गुरु का पथ अपनाना क्या सरल है या नहीं?

गुरु का पथ अपनाना क्या सरल है या नहीं? Guru Marg, जय गुरुदेव

Adhyatmik jaruri sandesh

जय गुरुदेव दोस्तों आज हम इन सत्संग लाइनों के माध्यम से परम संत स्वामी जी महाराज जय गुरुदेव जी के द्वारा दिए गए आध्यात्मिक सत्संग के उन महत्त्वपूर्ण वचनों को आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। जो गुरु का पथ य गुरु दीक्षा जैसी चीजों को अपनाना क्या सरल है? क्या वास्तव में Guru Marg हमारे जीवन में सरल है कि नहीं, आदि महत्त्वपूर्ण बातें आप इस आर्टिकल में पड़ेंगे। यह बहुत ही अनमोल आर्टिकल है इसको पूरा पढ़ें तो चलिए शुरू करते हैं, जय गुरुदेव

गुरु का पथ अपनाना क्या सरल है या नहीं Guru Marg, जय गुरुदेव

गुरु पथ अपनाना

साधक की ताकत नहीं है कि अपनी करनी से मुड़ जावे, साधक को गुरु का ही सहारा पूरा लेना होगा। वरना हर प्रकार की विघ्न सताएगी। हो सकता है कि साधक गिर जावे, गुरु का सहारा है तो साधक नहीं गिरेगा।

साधकों गुरु का पथ अपनाना सरल बात नहीं है। तुम्हें जब गुरु अपनाते होंगे उसके पूर्व कुर्बानी करनी होगी। कुर्बानी यह है कि इंद्री दमन करना होगा। मन दमन करना होगा। शरीर सुखाना होगा और गुरु चरणों पर अर्पण करना होगा।

जिस साधक को इस तरह की कुर्बानी करनी और अपना तन मन गुरु पर चढ़ाना है वही साधक परमार्थी के काबिल है। कुछ महात्माओं की मिसाले मिलती हैं। साधक महात्माओं के पास गए और अपने स्त्री बच्चों को साथ ले गए.

कुछ दिन महात्मा की संगत में रहे, सत्संग किया, जब दुनिया की आंधी आई तो भाग कर अलग हो गए. ऐसे साधक नहीं वह तो निपट धोखेबाज हैं। महात्माओं को धोखा देना चाहते हैं, आए नरक को चले गए, ऐसे जीव को ना तो यहाँ सुख है और ना बाद मरने के. यह भी दुख है और बाद मरने का तो निश्चय नर्क में जाएंगे।

सत्संग में पड़े रहो आशाएँ पूरी जाएंगी

जब साधक यह संसारी सत्संगीओं की झड़प नहीं सह सकता और यहाँ अशक्त का त्याग नहीं कर सकता, तो क्या यह राज्य त्याग देगा? असंभव है। यदि साधक मालिक के पास पहुँचना चाहता है तो उसे खुलकर नाचना होगा।

मालूम होता है कि साधक में प्रेम के मिलने की खोज पैदा नहीं हुई, इसी कारण महात्माओं के पास आए और खाली रह गए. क्योंकि वह साधक बनेंगे जिनके अंदर संसारी चाहे भरी पड़ी है और उन्हीं चाहो को पूरा करने हेतु बे महात्माओं के पास वर्षों तक पड़े रहते हैं।

और जब चाहे पूरी नहीं हुई, तो अपना रास्ता बंद करके चले जाते हैं। यदि सत्संग में पड़े रहते तो दोनों आशाएँ पूरी हो जाती हैं। संसारी चाहे तो कुछ दिन में पूरी हो जाएंगी और परमारथ मुक्त हो जाता है। साधक को चाहिए कि जब गुरु के पास जावे तो संसारी इच्छा लेकर ना जाएँ, इसी वज़ह से हम महात्माओं को नहीं पहचान पाते हैं।

भगवान से मिलने का रास्ता मांगे

एक तरह से यह देश साधकों के लिए मुफीद है। पर यदि अमेरिका जैसा यह देश बना दिया जाए तो लोगों को फुर्सत मिलना मुश्किल है फिर और भी नास्तिक पैदा हो जाएंगे। इससे स्त्री पुरुषों को चाहिए कि महात्मा से केवल भगवान मिलने का रास्ता मांगे और कोई याचना ना भी करें। पर संसारी स्वभाव से मजबूर हैं।

जब साधक साधन में बैठते हो तो वही इच्छा की पूर्ति मांगते हो बताओ साधक में अनुभव हो तो कैसा हो? साधक का शरीर हमेशा ऑकुलता रहता है जब तक खून में कुलआहट है तब तक साधक साधन नहीं कर पाएगा।

साधक को चाहिए कि खून को सुखा दे और फिर से खून पैदा करें, इसलिए गीजा शुद्ध हो और तामसी भोजन से सदा बचना चाहिए, साधक को ऐसी हालत जो ऊपर बयान की है आएगी। पर गुरु चरणों का आशिक साधक रहेगा। तो विघ्न नहीं सताएगी।

जब साधक में समाधान आ जाए उस समय यह करना चाहिए कि गुरु के बताए साधन में बैठे उस वक़्त अपने शरीर को बुलाने की कोशिश करना चाहिए, ध्यान की प्रक्रिया तभी सिद्ध होगी जब साधक सब वासनाओं से उपराम होगा।

वैसे तो साधन में कुछ ना कुछ प्राप्त ज़रूर होगा। परंतु एक रस नहीं रहेगा। उसका कारण अपनी स्थिति पर निर्भर है। जैसे-जैसे साधक अपने भाव के अनुसार आंखों के पीछे भाग पर स्थर होगा। वैसे ही अपने को टिकता जाएगा और अंतर में रस उतरना शुरू हो जाएगा।

साधक के गिरने का मार्ग

साधक को आपस में बहुत होशियारी के साथ बरतना ज़रूरी होगा। साधन करते समय हर भाव की ओर देखना होगा कारण यह कि साधक कहीं गिरने का रास्ता तो तैयार नहीं कर रहा है। साधक जब कभी गिरता है तो अपने कर्मो के आधार पर गिर जाता है।

तथा रास्ता छोड़कर गिरने के रास्ते में चला जाता है और सदा गिरता रहता है। फिर साधक का उत्थान नहीं हो पाता है। साधक को हर वक़्त होशियार रहना ज़रूरी होगा। कारण जब तक साधक गुरु की ओर देखता है तब तक गिरने का प्रश्न नहीं, वह जब साधकों की ओर देखना शुरु करता है तो ज़रूर गिरता है।

कारण हर वक़्त साधकों में कमी है। साधक इन कमियों को दूर करने का प्रयत्न करता है। दूसरे साधक जब उस कमी को देखते हैं तो, एक तरह का अभाव उनके प्रति आता है और जब यह साधक दूसरे साधक की कमी जाहिर करेगा। तो दूसरे साधक को गुस्सा आएगा इस अवस्था में आप में राग दोष पैदा होगा।

शब्द की महिमा

गुरु के शब्द विसरने पर आपस में द्वेष फैल जाता है साधकों तुम सब गुरु की ओर देखो और गुरु के शब्दों को याद करो। सुरत शब्द की कमाई चाहते हो तो आपस के राग दोष को दूर करके सुरत को शब्द के साथ जोड़ो।

शब्द चेतन है वह तुम्हारी कमी को जान रही है। शब्द जब भी तुम पर विश्वास करेगा। जब तुम सच्चे होकर कमाई में लगोगे। शब्द हर भाव से सफ़ाई और सच्चाई चाहता है। शब्द को बनावट पसंद नहीं है।

जिसमे बनावट आई और शब्द सुनाई देगा ही नहीं, शब्द की ताकत तमाम ही ब्राह्मणों को अपने अधीन होकर चल रही है। शब्द का ही विस्तार सारे जहाँ में है। जिस वक़्त शब्द खिच जाएगा रचना का तमाम खात्मा हो जाएगा।

पोस्ट निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए आध्यात्मिक सत्संग में हम गुरु का पथ अपनाते हैं, उसमें हमें कौन-सी सावधानी रखना चाहिए, कौन-सी गलती से हमारी क्या गति हो सकती है। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें ऊपर आपने सत्संग पुस्तिका के माध्यम से दिए गए लेख में पड़ा। आशा है गुरु प्रेमी भाइयों आपको यह ज़रूर पसंद आया होगा। अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें, पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, जय गुरुदेव

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