मंगलाचरण गुरु वंदना लिरिक्स इन हिंदी, Manglacharan Guru Vandana

Manglacharan Guru Vandana: मंगलाचरण गुरु वंदना जो परम संत स्वामी जी महाराज की पुस्तिका, तुलसी वाणी मंगलाचरण गुरु वंदना श्लोक, रामायण रामचरितमानस जो एक भक्तों को यह चौपाई बहुत ही हृदय प्रिय लगती हैं।चलिए जानते हैं Manglacharan Guru Vandana मंगलाचरण गुरु वंदना इसलोक चौपाई,

मंगलाचरण (Manglacharan) श्लोक

बन्दे बोधमयं नित्यं गुरूं शंकर रूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रा सर्वत्रवंद्यते॥

जेहि सुमिरत सिद्धि होय गणनायक करिवर बदन।
करहु अनुग्रह सोय बुद्धि राशि शुभगुण सदन॥

मूक होहिं बाचाल, पंगु चढ़हिं गिरिवर गहन।
जासु कृपा सुदयाल द्रवौ सकल कलिमल दहन॥

नील सरोरूह श्याम, तरूण-अरूण वारिज-नयन।
करहु सो मम उर धाम, सदा क्षीर-सागर-शयन॥

कुन्द-इन्दु सब देह, उमा रमण करूणा अयन।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन-मयन॥

गुरू वन्दना (Guru Vandana) दोहा चौपाई

बन्दौ गुरु पद कन्ज, कृपा सिन्धु नर रूप हरि।
महा मोह तम पुन्ज, जासु वचन रविकर निकर।

बन्दी गुरु पद पदम परागा। सुरूचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिय मूरिमय चूरण चारू। शमन सकल भवरूज परिवारू॥

सुकृति शम्भु तनु विमल विभूति। मंजुल मंगल-मोद प्रसूती॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरणी। किये तिलक गुण-गण वश करणी॥

श्री गुरु पद नख मणि गण ज्योती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती॥
दलन मोह तम सो सूप्रकासू। बड़े भाग्य उर आवहिं जासू॥

उधरहिं विमल विलोचन हिय के। मिटहि दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मणि माणिक। गुप्त प्रगट जंह जो जेहि खानिक॥

यथा सुअजन अंज दुग साधक सिद्धि सुजान।
कोतक देखहिं शैल भूतल भूरि निधान॥

गुरू पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष विभंजन॥
तेहि कर विमल विवेक विमोचन। वरणौ रामचरित भव मोचन॥

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने जाना मंगलाचरण श्लोक गुरु वंदना चौपाई लिरिक्स के माध्यम से ऊपर दी गई कंटेंट को हिट करने के लिए धन्यवाद जय गुरुदेव

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