साधक का भजन क्यों नहीं बनता? सचेत होकर भजन पर बैठे

भजन क्यों नहीं बनता? जब साधक साधना में बैठता है तो भजन क्यों नहीं बनता है? क्या कारण है कि हम अपने मन को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं ऐसे कौन से कारण हैं जिस वजह से एक साधक का भजन नहीं बनता है? चलिए जानते हैं महापुरुष पुरुष क्या बतलाते हैं साधक के भजन के बारे में,

भजन क्यों नहीं बनता?

भजन क्यों नहीं बनता, बहुत से सतसंगी शिकायत कहते हैं कि हमारा भजन नहीं बनता है, उनको हर दफा समझाया जाता है सचेत होकर साधन पर बैठा करें और समय साधन के अनेक प्रकार की लड़ाई धन बीमारी मुकदमें की वासना अनर्गल न उठाया करें। ऐसे समय में जीव उन्हीं तरंगों में बह जाता है और समझता है कि हम तो साधन पर बैठे थे हमको क्यों दिखाई सुनाई नहीं दिया।

साधक का भजन

चश्म बन्दो गोश बन्दे लव विवंद,

आँख कान और मुँह बन्द करके अगर हक, (मालिक) का भेद न देखो तो मुझ पर हंसो।

आँख कान मुँह बन्दकर, नाम निरंजन ले।
अंतर के पट जब खुले, बाहर के पट जब दें॥

सुरत शब्द अभ्यास के लिए घर बार छोडने की आवश्यकता नहीं है और गुरु से भेद लेकर एकान्त में बैठकर दोनों भौहों के मध्य भाग में यानी बीच में दृष्टि को रोक कर ध्यान जमाना चाहिए। ध्यान के वक्त स्वरूप सामने हो और किसी प्रकार की वासना न उठे। ऐसा जो सावधानी से करते हैं, वह एक दिन मालिक को पा जाते हैं।

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मोक्ष प्राप्त करने के हेतु योग

इसी भृकुटी के मध्य भाग में कृष्ण ने अर्जुन को संकेत करते हुए कहा कि मध्य भाग में ध्यान जमा कर और अपनी सुरत को ऊपर चढा कर मोक्ष प्राप्त करने के हेतु योग करो केवल सेवा और प्रेम मोक्ष के लिये काफी नहीं है।

जब अर्जुन के लिये सेवा और प्रेम मोक्ष के लिए सब कुछ नहीं है, ऐसा कृष्ण ने कहा तो भक्त जो लोग केवल तस्वीर पूजते हैं उनके लिए मोक्ष क्या सब कुछ होगा? ऐसा विचार करने और कराने वालों का मिथ्या भ्रम है।

इन्जील में पूर्ण रूप से ईसा ने संकेत करते हुए कहा और इशारा किया कि ईश्वर का राज्य चाहते हो तो उनका राज्य पाने वालों से मिलो। उनकी खोज करो। साफ यह भी लिखा कि पंछी और परिन्दों को देखो कि न वह कुछ बोते हैं और न काटते हैं फिर भी आसमानी पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे ज्यादा अच्छे नहीं हो।

तुम्हें भविष्य की बातें दिखलाऊँगा

मैंने देखा कि दरवाजा आसमान में खुला है और पहिला शब्द घन्टे के समान था और उसने मुख से कहा यहाँ से आओ और मैं तुम्हें भविष्य की बातें दिखलाऊँगा। मैं फौरन गया उसी का रूप बन गया। आसमान में डोरी पकड कर उठा और देखा कि सिंहासन आसमान में बिछा है

उस पर एक दिव्य पुरुष बैठा है। स्थल पत्थर के सामने बैठा नजर अाया। उस पत्थर में से बिजली की चमक और गरज की आवाजें आती थीं। सिंहासन के सामने सात दिये जल रहे थे जो खुदा की हैं सात रूहें थी।

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निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने यह जाना कि एक साधक का भजन क्यों नहीं बनता है? क्या कारण होता है जिस वजह से भजन में मन नहीं लग पाता हैं महापुरुषों ने साफ-साफ इसका उदाहरण दिया है, आशा है ऊपर दिया गया दिव्य सत्संग आपको जरूर अच्छा लगा होगा।

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