पाप है गुण दोष सबमें रहते हैं गलती सभी से हो जाया करती है। यदि तुम किसी का काम देखते ही दोष देखने लगोगे तो तुम्हारी मनोवृत्ति आगे चलकर बहुत ही खराब हो जायेगी।
तुम्हें नेक से नेक कामों में भी दोष ही दीखेगा। खुद दुःख पावोगे और दूसरों को दुःख पहुँचावोगे। इसके एवज में तुम गुण देखोगे तो तुम्हारी मनोवृत्ति शुद्ध रहेगी और तुम्हारा चित्त मन शान्त रहेगा। सबमें गुण देखने की आदत डालो, फिर तुम्हें स्वयं अनुभव होगा कि कितना आनन्द मिलता है।
इज्जतदार बनो, सच्ची इज्जत क्या है? पहिले इस बात को जानो। अन्याय से धन कमाकर भी धन की वजह से मनुष्य इस दुनियाँ में इज्जतदार कहला सकता हैं। लेकिन परमात्मा के यहाँ उसकी इज्जत नहीं है। यहाँ निर्धनता से जीवन बिताने वाला मनुष्य संसारी निगाह से गिरा हुआ भी सत्य धर्म के मार्ग से नहीं गिरता तो वही सच्चा इज्जतदार हैं।
मान बड़ाई के लालच में धर्म को छोड़ न दो मान धर्म को बचा लो। बड़ाई को तलुओं तले कुचल डालो पर सत धर्म को बचा लो, धन, मकान, विद्या, मनुष्य आदि के बल पर अहंकार न करो, यह सब पल भर में नष्ट हो जाता है सत्य बल ईश्वर बल है।
मनुष्यों का शारीरिक पतन हो चुका
जहाँ किसी अस्पताल, डाक्टर वैद्य आधिक हो वहीं समझो कि मनुष्यों का शारीरिक पतन हो चुका है। जहाँ वकील ज्यादा हों और अदालत में भीड़ रहती हो तो समझों कि वहाँ मनुष्य की ईमानदारी खत्म हो चुकी है और जहाँ गन्दी पुस्तक और साहित्य बिकता हो अच्छी तरह समझो कि वहाँ मनुष्य का नैतिक पतन हो चुका है।
केवल दवा और अस्पतालों से रोगों का जाना असम्भव है। रोग मन बुद्धि व इन्द्रिय संयम से जाते हैं। संसार के नाकिस विषयों की आग जल रही है इसी आग में मनुष्य अपनी मन इन्द्रियाँ जला रहा है और इसके साथ जीव दुख पा रहा है।
सतसंग से इन्द्रियाँ दमन और मन की शुद्धि होती है अतः कुसंग त्याग कर सतसंग का सेवन करना चाहिए, वकील और अदालत से ही झगड़ों की जड़ नहीं कटती। झगड़ों की जड काटने के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि ईमानदारी से तुम दूसरे का हक मारने की आशा छोड़ दो,
प्रभु के प्रेम को प्राप्त करना ही मनुष्य जीवन का मुख्य ध्येय है। इस बात को याद रखना चाहिए कि प्रभु की प्राप्ति गुरु की कृपा ही से होगी। उनके चिन्तन में चित्त रखो उनकी प्रत्येक देन को सिर चढ़ाकर प्रेम से स्वीकार करो उनकी प्रत्येक आज्ञा का पूरा-पूरा पालन करो और उनसे कुछ न माँगो केवल चरनों का आधार मांगो।
निराशा ही तुम्हारे सुख का कारण
एक दिन जरूर मरना है इस बात को भूलो मत। मृत्यु के भयानक संकट को याद रखो। मरते हुए मनुष्य के शरीर की घृणित दशा को याद करो। उसके दुख से भरे हुए निराश नेत्रों की भयानक ता का ध्यान करो 1 दिन तुम्हारी भी यही दशा होने वाली है।
मनुष्य की विपदा से एक बार डर होगा, रोग होगा, संसार में अंधकार दिखाई देगा निराशा होगी। परंतु इससे घबराना मत निराशा ही तुम्हारे सुख का कारण होगी। इसी से तुम प्रभु का दर्शन कर सकोगे वह इसी निराशा से जगत में ईश्वर को प्राप्त करने वाले भक्त जनों की पहचान कर सकेंगे।
प्रभु पर कभी अविश्वास ना करो यह सबसे बड़ा पाप है। प्रभु के नाम व रूप पर विश्वास रखो। संतो ने प्रभु का रूप, नाम, स्थान, धुन का हाल संपूर्णता से अपनी वाणीओं मैं वर्णन किया है और जो कुछ कहा अथवा लिख कर छोड़ गए वह सच्चा है।
अनामी महा प्रभु की प्राप्ति बगैर संत सतगुरु के नहीं होगी। क्योंकि सतगुरु ही प्रभु के भेदी हैं। आज तक ग्रंथ आदि पढ़कर प्रभु का भेद किसी ने नहीं जाना। ना जान सकते हैं। केवल संतों की युक्ति के अनुसार साधन करने से ही भेद मालूम होगा।
गुरु के बगैर गति नहीं
बहुत से मनुष्य गुरु का महत्त्व नहीं समझ पाते हैं, कुछ लोगों का विचार है कि धर्म की प्रणाली के अनुसार निमित्त मात्र गुरु करना अनिवार्य होगा। क्योंकि धर्म पुस्तक यह कहती हैं कि गुरु के बगैर गति नहीं हुआ करती है।
इसलिए किसी मतावलंबी गुरु को कर लेना चाहिए, वह चाहे किसी मत या किसी सिद्धांत का हो, गुरु कर भी लिया है पर यह विचार नहीं किया कि गुरु क्यों किया जाता है? गुरु के उपदेश को ना समझ सके और गुरु कर लिया और कुछ कर ना सके तो लाभ क्या हुआ? गुरु करते हैं जिससे साधना करके शरीर रहते ईश्वर की प्राप्ति हो जाए.
पोस्ट निष्कर्ष
महानुभाव आपने ऊपर दिए गए कंटेंट में महापुरुषों के द्वारा हमारी जीवन के मुख्य ध्येय के बारे में बताया गया है। परमात्मा की पूर्ण सत्ता पर विश्वास रखना चाहिए, यही हमारे जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए, आशा है आपको ऊपर दी गई जानकारी, सत्संग, महापुरुषों की वाणी, जरूर अच्छी लगी होगी। ऊपर दी गई कंटेंट पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और अधिक सत्संग प्रार्थना पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट को फॉलो जरूर करते रहे।
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