सुन री सखी तुझे भेद बताऊँ यह, गुरु चरणों में बैठकर जिसने भक्ति की दिव्य दृष्टि खुली वह अपना वृत्तांत बताती है और सुरत (Jeevaatam) कहती है कि Sun ri sakhi मैंने वहाँ पर क्या-क्या देखा? क्या अद्भुत दृश्य देखने को मिला? यह सब कुछ बतलाती है। आध्यात्मिक सत्संग की इस शृंखला में आप कुछ ऐसा पढ़ने जा रही हैं जो एक जीवात्मा जब ऊपर के मंडलों में सफर करती है तब उसे क्या-क्या दिखाई देता है वह आप पढ़ने वाले हैं। जय गुरुदेव चलिए जानते हैं,
सुन री सखी तोहि भेद बताऊँ (Sun ri sakhi tehi bhed batatu)
कहते हैं ऐ सुरत (सुरत कहते हैं आत्मा को) रूह कहो, आत्मा कहो, जीव कहो और सोल कह लो। कहत हैं अरे भाई, ऐ सुरत तू सुन मैं, तुझको कुछ प्रथम स्नान का भेद बताना चाहता हूँ जहाँ से तीन लोक की रचना हुई तीनों लोकों का विस्तार कहाँ से मैं तुझे यह हाल बताना चाहता हूँ। तू कहाँ फंसी पड़ी है। ये रूह तुझको किसने फंसा रखा है। तो कितना साफ़ बयान करते हैं।
सुन री सखी तोहि भेद बताऊँ
प्रथम स्नान खोल कर गाऊँ॥
सखी कहते हैं सुरत को-
कहते हैं पहला स्नान, वह क्या? वह ज्योति नारायण भगवन! समझ गये ज्योति स्वरूप भगवान! भाई वह कैसे मिलेगा? जब तुम्हारी वह आँख खुलेगी तब जब तक यह आँख नहीं खुलती है तब तक नहीं मिल सकता। कभी भी लाख जतन करो। तड़प-तड़प कर कितने मर गये सिर में मिट्टी मल कर मर गए,
जंगलों में तप करके मर गये जब तक यह आँख नहीं खुली तपसया का फल जरूर मिल गया। लेकिन वह आँख जब तक नहीं खुली तब तक उनको मालिक नहीं मिला करते हैं। पहले स्थान पर तीन लोक का मालिक है। उसने किस-किस का विस्तार किया।
आद्या महाशक्ति
आद्या महाशक्ति उसकी है। ब्रह्मा उसके नौ करोड़ दुर्गा, उसके, शिव उसके, तैतीस करोड़ शम्भु उसने यह वैराट के साथ उत्पन्न किये। इन्हीं के महाजाल में हमको फंसा दिया। फिर जब हम पिण्ड में उतर कर आये तो फिर क्या लगा दिया काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, मन, समझ गये और माया।
यह हमारे साथ में जाल लगा दिये। फिर उसके साथ में जो झीनी चीज है नाना वासनायें। यह विस्तार फैला दिया। तो वयान करते हैं भाई तीनों लोक का जो विस्तार हुआ है ज्योति नारायण भगवान से। वह कहाँ पर बैठा हुआ है उसको बतायेंगे आप से।
Sun ri sakhi तोहि भेद बताऊँ
प्रथम स्नान खोलर गाऊँ॥
सहस कंवल दल नाम सुनाऊँ।
ज्योति निरंजन वास लखाऊँ॥।
बड़ा साफ-साफ बयान करते हैं जो उन्होंने गुरु चरणों में बैठकर अनुभव किया है वह कह रहे हैं।
सहस दल कमल
कहते हैं भाई क्या है वह सहस दल कमल है जिसकी सहस्र धारायें निकली हुई हैं। उसको सहस्रार कहते हैं। भाई वहाँ पर बैठा हुआ है क्या रूप है? उसको कहते हैं ज्योति स्वरूप भगवान। आँखों से अब देखा तब उन्होंने कहा। जब तक आँखों से न देखे तब तक ऐसे हालत का खुल-खुल कर कैसे बयान किया जाय। बड़ा स्पष्ट बयान कौन कर सकता है जो आँखों से देखेगा। जब तक अहं आँख के सामने लाखों परदे पड़े हुये हैं।
जब मैं स्वामी जी महाराज के पास गया और उन्होंने यह रास्ता बताया जो आपके सामने है तो मैंने एक दफे प्रश्न किया कि स्वामी जी इस रास्ते में तो कुछ नहीं बिल्कुल अन्धकार दिखाई देता है। अनेक अनन्तों पर्देपड़े हुए हैं कैसे काटोगे? उनको काटते जाओ धीरे से, फिर देखते जाओ काटते जाओ देखते जाओ।
वह कहते हैं अनन्तों पर्दे आँख के सामने पड़े हुए हैं वह अनेक जन्मों के पर्दे हैं आज कल उनका रीऐक्शन है कर्मों का, अनेक शुभ अशुभ कर्मों का, अनेक जन्मं का, वह आँख के सामने पड़ा हुआ है।
तेज धारा दृष्टि
देखो गुरु की कितनी बड़ी कृपा है कि यह कैसा रास्ता बताता है और वह कितनी तेज धारा दृष्टि है। वह दृष्टि आत्म-दृष्टि जिसको कहते हैं तलवार, तीर, एटमबम से भी तेज। समझ गये इतनी चाक करती जाती है कि अनन्तों जन्मों के पर्दे जो हैं, चट्टानों की तरह जो जगे हुए हैं उसका छेदन करती चली जाती है।
सबको खोदकर पहाड़ की तरह से निकाल कर फेंक देती है। यह आत्म दृष्टि में इतनी ताकत जितनी आत्म दृष्टि तेज धारा है उतनी कोई चीज तेज नहीं है। कहते हैं इतने पर्दे जमे हुए हैं और तुमने उस दर पर बैठ करके उन पर्दों की सफाई की। भाई किसकी कृपा से।
गुरु कृपा से यह वह आँख है कि वह आत्मा इसके पीछे छिपी पड़ी हुई है। वह बेचारी बन्द हो गई उसको खोलने की थोड़ी जरूरत है। वह-वह चाक करती चली जायेगी। खूब खुलते चले जायेंगे पर्दे। मैदान खुल जाए और तुमको दिखाई देने लगे। लाइट आने लगे। प्रकाश आने लगे। भाई सूर्य की तरह से जलवा, जब खुलने लगे, नजर आने लगे तो जो चीज हो उस मंडल में, क्या अभी प्रार्थना हुई थी।
सबसे पहले वह क्या है—
श्री गुरुपद नख मनि गन ज्योती।
सुमिरन दिव्य दृष्टि हिय होती॥
भाई यह वही दरवाजा है। वह अन्तर में एक समूह प्रकाश मणियों का है, उसको कहते हैं गुरु चरण। जब तुम उसको स्मरण करोगे तो दिव्य दृष्टि हो जायेगी ।
निष्कर्ष
महानुभाव सज्जनों ऊपर दिए गए आर्टिकल के माध्यम से स्वामी जी महाराज के द्वारा बताया गया आध्यात्मिक सत्संग की एक कड़ी पढ़ी। जिसमें Sun ri sakhi तोय भेद बताओ इसका वर्णन किया गया है। आप आगे इसी श्रृंखलाओं को पढ़ते रहेंगे। जय गुरुदेव मालिक की दया सबको प्राप्त हो,
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