बुढ़िया पुराण उर्फ़ बूढ़े की कहानी | budhe ki kahani | बहुत ही इंटरेस्टिंग

कहानियों की इस शृंखला में आज आप जानेंगे बुढ़िया (Budiya) पुराण और बूढ़े की कहानी (budhe ki kahani) क्या है स्वामी जी महाराज ने अपने सत्संग के माध्यम से अपने अनुयायियों को तरह-तरह की ऐसी कहानियाँ सुनाई हैं जिनसे लोगों को सीख मिलती है। महात्मा Kahaniyo का एक उदाहरण देते हैं जो स्पष्ट पूर्ण रूप से समझा जा सकता है। चलिए आज हम जानते हैं Budiya पुराण उर्फ़ बूढ़े की कहानी (budhe ki kahani) स्वामी जी महाराज ने चतुर चालाक लोगों के बारे में क्या कहा? चलिए जानते हैं इस कहानी आर्टिकल को पूरा पढ़ें, यह बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाला है तो चलिए शुरू करें। जय गुरुदेव,

budhe ki kahani
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बुढ़िया पुराण (Budiya Puran)

स्वामी जी महाराज ने काशी से बुढ़िया (Budiya) पुराण की बातों को बताना शुरू कर दिया है और हर जगह सत्संग में सुना रहे हैं। प्रयाग में उन्होंने बुढ़िया पुराण (Budiya Puran) की एक कथा (Katha) को सुनाया। हजारों वर्ष बीत गये। बहुमत का राज्य था। जनता (Janta) द्वारा चुने गये लोग राज्य करते थे। प्रजा सोचती थी थोड़े दिन की तकलीफ है। देश प्रगति पर है आगे आराम मिलेगा।

एक वर्ष बीत गया सुख नहीं मिला बल्कि तकलीफ और बढ़ गई जनता (Janta) के सुनहले स्वप्न हर वर्ष टूटते रहे और वह निराश हो उठी क्योंकि उसका जीवन चारों तरफ असुरक्षित हो गया। मार-काट, चोरी, डकैती, रिश्वत, अनाचार, व्यभिचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। मांस, मुर्दे शराबों का खुले आम (Khule Aam) प्रयोग होने लगा। लोगों के हृदय से धर्म (Dharam) की आस्था उठ गई। चारों तरफ हाहाकार मच गया।

बूढ़े की कहानी (budhe ki kahani)

इसी बीच एक बूढ़े आदमी (Budhe Aadmi) ने ऐलान किया कि यदि मुझे एक वर्ष का मौका दिया जाये तो देश को मैं पूरी तरह सुधार दूंगा। उसकी आवाज को सुनकर लाखों आदमी इक्ट्ठे हो गये। जनता (Janta) ने एक स्वर से कहा कि हमें आपकी बात मंजूर है।

budhe ki kahani
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budhe (बूढ़े) ने पुनः अपनी बात को दुहराया और बोला कि मैं सुधार अवश्य मैं करूंगा किन्तु मेरी एक बात सबको माननी होगी वह बात यह है कि जो कुछ भी मैं कहूंगा उसे एक वर्ष तक सबको मानना होगा। जनता (Janta) ने दोनों हाथों को उठाकर कहा कि हम एक वर्ष तक कुछ भी नहीं कहेंगे और आपकी बातों को 16 आने मानने को तैयार है।

बूढा मंच पर खड़ा था और सामने लाखों करोड़ों नर-नारी बच्चे बैठे थे। उसने जनता से कहा कि जितने लोग अपने को अकलमन्द (Aaklmand) समझते हैं वे एक तरफ किनारे खड़े हो जायें। उसकी बात को सुनकर हजारों लोग खड़े हो गये और किनारे एक खाली स्थान पर चले गये।

बूढे ने कहा (Budhe Ne Kaha) :

बूढे ने फिर कहा कि अभी भी जो लोग दुनियाँ में है और अपने को अकलमन्द (Aaklmand) समझते है वे खड़े हो जाये। इस बार भी हजारों व्यक्ति खड़े हो गये और निर्धारित स्थान पर चले गये। थे जो अपने को Aaklmand समझते थे।

अब जनता दो भागों में बंटी थी। एक तरफ के लोग अवलमन्द (Aaklmand) समझते थे और दूसरी तरफ करोड़ों आदमी और वह बूढा बाबा। बूढे ने तेज आवाज में जनता (Janta) से पूछा कि क्या आप लोग मेरी बात को मानेंगे? जनता जारों में चिल्ला पड़ी कि आप जो कुछ भी कहेंगे उसे हम लोग अवश्य करेंगे बूढ़ा (Budha) चुप था।

उसने गहरी नजरों से अपार जनसमूह को देखा और आदेश के रूप में गम्भीर स्वर से बोला कि ये जितने भी अकलमन्द (Aaklmand) इस तरफ खड़े है इन सबको बन्द कर दिया जाये जनता ने वैसा ही किया।

बूढ़े की कहानी (budhe ki kahani) का सारांश

एक वर्ष तक उस बूढ़े (Budhe) की आज्ञाओं का जनता ने पूर्ण रूप से पालन किया और देश में चोरी, डकैती, कल्ल, रिश्वत, अनैतिक कार्य सभी कुछ बन्द हो गए और जनता (Janta) आराम से रहने लगी। लोगों ने कहा कि जब समझ में बात आई कि इन अक्लमन्दों (Aaklmand) ने देश का कबाड़ा कर दिया था।

कहानी निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने बूढ़े की कहानी (budhe ki kahani) और बुढ़िया पुराण (Budiya Puran) का वाचन किया। वास्तव में देखा जाए तो जो चतुर चालाक होते हैं वही सब अधिकतर अनैतिक कार्य करते हैं। बल्कि सीधे साधे इंसान जो भी शिक्षा उनको मिलती है उसके अनुसार काम करते हैं। महात्मा एक उदाहरण कहानियों के माध्यम से देते हैं जो हम सब को समझना और उन पर चलना हम सबकी जिम्मेदारी बनती ।आशा है आपको ऊपर दिया गया कहानी आर्टिकल (Kahani Artcal) जरूर पसंद आया होगा और अधिक कहानियाँ पढ़ें, जय गुरुदेव।

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