महानुभाव, Indriyo ko bas me किया जा सकता है। मनुष्य शरीर में इंद्रियों को यदि हमने बस में कर लिया तो हम उस आध्यात्मिक वह पावरफुल शक्ति से जुड़ सकते हैं। व दर्शन दीदार कर सकते हैं। जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया उसे जितेंद्रिय कहते हैं। वास्तव में यह संसार बड़ा ही अद्भुत है महापुरुषों ने इंद्रियों को वश में कैसे करें? इसके बारे में अपने सत्संग के माध्यम से सब कुछ बताया है। जब मनुष्य Indriyo के साथ घाट पर बैठोगे तब सब कुछ समझ में आएगा। चलिए इस सत्संग को आगे बढ़ते हैं सबसे पहले जानते हैं इंद्रियों का अर्थ,
इन्द्रियों का अर्थ (Meaning Of the Senses)
Indriyo का अर्थ समझते हैं जो हमारे शरीर से जुड़ी हुई रचना है या, यह कहें कि मनुष्य शरीर में जो इंद्रियाँ हैं। विशेषकर Indriyo का-का वर्णन किया गया है। जिसमें दो आंखें, दो कान, दो हाथ, दो पैर, मुँह, नाक, योनि और एक गुदाद्वार इन्हें मनुष्य शरीर की इंद्रियों को कहा गया है। इन इंद्रियों के काम अलग-अलग होते हैं जो संसार में फंसा रखते हैं। साथ में यदि हम यदि इंद्रियों को वश में कर लेते हैं तो हम जितेंद्रिय बन सकते हैं। चलिए इंद्रियों को वश में कैसे करें? जानते हैं,
Indriyo ko bas me कैसे करे?
इंद्रियों को वश में किया जा सकता है केवल मन पर कंट्रोल हो जाए तो हम इंद्रियों को वश में कर सकते हैं। क्योंकि मन ही हमारे शरीर को संचालन कर रहा है या यूं कहें कि चलते रथ की बागडोर मन के हाथ में है। वह अपने इशारे से इस शरीर को चला रहा है।
यदि मन पर काबू किया गया और मन को समझाया गया तो, इंद्रियाँ अपने आप मान जाएगी। तो मन को बस में तभी किया जा सकता है जब इस मन के अंदर कोई ऐसी दिव्य वाणी का प्रहार हो, ताकि मन कहना मान जाए.
सत्संग में महात्मा मन को काबू करने के बारे में भी बतलाते हैं। क्योंकि शब्द या वाणी का प्रहार ही मन को वश में कर सकता है। क्योंकि जब तक मन काबू नहीं होगा हम इंद्रियों को वश में नहीं कर सकते हैं। चलिए अब हम जानते हैं कि मन को बस में कैसे किया जाए?
मन को वश में कैसे करे?
मन को बस में करने के लिए सत्संग जरूरी है। क्योंकि “बिन सत्संग विवेक न होई” बिना सत्संग की हमें विवेक पैदा नहीं हो सकता है। जब तक हम पूर्व महात्माओं का सत्संग नहीं सुनेंगे, उनके उदाहरण को नहीं समझेंगे, उनके बताए हुए रास्ते पर नहीं चलेंगे। तब तक हम अपने मन को काबू में नहीं कर सकते हैं। कहा गया है कि;
“जिन्होंने मार मन डाला उन्हीं को सूरमा कहना”
जिन्होंने अपने मन को मार डाला वहीं वीर पुरुष है। क्योंकि मन के जीते जीत है मन के हारे हार, यदि-यदि हमने अपने मन को जीत लिया तो हमारी जीत हो सकती है। तो कहने का मतलब है अपने मन पर विजय प्राप्त करनी है।
यह तभी होगा जब महात्माओं के सत्संग वाणी हम अंतरात्मा से नहीं सुनेंगे और अपने जीवन में उसका पालन नहीं करेंगे, तब तक हम मन को कंट्रोल नहीं कर सकते हैं। जब हमारा मन कंट्रोल हो जाएगा तो हमारी इंद्रियाँ ऑटोमेटिक हमारे मन की बस में चलेगी और कामयाब हो जाएंगे। इंद्रियों के साथ घाट पर बैठने के लिए कहा है;
Indriyo के साथ घाटों पर
इंद्रियों के साथ जब हम मन को काबू करके घाट पर बैठते हैं तो हम उस परमात्मा व आध्यात्मिक रहस्य का दर्शन दीदार होता है। इंद्रियों हाथ-पैर नाक कान जीव सब कुछ मन के साथ बैठकर के एक निश्चित होकर के उस परमात्मा का दर्शन दीदार कर सकता है।
यदि हमारा मन कहीं भाग रहा है, हम भजन कर रहे हैं, ध्यान कर रहे हैं, हमारा हाथ पैर कहीं और चल फिर रहा है तो, ऐसे काम नहीं चलता है। जब तक हमें सभी इंद्रियों का साथ और मन का पूर्ण रूप से अंतरात्मा से हमारा साथ होगा तो ऐसी परिस्थिति में हम आध्यात्मिक शक्तियों का दर्शन दीदार कर सकते हैं। जो Indriyo के साथ घाट पर बैठो मालिक का दया कभी ना कभी जरूर होगा और इससे हम इंद्रियों पर नियंत्रण कर सकते हैं।
इंद्रियों पर नियंत्रण कैसे करें?
कर सकते हैं बहुत से लोगों ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त की है। जो इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं उन्हें ना भूख प्यास, ना ठंड बरसात, दुख सुख कुछ भी उनके नजदीक नहीं आता है। व किसी भी प्रकार की समस्या उनके जीवन में नहीं होता है।क्योंकि इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना यानी भगवान पर पूर्ण रूप से विश्वास और भरोसा, दर्शन यह इस मनुष्य का असली लक्ष्य होता है। जो हम भूले और भटके हुए हैं।
इंद्रियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। वह है सच्चे महापुरुषों का सत्संग। पूर्ण महात्मा जो भी रास्ता बताएँ और रास्ते पर यदि हमने चल दिया तो निश्चय ही कामयाब हो सकते हैं। ऊपर मैंने अपने विचार आपके साथ सांझा किए चलिए अब हम पूछ आध्यात्मिक बातों को जानते हैं।
वाणी और क्या है
तीन लोक का मालिक है और यहीं से वेदों की उत्पत्ति हुई थी, वाणी उच्चारण हुई थी। वाणी कहते हैं आकाश वाणी-वाणी कहते हैं कि वह अनहद धुनी, आसमानी आबाज या कलमा कह लीजिये जैसे; मुसलमानों में कहते हैं वह कलमा है यह कलमा यही तो है और क्या है?
जब वह बाग लगाते हैं सुनते हैं उस खुदा की आवाज को वे सुनते हैं। अल्लाह की उधर से दृष्टि आवाज आ रही है हम आवाज सुन रहे हैं, आसमानी आवाज सुन रहे हैं कलमा सुन रहे हैं वही है वाणी और क्या है?
तो परमात्मा की वाणी किसी ने बनाई नहीं। इन्सान उसको बना नहीं सकता वह वाणी बराबर आती है और कहाँ तक? कि चेतन वह आत्मा सुरत बैठी है। आँखों के पीछे वहाँ तक। ये पर्दे जब हट जाते हैं तो (सुरत) वाणी को पूरा सुनती है। बड़े ही स्पष्ट रूप में।
जैसे बाहर के अपने कान अच्छे हैं तो बाहर की वाणी हमको साफ सुनाई देती है अगर वे कान के परदे हट जांय साफ हो जांय तो अन्दर परमात्मा की वह वाणी बिल्कुल साफ स्पष्ट सुनाई देती है। भाई यह हम लोगों का मार्ग है ऊपर जाने का।
इन्द्रियों के साथ
हम लोग कहाँ फंसे हुए हैं कि मन जो है वह इन्द्रियों के साथ बिल्कुल गुलाम हो गया है जिसको कहते हैं दास। इन्द्रियों का दास मन बन गया और इन्द्रियाँ किसकी दास बनीं? भोगों की और हम लोग भोगते हैं।
आगे पीछे बहु पछताऊँ।
समय पड़े पर होवत चोरा।
और ‘समय पड़े पर होवत चोरा’ यह मन यह ऐसा पाजी और दुष्ट है कि जब वह भोग देखता है तभी खिंच जाता है और जब भोग-भोग लेता है जब उसमें क्षणिक रस ले लिया तो कहता है—भाई तुमने बड़ा खराब काम बड़ा किया तुझे यह नहीं करना चाहिए था।
इससे यह पता चलता है कि मन जो है वह इन्द्रियों के बिल्कुल आधीन गुलाम और दास हो गया और इन्द्रियाँ भोगों की दास हो गईं। इन्द्रियाँ उधर चली जाती हैं खिंच करके और मन इधर इन्द्रियों के दरवाजे पर बैठकर रस लेने लगता है। भाई और क्या किया जाय।
तो आप लोग नीचे आँखों के फँसे पड़े हुए हैं सब क्रियायें मन के घाट पर बैठकर करते हैं आपका यह ध्यान हमेशा संगत में आकृष्ट किया जाता है। हम लोग इसी तरह से रहे। न परमात्मा के दरवाजे पर बैठे, न परमात्मा के मन्दिर की वाणी को सुना और न परमात्मा के मन्दिर में बैठकर उससे प्रार्थना कर सके। वह कबूल कब करेगा? जब हममें से कोई उसके दरवाजे, मन्दिर में बैठने ही नहीं आया तो मन्दिर निवासी आपको जवाब ही क्या देगा? कुछ नहीं दे सकता है। तो यह मन्दिर है, मन्दिर।
दरवाजा जरा-सा खटखटाइये
मन्दिर में प्रवेश होने का दरवाजा है। आप उस पर बैठ जाइये दरवाजा जरा-सा खटखटाइये मुझे विश्वास है इस बात का कि जो लोग इस दरवाजे पर बैठ जाते हैं वह जरूर पाते हैं और जो बैठे हैं भाई उन्होंने पाया। उसमें क्या बात है लोग, इतने लोग, लगे पड़े हुए हैं क्या ये बेबकूफ हैं? जितने पढ़े लिखे हैं बहुत चालाक हैं।
महात्माओं के पास में चंट लोग जाया करते हैं जो बहुत चालाक होते हैं होशियार। सहज में ही थोड़े फँस जाते हैं जा करके बड़े चालाक होते हैं। अगर दुनियाँ की चीज से इनको बड़ी चीज न मिले तो मैं कहता हूँ कि महात्माओं के पास में कदापि न आयेंगे, पाँच मिनट भी आदमी कदम नहीं रख सकता।
तो दुनियाँ इस समय पर बहुत आगे निकल गई है। मैं आपको बताऊँ बहुत आगे है और इतनी चालाक है कि महात्माओं को ही पहले ठगना चाहती है पर फिर यह है कि ठग-ठग को ठग सकता है समझ गये। अगर साह चाहे कि मैं ठग को ठग लूँ या ठग ही चाहे कि मैं साह को ठग लूँ तो बड़ी मुश्किल बात है तो ठग-ठग को ठगते हैं ये लोग जाते हैं महात्माओं को ठगने के लिए महात्मा इनको ठग लेते हैं बात तो यही है असल में।
इन्द्रियों के घाटों पर
दुनियाँ बड़ी होशियार है आगे निकल गई है और इतनी ज्यादा बुद्धिवाद में चली गयी है कि वह इधर जाना नहीं चाहती पसर गई इन्द्रियों के घाटों पर। भाई आपको दर्शन कैसे होगा? अब लाख आप प्रश्न करो कुछ करो वहं करो यह चाहो, चिल्लाओ और चाहे नास्तिक बन जाओ चाहे भगवान को मानो या न मानो चाहे अपनी आत्मा का कल्याण करो या न करो चाहे संगत में जाओ या न जाओ।
दुनियाँ बहुत आगे निकल गई है और इतनी ज्यादा बुद्धिवाद में फँस गई है कि उसका अनुभव नहीं कर सकती और न आत्म अनुभव कर सकते हैं। आत्म अनुभव नहीं हुआ तो परमात्म-अनुभव भी नहीं हो सकता और जब परमात्म-अनुभन नहीं हुआ तो ब्रह्म का भी अनुभव नहीं हो सकता और ब्रह्म का अनुभव नहीं हुआ तो पारब्रह्म का भी अनुभव नहीं होगा यह बिल्कुल निःसन्देह है।
निष्कर्ष:
ऊपर बताए हुए सत्संग आर्टिकल के माध्यम से आपने जाना, इंद्रियों को वश में कैसे किया जा सकता है? इस मानव शरीर में बैठकर के इंद्रियों को कंट्रोल कर सकते हैं और उसको कंट्रोल करने से पहले, मन को कैसे बस में किया जा सकता है? यह तमाम बातें आपने ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल के माध्यम से जाना। आशा है आपको जरूर अच्छा लगा होगा मालिक की दया सब पर बनी रहे। जय गुरुदेव,
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