Guru Ka Mahatva: गुरु की आवश्यकता, गुरु का महत्त्व, मानव जीवन में गुरु का स्थान, गुरु और शिष्य का पारस्परिक सम्बंध, कौन गुरु कौन चेला? असली गुरु कौन है? जीवन में गुरु का महत्त्व, शास्त्रों में गुरु का महत्त्व का बखान कैसा किया गया है चलिए जानते हैं गुरु कैसा करें हमें जीवन में कैसा गुरु करना चाहिए कैसा नहीं आदि तमाम जानकारी इस आर्टिकल में आप पढ़ने वाले हैं इस सत्संग आर्टिकल को पूरा पढ़ें चलिए शुरू करते हैं।
Guru Ka Mahatva समुचित विकास
जीवन में जितनी प्रमुखता गुरु की है उतनी ही प्रमुखता जनता के लिये राजा की है। जीवन का समुचित विकास गुरु की छत्र छाया में होता है तो राज्य का विकास और विस्तार राजा करता है। गुरु की छत्र छाया में शिष्य निश्चिन्त होकर रहता है। प्रजा भी योग्य राजा की छत्र छाया में सुखी रहती है।
आज हमने आधुनिकता की ओट में गुरु की महत्ता (Guru Ka Mahatva) को भुला दिया। न तो स्वार्थ में ही गुरु की महत्ता रही और न तो परमार्थ में ही रही शाह अथवा राजा की बात तो अब कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि प्रजातंत्र है प्रजा अपनी जिम्मेदार स्वयं है। वह अगर यह सोचे कि हमारी रक्षा का भार किसी और के उपर है तो यह उसकी महान भूल है।
गुरु की आवश्यकता सबसे महान
गुरू की महत्ता (Guru Ka Mahatva) तो जीवन के साथ प्रारम्भ हो जाती है। एक बच्चा जो कुछ पहले सीखता है अपनी माँ से, फिर पिता से उसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों से। अवस्था के साथ ही साथ उसे फिर और भी कई प्रकार के गुरूओं की आवश्यकता पड़ती है। वह विद्या गुरु हो, शिक्षा गुरु हो कला सिखाता या और भी जो कुछ सिखाता हो लेकिन गुरु की आवश्यकता तो है ही। सबसे महान होता है परमार्थ का। परमार्थ, यानी, पूजा, पाठ, जय तप आदि भी बिना गुरु के बेकार है।
कबीर साहब कहते हैं:
गुरू बिना माला फेरते, गुरु बिन देते दान,
गुरूबिन दान हराम है, जा पूछो वेद पुरान।
Guru Ka Mahatva गुरु के बगैर कोई भी सद्गति नहीं
गोस्वामी जी महाराज ने रामायण में साफ लिखा है “गुरूबिना भव निधि तैर न कोई” अर्थात गुरु के बगैर कोई भी सद्गति को नहीं पा सकता। जब-जब धम कर्म पाखन्ड बन जाते है तब यही समझना चाहिए कि गुरु की महत्ता समाप्त हा गई या गुरु मिला भी तो वह ठीक नहीं है।
दुनिया में भी हम यदि किसी के गलत निदेशों को मान लेते हैं तो जीवन का रास्ता गलत हो जाता है। परमार्थ में भी यहा बात है। यदि गुरु सच्चान मिला तो परलोक की सारी क्रियायें झठी हो जाता है हमने गुरु को समझा नहीं, जाना नहीं, केवल रस्म रिवाज के नाते गुरु धारण कर लिया तो क्या बनता है।
उसके लिय कहा है:
अधा गुरु बहरा चेला, होय नरक में ठेलम ठेला।
फिर गति कहा हुई, तो द्गति ही हुई …
इसीलिये कहा जाता है
“गुरू करो जान कर पानी पियो छान कर”
वह गुरु कैसा हो जिसकी वंदना वेद शास्त्र प्राण, देवी देवता औतारी शक्तियाँ सभी कर रहे हैं। वह गुरु कैसा हो जिसके लिये कहा गया है:
गुरू: ब्रह्मा, गुरू: देवो महेश्वर:
गुरू: साक्षात पारब्रह्म, तस्मै श्रीगुरूवे नमः
ऐसा गुरु कौन हो सकता है? क्या वह एक इन्सान मात्र होगा नहीं इसका जबाव गुरु वाणी में बड़ा ही स्पष्ट है।
“मेरो भरता बड़ा विवेकी, आपे संत कहावे”
गुरु के बिना गत नहीं
ऐसे गुरु के बिना गत नहीं हो सकती। आज गुरूओं की कमी नहीं है किन्तु ऐसे गुरु कम हैं। इसीलिये आज एक धर्म आ गया जिसे गोस्वामी जी ने ‘तामसधर्म’ कह कर बयान किया है। जब तामस धर्म का प्रचार होता है तब प्राकृतिक कोप भी हआ करते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यदि दुनिया में सफलता प्राप्त करनी है तो गुरूओं की महत्ता (Guru Ka Mahatva) जीवन में लाना है। गुरु की महत्ता आएगी तो समाज में छात्र आंदोलन समाप्त हो जाएगा घरों में परिवारों में आपसी वैमनस्यता समाप्त हो जाएगी। न माता पिता को बच्चों से शिकायत होगी न अध्यापक को छात्रों से।
अध्यापक अपनी जिम्मेदारियों को निभाएँ, छात्रों में गुरु के लिये सम्मान की भावना का उदय हो। सामाजिक व्यवस्था ठीक हो जायेगी तब आध्यात्मिक उन्नति सम्भव होगी। हम गुरु की, सतगुरू की महिमा समझ सकगें तभी आत्मा की गति होगी। तामस धर्म समाप्त होगा। सत्य धर्म आ जाएगा सब धर्म वाले एक नारा लगाएंगे। वह नारा होगा जय गुरूदेव’।
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