वक्त की पुकार बाबा जयगुरुदेव। समय आ रहा है परिवर्तन का

वक्त की पुकार बाबा जयगुरुदेव

परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के चरणों में नमन करते हुए सत्संग में और सत्संग पुस्तिका में, उच्चारित शब्दों वक्त की पुकार बाबा जयगुरुदेव। समय आ रहा है परिवर्तन का, इंटरनेट के माध्यम से आप तक पहुँचाने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ। बाबा जयगुरुदेव ने वक़्त की पुकार पर देशवासियों से कहा था। आर्टिकल में पूरा पढ़े, चलिए शुरू करें।

जय गुरुदेव वक़्त की पुकार

एक वक़्त था जब राम को आना पड़ा, कृष्ण को आना पड़ा। अब वक़्त ने पुकारा है। तो बाबा जी को मैदान में उतरना पड़ा। अब राम और कृष्ण भी आ जाएँ तो काम नहीं कर सकते। क्योंकि वह काल के अवतार थे। उन्हें संघार करना था।

अब तो आपस में ही इतना संहार बढ़ गया कि राम और कृष्ण किया संघार कराएंगे? अब ज़रूरत पड़े ऐसे महापुरुषों की जो संभालने, गुनाहों की माफी दे। पहले राजाओं का वक़्त था। किंतु अब बिना नरेश का राज,

“बहुमत तियमत बालमत बिन नरेश को राज,
सुख संपदा की कौन कहे, प्राण बचे बड़े भाग”

अब तो सहारा चाहिए, संत क्षमा करते हैं। रक्षा करते हैं। नाम की डोर पकड़आते हैं। नाम की डोर पकड़ कर जीवात्मा स्वर्ग, बैकुंठ धाम, ब्रह्मलोक आदि अनेक रूहानी मंडलों को पार करते हुए अपने असली वतन सतलोक सचखंड में पहुँच जाती हैं। जहाँ ना मरना और ना जन्मना दुख है ना क्लेश है। ना रोना धोना है।

फिर परिवर्तन हो जाएगा

“कहे कबीर वाघर चलो, जहाँ काल ना जाए” अब राम को या कृष्ण को तीर धनुष या चक्र सुदर्शन चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सबके क्रिया कर्म की तलवार ही सफाया कर देगी। फिर परिवर्तन हो जाएगा ।

अब यह बात स्पष्ट होती चली जा रही है। बाबा जी सब को समझा रहे हैं, आगाह कर रहे हैं, मार्गदर्शन कर रहे, जो उनकी बातों को मानेंगे उनकी रक्षा हो जाएगी। जो नहीं मानेंगे उनके लिए उन्हीं के कर्मों की तलवार उनके सिर पर लटक रहे। कोई क्या कर सकता है।

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समय आ रहा है परिवर्तन का

निगोहा लखनऊ में 7 से 15 जुलाई 1994 तक भूमि जोत का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। 6 जुलाई को भूमि जोत को की साइकिल शोभायात्रा और 7 जुलाई को बड़ी गाड़ियों की शोभायात्रा जिसमें स्वयं बाबा जयगुरुदेव जी उपस्थित थे।

लखनऊ के लिए एक यादगार बन गया। बाबा जी ने कहा मैं बराबर सब को आगाह कर रहा हूँ कि सब लोग बुराइयों से बचे अच्छा काम करें। आगे समय आ रहा है परिवर्तन का मैं चाहता हूँ कि आध्यात्मिक विद्या को सब लोग अपना लो,

रूहों को, आत्माओं को, जगा लो और इस काल के देश से निकल चलो। यह परदेश है यहाँ सुख नहीं है। आपका देश सतलोक है तुम जाने जगाने के लिए ही मैं सारे परिश्रम कर रहा हूँ। कुछ समय तुम पूजा में इबादत में दो, इस शरीर जो आत्मा का घर है इसे ठीक रखो। इसमें बीमारी ना आएँ, क्योंकि इसी शरीर से आत्मा को जगाया जाता है।

इसी शरीर से आत्मा को जगाया

इसी शरीर से आत्मा को जगाया और परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। हमने यह भी कहा था कि जब चारों तरफ़ से तुम्हारी पिटाई होगी, रोम-रोम पिटेगा, तब हांकार मजबूर होकर लाचार होकर इस मैदान में आओगे।

अगर तुम महात्माओं से पूछ कर घर का समाज का राज्य का काम करते हो, तो तुम्हें सही तरीक़ा बता देते। खेती दुकान दफ्तर सबके काम ठीक-ठाक होते हैं। फिर भी कोई किसी को धोखा नहीं दे सकता था।

कोई किसी को लूट नहीं कर सकता था। सब लोग अपनी-अपनी जगह पर अपना-अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करते हैं और समय निकालकर परमात्मा की सच्ची पूजा आत्मा से करते हैं। रूह से खुदा की इबादत करते हैं। हम यही चाहते हैं कि इस तरह से एक नई व्यवस्था आपके सामने आ जाए,

यह शरीर किराए का मकान है

मैं बराबर आप से कहता हूँ कि यह शरीर किराए का मकान है। जहाँ सांसो की पूजा ख़त्म हुई, यह मकान गिर जाएगा। मैं भी किराए के मकान में हूँ। मैं कोई पट्टा लिखा कर नहीं आया हूँ। इस किराए के मकान से तुम काम ले लो और पिंजरे से मरने से पहले ही निकाल चलो और निश्चिंत हो जाओ.

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जब उसका बुलावा आ जाए तो कह दो कि मैं तो बिस्तर बाँध कर तैयार हूँ। ऐसी चालाकी होशियारी करो, बुद्धि से काम लो अच्छा रहेगा। जब क़यामत आती है तो गुनाह करने वालों को खाना पानी नहीं मिलता है। थोड़ी भूख प्यास बर्दाश्त कर सकते हो, लेकिन उस समय पर भूख कितनी लगती है कि माँ बच्चे को मारकर खा ले।

कोई किसी को मारकर खा ले, घास दाना फल फूल कुछ नहीं होता, दो ही दिन में यह शरीर लेट जाता है। महाकाल के नाके तक सिमटा होता है। उसके आगे चिंता नहीं होता है ।काशी में गंगा रेती पर 9 से 11 फरवरी 1996 में भूमि जोत का द्वितीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।

काशी नगरी प्राचीन तीर्थ स्थल

बाबा जी ने एक चुनाव प्रणाली का सूत्रपात किया। जो विश्व में कहीं नहीं है। बाबा जी ने कहा काशी नगरी प्राचीन तीर्थ स्थल है। इस भूमि पर शिवजी ने 20, 000 साल तक तपस्या की, ब्रह्मा और विष्णु ने भी इसी भूमि पर तपस्या की, इसी भूमि पर कबीर दास गोस्वामी तुलसीदास जी आदि महा संत रहे।

जितने भी संत फ़क़ीर हुए सब लोग काशी में आए और इस को पवित्र किया। इसके कण-कण धर्म के से ओतप्रोत हैं। इसे भोग भूमि बनाने की कोशिश की गई तो कणों पर गंदगी जमा हो गई है और वह जब साफ़ कर दी जाएगी, तो धर्म फिर से ऊपर आ जाएगा।

सब लोगों की यही चाहती है कि आनंद मिले, इसलिए लोग धन दौलत जमा करते हैं। महाल कोठरी बनाते हैं। परिवार बसआते हैं, फिर भी आनंद नहीं मिलता है। इसलिए लोगों को यह सोचना चाहिए था और इसकी जानकारी करनी चाहिए थी कि आनंद कहाँ मिलेगा ।

संसार की इच्छा बुझती नहीं

संसार की इच्छा बुझती नहीं जितना भी उसको पाने की कोशिश करो, उतनी ही बढ़ती है। जैसे आग में घी पड़े यह आर्टिफिशियल बनावट और संसार है। यहाँ सूरज निकलेगा और डूबेगा। दिन होगा और रात होगी। इससे परे दूसरा देवलोक है वहाँ ना सूरज डूबता है ना निकलता है।

वहाँ अँधेरा नहीं है, वहाँ प्रकाश ही प्रकाश है। उस सृष्टि की रचना अद्भुत है, यह जल मिट्टी वायु वहाँ नहीं, वहाँ का वर्णन नहीं हो सकता है। वह आंतरिक जगह है। दिव्य जगत है। जिसे जीवात्मा सूरत और रूही की आंखों से देखा जा सकता है। कानों से सुना जा सकता है।

नाक से सुना जा सकता है। बाहर दो आंखें और दिखाई देने वाले जगत यह मिथ्या है, वह आंतरिक जगत प्रकाशमान है। पर आप इसको जानते नहीं हैं इसी मिथ्या जगत में वृद्धि की कसरत बाजी करते रहते हो, पर मिलता कुछ नहीं है। अंतर्गत या तुम फना हो जाओ जाते हो और यही सब छूट जाता है।

समय आ रहा है इस संदेश को सुनने के लिए सब लोग भाग लेंगे, सब लोग प्यार और सम्मान चाहते हैं। आप महापुरुषों के संदेश से दूर हो गए हो, इसलिए संघर्ष की आग दिल में जल उठी अब महापुरुषों की ज़रूरत है।

पोस्ट निष्कर्ष सत्संग

अपने परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के द्वारा दिए गए पूर्व में सत्संग और उनकी वाणी के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश जय गुरुदेव वक़्त की पुकार को पढ़ा, आशा है ए जय गुरुदेव सत्संग वाणी आपको ज़रूर अच्छी लगी होगी। अपने सोशल नेटवर्क जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम और भी तमाम प्रकार के सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा इस पोस्ट को शेयर करें।

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