33 नरक का वर्णन व भयंकर रूप, नरक की सजा (Narak Ki Saja) का वर्णन

महानुभाव दिए गए कंटेंट के माध्यम से आप जानेंगे महापुरुषों ने नर्को का वर्णन किया है। नरक में कैसी सजा दी जाती है? नरक का वर्णन व भयंकर रूप, नरक की सजा (Narak Ki Saja) का वर्णन, आदि तमाम प्रकार के नरक का वर्णन किया है तो चलिए जानते हैं 33 नरक का वर्णन व भयंकर रूप, नरक की सजा (Narak Ki Saja) का वर्णन पूरा पढ़ें “जय गुरुदेव”

जो अनायास किमी प्राणी का दख पहुँचाते हैं अथवा नाना भांति की चोरी करते आततायी जीवों को यमदत पत्तों में रखकर जला दत है मनुष्य पराये धन और पराई स्त्रियों को खराब करते है यमदूत उनकी छाती में गर्म शूल गड़ा देते हैं और उनकी आँखों में गर्म सलाइयाँ डालकर फोड़ देते हैं। उनका बहुत बड़ी दुर्दशा करते हैं जो वर्णन में आ नहीं सकता। लिखने में लिखा नहीं जा सकता है।

Narak Ki Saja

नरक का वर्णन व narak ki saja

1-महावीर्य नामक नर्क:-महावीर्य नामक नर्क पीप से सर्वदा भरा रहता है। उसमें बज के समान काटे होते हैं। उसका विस्तार दस हजार योजन का है। उसमें डूबा पापी जीव कांटो से बिंध कर अत्यन्त दुख भोगता है। गौवों का वध करने वाला मनुष्य उस भयकर नर्क में एक लाख वर्षा तक निवास करता है।

2-कुम्भी पाक का नरक:-कुम्भी पाक का नर्क सौ योजन का है वह अत्यन्त भयंकर नर्क है। वहाँ की भूमि तपाए हुए ताँबे के घड़ों से भरी रहने के कारण अत्यन्त प्रज्वलित दिखाई देती है। साधू ब्राह्मण की हत्या व घरों को अपहरण करने वाले पापी उस नर्क में डाल कर प्रलय काल तक जलाये जाते हैं।

3-रौरव नर्क: रौरव नामक नर्क प्रज्वलित बजमय त्रिशूलों से व्याप्त रहता है। उसका विस्तार साठ हजार योजन का है। उसमें गिराये हुये मनुष्य जलते हुए बाणों से घिर कर यातना भोगते हैं। झूठी गवाही देने वाले मनुष्य उसमें ईख की भांति परे जाते है

4-मंजूस नरक:-मंजूस नामक नर्क लोहे से बना हुआ है। वह सदा अग्नि की भांति जला करता है। उसमें वे ही डाल कर जलाये जाते हैं जो दूसरों को निरपराध बन्दी बनाते हैं और अपने स्वार्थ में आकर धोखा देते हैं और किसी की सत्य बात मानने को तैयार नहीं है। साधू सन्तों और सज्जनों का सदा अपमान करते हैं।

भयंकर रूप नर्को का

5-अप्रतिष्ठ नामक नर्क:-अप्रतिष्ट नामक नर्क पीप व मूत्र और बिष्टा का भण्डार है अप्रविष्ट नामक नर्क में जो सज्जनों व ब्रह्म वेत्ता ब्राह्मणों को पीडा देने वाला पापी है नीचे मुह करके इसी नर्क में गिराया जाता है जिसका कष्ट अति दुखदायी है।

6-विलेपक नामक नरक:-विलेपक नामक घोर नर्क लोह की आग से जलता रहता है। विलेपक नर्क में मदिरा पीने वाले और परनारियों के साथ गमन करने वाले द्विज अथवा कोई भी मनुष्य इस नर्क में डाल कर जलाये जाते हैं। इन जीवों का वहाँ से निकलना होता ही नहीं है।

7-महाप्रभ नर्क:-महाप्रभ नामक विख्यात नर्क बहुत ऊँचा है। महाप्रभ नर्क में चमकते हुए शूल नुकीले गड़े होते हैं। जो लोग पति और पत्नी में भेद डालकर उनके जीवन को नष्ट कर देते हैं उन्हे शूल से छेदा जाता है। महान दुख उन शूलों के छेदने से होता है।

8-जयन्ती नरक:-जयन्ती नामक अत्यन्त घोर नर्क है। जयन्ती नामक नर्क में लोहे का बहुत विशाल पहाड़ के सदृश चट्टान पड़ा रहता है। पराई स्त्रियों के साथ सम्भोग करने वाले मनुष्य उसी चट्टानों के नीचे जलाये जाते हैं। जिसमें गर्मी इसनी होती है। जैसे गर्म बालू में चना डाल दिया और तुरन्त खिल जाता है-है इसी तरह जीव भूने जाते है।

9-शालमाल Nark (नर्क) :-शालमाल नामक एक नर्क है। वहाँ शालमल का अलिंगन करना पड़ता है। उस समय पीडा-सी हो उठती है। जो लोग सदा झूठ बोलते और दूसरों के मर्म को कष्ट पहुँचाने वाली कटु वाणी मुंह से निकालते हैं मृत्यु के समय उनकी जिहवा यमदूतों द्वारा काट ली जाती है।

नरक की यातना व narak ki saja

10-महारौरव नामक नरक:-जो आसक्ति के साथ कटाक्ष पूर्वक पराई स्त्रियों की ओर देखते है यमराज के दूत बाण मार कर उनकी आँखें फोड देते हैं। जो माता बहिन कन्या और पुत्र-वधू के साथ समागम तथा स्त्री बालक बूढ़ों की हत्या करते हैं उनकी भी यही दशा होती है। वे चौदह इन्द्रो की आयु पर्यन्त नर्क यातनाओं में पड़े रहते हैं।

महारौरव नामक नर्क ज्वालाओं से परिपूर्ण तथा अत्यन्त भयंकर है। महारौरव नर्क का विस्तार चौदह योजन है जो मढ नगर, घर अथवा खेत में आग लगाते हैं वे एक कल्प तक उसमें पकाये जाते हैं। यमराज के दूत चोरों को उसी में डालकर शूल शक्ति गदा और खड़ग से उन्हें तीन सौ कल्पों तक उसी में पीटते रहते हैं।

11-महातामिस्त्र नर्क:-महातामिस्त्र नामक नर्क और भी दुखदाई है। उसका विस्तार तामिस्त्र की अपेक्षा दूना है। उसमें जोंके भरी हुई हैं और निरन्तर अन्धकार छाया रहता है जो माता-पिता और मित्र की हत्या करने वाले विश्वासघाती हैं वे जब तक पृथ्वी रहती है तब भी उनमें पड़े रहते हैं और जो निरन्तर उनका रक्त चूमती है।

12-असिपत्र बन Namak नर्क:-असिपत्र बन नामक नर्क तो बहुत ही कष्ट देने वाला नर्क है। असिपत्र बन नर्क का विस्तार दस हजार योजन है उसमें अग्नि के समान प्रज्वलित खटग पत्तों के रूप में व्याप्त हैं। वहाँ गिराया हुआ पापी खड़ग की धार के समान पनों द्वारा क्षत विक्षत हो जाता है। उसके शरीर में सैकडॉ घाव हो जाते हैं। मित्रघाती मनुष्य उसमें एक कल्प तक रख कर काटा जाता है। उसकी पीडा खतरनाक है।

नरक लोक का वर्णन

13-करम्भबालुका नरक:-करम्भबालुका नामक नर्क दस हजार योजन विस्तृत है। करम्भबालुका नर्क का आकार कुएँ की तरह है। उसमें जलती हुई बालू अंगारे और कांटे भरे हुए हैं। जो भयंकर उत्पातों द्वारा किसी मनुष्य को जला देता है या निरपराध अपने तामस बुद्धि में आकर नुकसान पहुँचा देता है, बिना विचारे किसी जीव की हिंसा करता है जिसका शरीर अपने खडग से काट कर उधेड देता है और काटते वक्त उसे दर्द नहीं होता, ऐसे मनुष्य इस नर्क में डाले जाते हैं और एक लाख दस हजार तीन सौ वर्षो तक उन्हें जलाया जाता है और शूल मारे जाते हैं। बड़ा भारी दुख होता है बिना गुरु के यह गति पाई जाती है।

14-काकोल नामक नर्क:-काकोल नामक नर्क कीडों और पीप से भरा रहता है। जो दुष्टात्मा दूसरों को न दे कर अकेला ही मिष्टान उड़ाता है वह उसी में गिराया जाता है। जो किसी के हक को अपनी जिहा के स्वाद हेतु छीन लेता है उसको इसी नर्क में डाला जाता है।

15-कुडमल नर्क:-कुडमल नामक नर्क विष्टा, मूत्र और रक्त से भरा होता है। जो लोग पंच अग्नि का अनुष्ठान नहीं करते यानी पांच इन्द्रियों का दमन नहीं करते वे इसी नर्क में गिराये गिराए जाते हैं।

16-महाभीम नरक:-महाभीम नर्क अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त तथा मांस और रक्त से पूर्ण है। अभक्ष्य भक्षण करने वाले नीच मनुष्य उसमें गिरते हैं और उनके नाक, मुंह, कान, आँख में पीप भरा रहता है। हर अंग से दुर्गन्ध आती है।

17-महावट Nrak (नर्क) :-महावट नामक नर्क मुर्दो से भरा होता है और उसी में चीख रोने और हाय-हाय करने की आती है। वह बहत कीटों से व्याप्त रहता है। जो मनुष्य अपनी कन्या बेचते हैं वह नीचे मुंह करके उसी में गिराये जाते हैं।

नरक का वर्णन व narak ki saja

18-तिलपात नामक नरक:-तिलपात नामक नर्क प्रसिद्ध है। तिलपात नर्क बहुत ही भयंकर है। जो लोग दूसरों को पीडा देते हैं वह उसमें तिल की भांति परे जाते है।

19-तेलपाक नर्क:-तेलपाक नामक नर्क में खुलता हुआ तेल भूमि पर गिरा रहता है। जो हम तथा शरणागत की हत्या करते हैं वे उसी में पकाये जाते हैं।

20-बजकपाट Nrak:-बज्रकपाट नामक नर्क बज्रमय है। बजकपाट नर्क बहत दुखपूर्ण है जिसमें शिलायें जलती रहती है। जिन व्यक्तियों ने धोखा दिया वह लोग इन्हीं शिलाओं के साथ बाँधे जाते हैं

21-निःच्छवास नर्क:-निःच्छवास नामक नर्क अन्धकारपूर्ण है। निःच्छावास नर्क अन्धकार से पूर्ण और वायु से रहित है। जो किसी अतिथि अथवा साथ सेवी ब्राह्मण के दान में रूकावट डालता है वह निश्चेष्ट करके उसमें डाला जाता है।

22-अंगारोपमय नरक:-अंगारोपमय नामक नर्क दहकते हुये अंगारों से पूर्ण है। जो लोग दान देने की प्रतिज्ञा करके साधू सन्त ब्राह्मण और अतिथि को नहीं देते हैं वे उसी नर्क में जलाये जाते हैं।

23-महापापी नर्क:-महापापी नर्क का विस्तार एक लाख योजन का है। महापापी नर्क में वह लोग डाले जाते हैं जो सदा असत्य बोला करते हैं। उन्हें नीचे मुख करके उसी नरक में डाल दिया जाता है। जो स्त्री अपने पति को अपशब्द कहती है और उनकी आज्ञा का उलंघन करती है वह इसी नर्क में डाली जाती है।

24-महाज्वाल नामक नरक:-महाज्वाल नर्क महाग की लपटों से प्रकाशित एवं भयंकर होता है। जो मनुष्य पाप में मन लगाए हैं उन्हें दीर्घ काल तक उसी में जलाया जाता है। क्रकच नामक नर्क क्रकच नामक नर्क खोलते हुये गुड़ के अनेक कुण्डों से व्याप्त है। जो मनुष्य वर्ण संकरता फैलता है वह उसी में डाल कर जलाया जाता है।

नरक की सजा (narak ki saja) का वर्णन

25-गुड़पाक नर्क:-गुडपाक नामक नर्क खोलते हुये गुड़ के अनेक कुण्डों से व्याप्त है। जो मनुष्य वर्ण संकरता फैलाता है वह उसी में डाल कर जलाया जाता है।

26-क्षुरधार नरक:-क्षुरधार नर्क तीखे उस्तरों से भरा रहता है। जो ब्रह्मदर्शी ब्राह्मण की भूमि हड़प लेते हैं वे लोग एक कल्प तक उसी में डाल कर काटे जाते हैं।

27-अम्बरीष narak:-अम्बरीष नर्क में वह मनुष्य निवास करता है जो घूस लेता हो सोने की चोरी करता हो और परनारियों को खराब करता हो ऐसा मनुष्य अम्बरीष नर्क में करोड़ों वर्षों तक प्रज्वलित अग्नि में जलता है और उसी में दग्ध होता रहता है।

28-बजकुठार नामक नर्क:-बजकुठार नामक नर्क वज़ों से सम्पूर्ण व्याप्त है। जो दूसरों की निन्दा करते हैं अथवा अकारण किसी की जड़ काटते हैं इसी में डालकर काटे जाते हैं।

29-परिताप नामक नरक:-परिताप नर्क भी प्रलयाग्नि से परिपूर्ण है। विष देने तथा गोली से मारने वाला पापी मनुष्य उसी में यातना भोगता है।

30-कालशूल narak:-कालशूल नर्क बज्रमय शूल से निर्मित हैं। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं वे उसी कालशूल नर्क में घुमाये जाते हैं। इस नर्क में उनका अंग छिन्न-भिन्न हो जाता है।

31-कश्मल narak (नर्क) :-कश्मल नर्क मुख और नाक के मल से भरा होता है। मांस की रूचि रखने वाला मनुष्य उसमें एक कल्प तक रखा जाता है।

32-उग्रगन्ध नामक narak:-उपगन्ध नर्क मल मूत्र विष्टा से पूर्ण है। जो माता-पिता गुरूजन, अतिथि और अपने कुल के धर्म के सहित सेवा नहीं करते उसी नर्क में डाले जाते हैं।

33-बज महापीड़ नरक:-बज्र महापीड नर्क बज्र से सम्पूर्ण है। जो दूसरों के धन धान्य व स्वर्ण की चोरी करते हैं यमदूत उन चोरों को छूरों से क्षण-क्षण पर काटते रहते हैं, जो मूर्ख किसी प्राणी की हत्या करके गीध, सियार और कौवे की भांति खाते और जायका लेते हैं उन्हें एक कल्प तक अपने शरीर का मांस बज महावीर नरक में पहुँचकर खिलाना पड़ता है। यमदूत इसी नर्क में डालकर खुद काटते हैं और दूसर्ग कटवाल रहन हैं। असहनीय नर्क है।

Narak ki saja का वर्णन

जिन लोगों ने समाज की रीतियों को नष्ट कर दिया जिन प्राणियों ने समाज की मर्यादा को नहीं अपनाया जो प्राणी धर्मच्युत हुये और इच्छाचारी बन गये उनसे यम महराज पूछते हैं कि ऐसा तुमने क्यों किया? क्या तुम्हें सन्तों महात्माओं अथवा बुद्धिमानों ने नहीं समझाया था? या तुम्हारे समझाने के लिये धर्म ग्रन्थ नहीं थे।

माता पिता गुरुजनों की आज्ञा का उलंघन क्या हुआ? जब जीव जवाब नहीं दे पाता तो उस वक्त यम महराज हुकुम देते हैं अपने यमदूतों से कि इसको अपने लोक में ले जाओ। तब वे जीव को अपने लोक में बुरी तरह से पीटते हुए ले जाते हैं। संसार के दुख पाने वाले प्राणी तुम्हें इस मृत्युलोक मण्डल में चन्द दिन ही रहना होता है

पापी जीवों को कभी-कभी यमदूत अपने हाथों पर उटा लेते हैं और उस खाई में फेकते हैं जो दस हजार योजन नीची है। जिसके देखने में मालूम होता है कि ऊबड खारड और अनेक प्रकार के झाकर से युक्त है और ज्वाला भी जलती हुई नजर आती है।

Narak ki saja से बचने के उपाय

पाप करने वाले मनुष्यों, तुम्हें पाप करके आनन्द तो चन्द दिन तलाश करना है परन्तु दुख की जगह में सर्वदा के लिए जाना है। इससे बचने के लिए धर्मयुक्त महात्मा जनों का सत्संग करो वरना दुखसागर में पहुँच जाने पर कोई तुम्हारी सहायता न करेगा।

पापाचारी जीवों! स्त्रियों में सुख कदापि नहीं है। वह तो सुख तुम्हें भूल से प्रतीत होता हैं कि सुख मिलेगा परन्तु वह सुख एक सेकेण्ड का है जो कि तुम्हारे एक कण की शक्ति का आनन्द है। तुम फिर इसके बाद सुख की तलाश करना आरम्भ कर देते हो।

सुख धन में नहीं है, सुख मान और राज्य में भी नहीं सुख तुम्हारी अन्तर आत्मा में है। इसी सत्य चैतन्य को इस आनन्द स्वरूप से जोड़ो जिसके साथ सम्बन्ध करने से सर्वदा के लिए आनन्द स्वरूप बन जाओगे। अन्तर की अवस्था महात्मा सब अपनी आँखों से देखा करते हैं और महात्माओं को दुख है कि संसार अन्धकार में दौड़ रहा है जिसका फल दुख के अतिरिक्त सुख कभी न होगा।

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