नर्को के नाम, यमलोक मार्ग और कहानी उत्तर सतगुरू का

यम लोक का मार्ग बड़ा दुर्गम है। वह सदा दुःख और क्लेशों को देने वाला है तथा समस्त प्राणियों के लिए भंयकर है। उस मार्ग की लम्बाई कितनी है तथा मनुष्य उस मार्ग से यम लोक की यात्रा किस प्रकार करते हैं? हे गुरु कौन-सा ऐसा उपाय है जिससे नर्क के दुखों की प्राप्ति न हो।

उत्तर सतगुरू का

संसार भाव के प्राणी अपने-अपने स्वतंत्र स्वभाव में बहते रहते हैं। गुरूजन, माता, पिता और बड़े सज्जन आदि जनों से दूर रहते हैं और इनकी आज्ञा के पालन करने में सर्वदा अवहेलना करते रहते हैं इसी प्रसंग में यमलोक का भी वर्णन करूंगा। यमलोक और मनुष्य लोक में छियासी हजार योजनों का अन्तर है।

उसका मार्ग तपाये हुये तांबे की भांति पूर्ण तपा रहता है। प्रत्येक जीव की मृत्यु के बाद यमलोक मार्ग से जाना पड़ता है। पुण्यात्मा पुरूष पुण्य लोकों में और नीच पापाचारी मानव पाप लोकों में जाते हैं। यम लोक में बाइस नर्क हैं जिनके भीतर पापी दुराचारी मनुष्यों को पृथक-पृथक यातना दी जाती हैं। उन नर्को के नाम ये हैं।

नर्को के नाम

(1) नरक (2) रौरव (3) रौद्र (4) शूकर (5) ताल (6) कुम्भी पाक (7) महाघोर (8) शाल्मल (E) विमोहन (10) कीटाप (11) कृमिभक्ष (12) लालभक्ष (13) भ्रम (14) पीप बहाने वाली नदी (15) रक्त बहाने वाली नदी (16) जल बहाने वाली नदी (17) अग्नि ज्वाला (18) महारौद्र (16) संदश (20) शुन भोजन (21) घोर वैतरणी और (22) असि पत्रबन

यम लोक मार्ग

यम लोक मार्ग में न तो कहीं वृक्ष की छाया है न तालाब और पोखरे हैं। न बावली न पुस्करणी है। न नदी एवं पर्वत है और न ठहरने योग्य कोई स्थान ही है जहाँ अत्यन्त कष्ट में पड़ा थका मादा जीव विश्राम कर सके।

उस महान कष्ट के पथ पर सब पापियों को निश्चित ही जाना पड़ता है जीव की जितनी आयु नियत है उसका भोग पूरा हो जाने पर इच्छा न रहते हुये भी प्राणों को त्याग करना पड़ता है। जल, अग्नि, विष क्षुधा रोग अथवा पर्वत से गिरने आदि

किसी भी निमित्त को लेकर देहधारी जीव की मृत्यु होती है। पांचो तत्व से बने हुये विशाल शरीर को छोड़कर जीव अपनी निजी कर्मानुसार इस किराये के मकान से निकाला जाता है। केवल यातना भोगने के लिये दूसरे शरीर में प्रवेश किया जाता है। दुख और सुख से निवृत होने के लिए मनुष्य पापाचारी शरीर में बसने वाली जीवात्मा कर्म फल भोगने की भागी होती है और महान कष्ट का सामना करना पड़ता है।

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