यह जीव भवसागर में कैसे आया और पुनः कैसे अमर लोक को जायेगा? लोको की रचना

लोको की रचना: जय गुरुदेव, परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सत्संग में अपने अनुयायियों को वह आध्यात्मिक सत्संग और रहस्य बताया और लोको की रचना और विस्तार के बारे में जानकारी दि, हम कैसे इस भवसागर में आए और कैसे हम अमरलोक को प्राप्त कर सकते हैं? सबसे पहले जीव कैसे आया और कैसे जाता है? कौन-कौन से लोको की रचना हुई और कैसे हम अपने सच्चे निजधाम घर पहुँच सकते हैं? यह सब कुछ स्वामी जी महाराज ने सत्संग के माध्यम से बतलाया है।चलिए जानते हैं स्वामी जी महाराज का आध्यात्मिक सत्संग:

अनेकों जन्मों के महान सचित पुण्य से कभी सन्त सतगुरू की प्राप्ति होती है। जब वे दयालु हो सत्य सिन्धु अनामी महाप्रभु का भेद देते हैं जिसका श्रवण मनन निदिध्यासन करने से साधक भव सागर से पार हो जाता है। सच्चे प्रीतम को पाकर सच्चिदानन्द स्वरूप हो जाता हैं। यह जीव भवसागर में कैसे आया और पुनः कैसे अमर लोक को जायेगा?

लोको की रचना

जब यह जगत कुछ भी नहीं था तब केवल सत्य सिन्धु अनामी महाप्रभु ही थे। उनके सिवाय दूसरा कुछ भी नहीं था उन्होंने अपने सत्य संकल्प में अगम लोक की रचना करके अगम रूप धारण किया। अगम से अलख लोक की रचना करके अलख रूप धारण किया अलखरूप से सत्य लोक की रचना करके सत्य पुरुष का रूप धारण किया। फिर सत्य से सोहं लोक की रचना करके सोहं पुरूष का रूप धारण किया।

नीचे ब्रम्हाण्डों की रचना

अब नीचे ब्रम्हाण्डों की रचना हुई। अनाभी पुरुष की कला अविगत काल ने अनामी लोक की नकल बनाकर अनामी स्वरूप धारण किया। अगम पुरुष की कला महाकाल ने अगम दोक का नकल बनाकर अगम स्वरूप धारण किया।

अलख पुरूष की कला निर्गुण ने अलख लोक की नकल बनाकर अलख स्वरूप धारण किया। सत्य पुरुष की कला निरजन पुरुष ने सत्य लोक की नकल बनाकर सत्य पुरुष का रूप धारण मोहा स्वरूप धारण किया। महाकाल की कला ने तीसरे सुन्न का की मुन्न अनाया।

एक महामुन्न, दूसरे स्खेत पुन्छ। प्रथम महासुन्न जिसे पारजानी अक्षर या परमात्म पद कहते हैं, उसमें अनि पद तीसरे पर निर्गुण काल की कला ने अक्षर पद स्थापित किया। जिसे रंकार भी कहते हैं। यही से एकाक्षर ब्रह्म प्रणव और वेद की उत्पत्ति हुयी। वेद इस अक्षर ब्रह्म का ही प्रतिपादन करता है। वेद वेदान्त के मुक्ति का घर यही है। (सत मत इससे परे है) निरंजन काल की कला ने दूसरे सुन्न में पुरुष प्रकृति पद स्थापित किया जिसे माया ब्रह्म या शिव शक्ति भी कहते हैं।

तीन लोक की रचना

पुरूष प्रकृति की कला ने ज्योति निरंजन पद स्थापित किया। प्रथम सुन्न सहस दल कमल में ज्योति निरंजन की कला ने आदि ज्योति ने आज्ञा चक्र में बासा किया। इन्हीं दोनों से विराट सिन्धु की उत्पत्ति हुई। ज्योति निरंजन ही तीन लोक के मालिक और स्वामी और ईश्वर है। ब्रह्मा विष्णु शकर तीनों हैं।

तीनों ही पुत्र अपने माता पिता की सेवा करते-हैं। उत्पत्ति प्रलय पालनादि का कार्य करते हैं। इन्हीं निरंजन देव ने अक्षर पुरुष की सहायता से तीन लोक की रचना की है। यहीं से अवतारी शक्ति प्रकट होती है। निरंजन नारायण के अंश विष्णु ने ऋषभ अवतार लेकर जैनमत चलया और बौद्ध अवतार लेकर वैदिक धर्म को विध्वंस करके नास्तिक मत चलाया।

इन्हीं के पुत्र अक्षर पुरूष ने मुहम्मद को भेज कर कुरान मत चलाया। निरंजन देव को वेदों की श्रुतियों ने अलख निर्गुण निरंजन व्यापक ब्रह्म कह कर गाया है। यही कौशल्या की गोद में आये थे।

पिण्ड ब्रह्माण्ड कुछ भी नहीं

अब इससे विचारा जा सकता है कि सन्त मत कितना ऊंचा है। जब पिण्ड ब्रह्माण्ड कुछ भी नहीं था तब आदि वाणी श्री राम नाम की उच्चारण हुई। श्री राम महराज जी से पांच ब्रहा की उत्पत्ति हुई हैं। 1-सोहं ब्रह्म 2-ररंकार ब्रह्म 3-ओंकार ब्रह्म 4-निरंजन ब्रह्म 5-पराशक्ति ब्रह्म। अक्षर पुरूष निरंजन ने 4 वेद, 6 शास्त्र, 18 पुराण, 4 वर्ण, 4 आश्रम, 4 खान, 84 लाख योनियाँ बनाकर सब जीवों को फंसा लिया, कोई जीव मुक्ति की गली नहीं पाता।

मुक्ति हो तो कैसे हो?

इन्हीं का सारा संसार भक्ति करता है। मुक्ति हो तो कैसे हो। ज्ञानी ज्ञान से इन्हीं का लक्ष्य करते हैं। उपासक उपासना के द्वारा तथा योगी योग के द्वारा नाना प्रकार से ज्ञान सिद्ध किए, नाना प्रकार के तप करके क्लेश को उठाया परिणाम में प्राप्ति हुई उन्हीं की जिन्होंने भव सागर बनाया।

तो कहो यह कैसी मुक्ति रही? अब पता चला होगा कि श्री राम नाम महाराज जी का भेद कितना गूढ़ है। सोहं पद से परे सत्य पद में श्री राम नाम का बास है। सत्य पद के ऊपर दयाल पद है और नीचे काल पद है।

इस प्रकार श्री राम नाम का भेद जान कर अखण्ड जाप करना चाहिए। सदैव दयाल अनामी महाप्रभु के चरण कमलों से प्रेम करना चाहिए। जिस तरह वैदिक मत में श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न रूप चतुर्ग्रह होते हैं

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सच्ची मुक्ति

इनमें श्री राम जी प्रधान ईश्वर होते हैं और कहीं पर अनिरूद्ध प्रद्युम्न, शंकर शरण बासदेव चतुर्दूह ईश्वर होते हैं। इसी प्रकार संत मत में अनामी पुरूष अगम पुरूष, अलख पुरूष सत्य पुरूष अंशरूप ईश्वर हैं। जो इनके भेद को सतगुरू के द्वारा जानकर उपासना करता है वही सच्ची मुक्ति पाता है और फिर जन्म नहीं लेता है।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए आध्यात्मिक सत्संग में बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने अपने अनुयायियों को सब कुछ बताया है।नाम की महिमा का बखान किया है और लोको और ब्राह्मणों के बारे में सब कुछ बताया है। Asha है ऊपर दिया गया कंटेंट लोको की रचना आपको जरूर अच्छा लगा होगा। परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की कृपा सब पर बनी रहे । जय गुरुदेव

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