Manushya Ka Sharir दुबारा नहीं मिलेगा। मनुष्य शरीर दुबारा नहीं

मनुष्य का शरीर (Manushya Ka Sharir) द्वारा नहीं मिलेगा। महात्माओं ने साफ संकेत दिया है यदि जीते जी हमने अपना काम नहीं किया तो मनुष्य शरीर द्वारा नहीं मिलेगा। Manushya Ka Sharir धारण करने के लिए हमें कई युगों का इंतजार करना पड़ सकता है। क्योंकि इसी Manushya Ke Sharir Mein हम जीते जी परमात्मा प्राप्त कर सकते हैं और इसी मनुष्य शरीर में (Manushya Ke Sharir Mein) तीसरी आँख को खोल सकते हैं। चलिए जानते हैं महापुरुष क्या बताते हैं? मनुष्य शरीर के बारे में,

Manushya Ka Sharir
Manushya Ka Sharir

जीते जी (Jeete Ji) परमात्मा प्राप्त

इसी मनुष्य शरीर (Manushya Sharir) से हम जीते जी परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। महात्मा (Sant Mahatma) सब कुछ बतलाते हैं जब हम सत्संग में जाते हैं पूर्ण महात्मा के पास, जिसने जीते जी परमात्मा को प्राप्त कर लिया हो, ऐसे महात्मा हमें इसी मानव शरीर (Manushya Sharir) से जीते जी परमात्मा प्राप्त करने की युक्ति बताते हैं।

बाबा जी ने सत्संग देते हुए कहा है: आज पूर्णमासी का दिन है। जगह-जगह की जयगुरूदेव संगतों (Jaigurudev sangat) ने प्रार्थना, भजन-ध्यान करके तथा बाबा जी के सन्देशों को सुनकर मनाया। साथ ही बड़े स्थानों में भण्डारे भी चलाये गए।

कलयुग कर युग है:-

‘कलयुग सम युग आन नहिं, जो नर कर विश्वास’

गोस्वामी जी ने कहा है। देवता भी तरसते हैं मनुष्य शरीर (Manushya Sharir) के लिए। कलयुग में मन चींटी के समान होता है। चींटी बालू में से चीनी अलग कर देती है। इसी प्रकार मन शब्द (Sabdhy) को पकड़ लेता है यह अध्यात्म विद्या है। सारी भौतिक विद्यायें, जहाँ समाप्त हो जाती हैं वहाँ से आध्यात्म विद्या (Aadhyatmik Viddya) की शुरूआत होती है।

महात्मा (Mahatma) जब किसी से कोई चीज उधार लेते थे तो उसे वापस कर देते थे। एक महात्मा भण्डारा कर रहे थे। घी कम हो गया तो शिष्यों से कहा कि जाओ 4 टिन गंगा मैया से उधर ले लो। शिष्यों ने चार खाली टिनों में गंगा जल भरा तो सब घी हो गया।

भण्डारा खत्म होने पर Mahatma (महात्मा) जी ने शिष्यों से कहा कि भाई गंगा जी का घी वापस कर दो और चार टिन घी गंगा जी में भक्तों ने डाल दिया। मैंने तुम्हारे लिए कुछ मांगा है अहमदाबाद में देवताओं से। तुम उसे वापस दे देना और वह पा जायेंगे।

मनुष्य शरीर (Manushya Ka Sharir) दुबारा नहीं मिलेगा

यह विद्या जो मिल रही है। उससे वंचित रह जाओगे तो Manushya Ka Sharir (मनुष्य शरीर) दुबारा नहीं मिलेगा। हमेशा प्रभु को प्राप्त करने वाली महान आत्मायें मनुष्य शरीर में आयीं। अगर इस शरीर (Sharir) में उस परा विद्या से तुम अछूते रह गये तो नरकों और चौरासी में बराबर तकीफ उठाते रहोगे।

भविष्य में ऐसी सुगम साधना होने लगेगी जिससे लोग नारद की तरह रोज बैकुंठ, स्वर्ग में आने और जाने लगेंगे। सतपुरूष जो आते हैं, महापुरूष (Mahapurush) जो इस भूमण्डल पर आते हैं वह अपने जीवों को ऊपर के लोकों में ले जाते है।

नानक जी (Nanak Ji) ने अपने शिष्यों का जब हिसाब लगाया तो देखा कि एक शिष्य नहीं है। ध्यान लगाकर देखा तो वह नरक में पड़ा हुआ था। तुरन्त में नरक में उसको लेने गये और नरक कुन्ड में अपना अंगूठा डुबाया ‘नानक जाय अंगूठा बोरा सब जीवन का किया निबेड़ा’।

तो उस नरक कुण्ड में पड़ी सभी आत्माओं का कल्याण हो गया। बच्चा अभी तुम क्या जानोगे महात्माओं को? Mahatama क्या करते हैं क्या देखते हैं क्या सुनते हैं। वह सब जानते हैं उनको तुम क्या पहचान पाओगे? बहुत मुश्किल है। उनसे कोई बात छिपी नहीं है।

अपनी डायरियों में लिखो

दिसम्बर 1972 में सत्संगियों को आदेश देते हुए बाबा जयगुरूदेव (Baba Jaigurudev) जी महाराज ने कहा कि यदि तुम किसी को रिश्वत दो तो अपनी डायरी में रिश्वत लेने वाले का नाम, तारीख, पता सब कुछ नोट कर लें। साथ में यह भी लिखो कि किस काम के लिए पैसा देना पड़ा है।

इसके अलावा जो मांस, अण्डा, शराब आदि का सेवन करते हैं और जनता के राज्य में महत्त्वपूर्ण पदों अथवा क्षेत्रों में काम कर रहे हैं उनके भी नाम विवरण सहित अपनी-अपनी डायरियों में लिखो। जो लोग गरीब, मजदूर, किसानों का रुपया पेंशन के रूप में ग्रहण करते हैं तथा अनेक प्रकार के अनैतिक कार्यो (immoral acts) को करते हैं उनके भी नाम सभी लोग नोट करें सत्संगियों की डायरियाँ भविष्य में मान ली जाएंगी।

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Manushya Ke Sharir Mein तीसरी आँख

इस बात को हमेशा याद रखो कि वह मालिक अन्धा बहरा नहीं है वह सब कुछ देखता और सुनता रहता है। उससे कोई भी बात किसी को छिपी नहीं रहती। उसके कर्मचारी हर वक्त हर किसी के क्रिया कलापों को नोट करते रहते हैं अगर तुमने इन्कार (Enkar) कर दिया कि मैंने यह काम नहीं किया तो उसकी वक्त फिल्म दिखा दी जाती है।

लिखी हुई और फिल्म का मिलान हो जाता है और फौरन सजा सुना दी जाती है। बच्चा जब पांच साल का हो जाता है उसके बाद उसकी फिल्म बननी शुरू हो जाती है और जीवन के अन्तिम स्वांस तक फिल्म बनती रहती है। यह आध्यात्मवाद है। साधना के द्वारा जब मनुष्य की (Manushya Ke Sharir Mein) तीसरी आँख यानी जीवात्मा की आँख खुल जाती है तो सब कुछ दिखाई देता है। जिसकी तीसरी आँख खुल जाती है उसी को महात्मा कहते हैं।

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