बाबा जयगुरुदेव जी के डायरी के पन्ने, प्रतिदिन के विचार {Pratidin ke Vichar}

महानुभाव सादर जय गुरुदेव, इन सत्संग वचनों में आप जानेंगे स्वामी जी महाराज ने अपने डायरी के पन्नों में, Pratidin ke Vichar सत्संगी की-की रहनी क्या और कैसे होने चाहिए? पहले और आज के जमाने की बात की है। गुरु (Guru) शिष्य का सम्बंध क्या है कैसा रहना चाहिए? सत्संगी जन के आपस में व्यवहार क्या और कैसे? तमाम प्रकार की ऐसी सद्विचार हम मानस प्रेमियों के लिए इन सत्संग बातों में स्वामी जी महाराज ने दिए हैं। जो प्रतिदिन के विचार अपने जीवन में उतारे तो हमारे जीवन में हमारी आध्यात्मिक बाद में तरक्की जरूर होगी। आइए चलिए जानते हैं स्वामी जी महाराज ने अपनी सत्संग वचनों में Pratidin ke Vichar क्या कहा:

Pratidin ke Vichar
Pratidin ke Vichar

सतसंगी की रहनी (Pratidin ke Vichar)

प्रत्येक सतसंगी (Satsangi) को जब वह सतसंग में उपस्थित हो उसे सावधानी यह रखनी जरूरी है कि अपने वादे के अनुसार सदा अपनी दैनिक क्रिया में तत्पर रहे और सत्य के पथ को अपनाने में कुसंग से बचता रहे ताकि अपना स्वभाव संसारी भाव का न बनने पाये। आदत ही को बदलना संतमत ही खास हिदायत है।

अपनी जीव की दिनचर्या सदा गुरु (Guru) चरणों में गुजारना चाहिए और जो भी प्रसाद रूखा सूखा मिले उसे गुरु प्रसाद भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए और समय-समय पर साधन में अपने को तन्मय करने की पूर्ण साधना (Sadhna) करते रहना चाहिए जब तक यह साधन सिद्ध न हो जाये तब तक यही साधन करने में लगे रहना अनिवार्य है। विशेष ध्यान अपने कर्म पर रखना जरूरी है।

साथ रहने वालो की रहनी (Sath Rahne Valo Ki Rahani)

साथी जनों को उपदेश है कि (प्रतिदिन के विचार) जिस कार्य के हेतु अपना घर (Home) छोड़ा है वही काम करना। विचरने की हालत में साथी जनों को अपने रहन-सहन बोल चाल और ऑखों (Eyes) को सम्हाल कर रखना है क्योंकि यहाँ माया का जोर चल रहा है। किसी वक्त भी साथी जन के मन को विचलित कर सकता है।

क्योंकि मैंने अपना निजी अनुभव किया है कि गुरु (Guru) जब देशाटन अपने प्रेमी जनों के हित करते हैं तब उनको हर भाव में जाना पड़ता है। गुरु के निकटवर्ती साथी अपनी कल्पित बुद्धि से कुछ का कुछ समझता है और अभाव अवस्था में आ करके बैठने, उठने खाने पीने बोलने, सोने में लापरवाही करता है।

इसका नतीजा यह होता है कि साधक की साधना और भाव की बुद्धि सुस्त और कुन्द हो जाती है। इससे निकटवर्ती साथी साधना में सुस्त होकर Guru की हर क्रिया से महरूम रहेगा, यानी दया न पा सकेगा। गुरु के साथ चुस्त और होशियार रहना जरूरी है। अपने शरीर (Body) को गला देना जरूरी है। जिस नियम को गुरु बना दे उसी पर हाबी रहना चाहिये। गुरु की हर कृपा पर आशिक रहना शिष्य का मुख्य धर्म (Religion) हैं।

अपना विचार मजबूत (Apne Vicharo Ko Majbut Rakhe)

गुरु (Guru) की कृपा साथी जनों पर बहुत होती है। साथी जन् अपना विचार मजबूत (Vichar Majbut) नहीं कर पाते है जिन कर्मो के बस होकर जीव को नर्को की असह्य त्रास पाना है गुरु इसी असह्य त्रास से छुटकारा कराता है। गुरु (Guru) चाहता है कि निकटवर्ती साधक शुद्ध भाव में आकर अचल साधना सुरत के जगाने की करने लगे और अपना जलवा आप देखे।

पर साधक किसी न किसी क्रिया का शिकार होकर साधन की मनोवृत्ति बदल कर संसारी भाव की मनोवृत्ति में रमण (भ्रमण) करने लगता है। Sadhako! होशियार रहो जो रास्ते में गाफिली करोगे उसी में लूट लिये जाओगे। “निगुरा मुझको ना मिले पापी मिले हजार, इक निगुरे के सीस पर लाख पापियों का भार”

आज का जमाना (Aaj Ka Jamana)

हर इंसान अपनी भावना में आजाद हो गये हैं। जैसे चाहें देखें, सुनें बोलें और बरतें कर्म भी आजाद। इसी से संसार में पाप हो रहा है। अनाचार तो इतना फैल गया है कि आदमी के रोम-रोम में बस गया है। दिल्ली में तो आदमी इस कदर भाग रहे है जैसे कहीं आग (Fire) लग गई हो सब बुझाने जा रहे हो। कोई किसी का साथी नजर नहीं आता हे।

हर आदमी पैसे के पीछे पड़ा है। हाय पेसा, हाय पैसा (Paisa) कैसे आवे? औरतें चिल्लाती हैं कि जल्दी चूड़ियाँ और हार साड़ियाँ लाओ। यही आवाजें शहरों में उठ रही हैं। इन्हें कहाँ फुरसत जो महात्मा की आवाज सुनें इनके ऊपर संकट का पहाड़ टूटने वाला है। “आ रहा है जमाना, आ रहा है जमाना, साधूओं का बोल बाला होगा”

आज दुनियाँ (Aaj World) दुःखी है प्रार्थना करके पूछती है कि दुःख से छूटने का सामान होगा? होगा जरूर पर अभी कुछ देर है। जब दुःख की सीमा का अन्त होता है हद उसी वक्त दुःख विसर्जन की सूचना होती है और सुख पाने का आहवान होता है। आयेगा वह वक्त (Time) जरूर पर समय पर। एक आदमी का प्रश्न है कि क्या होगा दुनिया खत्म होगी खत्म होगी? कब होगी? तीस वर्ष है। इसी में पाप बढ़ेगे आबादी कम होगी, मुल्क के मुल्क खत्म होगे इंसान को बैठने की जगह नहीं रहेगी।

गुरु और शिष्य का सम्बन्ध (Guru Or Sissy) प्रतिदिन के विचार

गुरु और शिष्य (Guru Or Sissy) का सम्बन्ध समझने में लोगों को भूल व भ्रम पैदा होते रहते हैं। हालांकि बात स्पष्ट है कि गुरु रास्ता दिखाने वाला है और शिष्य अपना जोर लगाता है। शिष्य क्या करे? जैसा रास्ता उसे दिखता है वैसा कार्यक्रम करता है परन्तु यह समझता सही है कि शिष्य कुछ समझता नहीं है। होगा वही जो गुरु (Guru) की ताकत से होगा।

शिष्य अपनी दखल उसी वक्त पावेगा जब परिश्रम करेगा। गुरु की ताकत से शिष्य ऊपर चढ़ेगा जरूर परन्तु शिष्य की सुरत (Surat) ऊपर के स्थान पर नहीं ठहर पावेगी। उसका कारण यह है कि अपनी मेहनत से सुरत टिकने का स्थान बना लेती है। इससे गुरु कृपा (Guru Kirpya) लेकर मेहनत करो।

जो जीव उपदेश लेकर मेहनत नहीं करते हैं और मुफ्त के हरामखोर हैं उन्हें कुछ नहीं मिलता है क्योंकि गुरु ने के मुफ्त का धन (Free Money) उनके नाकिस कर्म अनुसार न दिया तो अभाव में आकर मुफ्त का धन (Free Money) लेने की नियत से चोरों की तरह घूमते हैं और जब नहीं मिला तो वहाँ से भी हट जाते हैं ऐसे जीवो के मन में अनेक विकार रहते हैं आप भरमे हैं और दूसरों को भरमाते हैं।

ऐसे जीव सन्तों के पास बहुत आये और चले गये और आज भी है। कर्म अनुसार (कर्म करने का उद्देश्य एवं उनके प्रकार | कुछ महान विचारक) बेचारे धक्के खाकर चौरासी (84) में चले जाते हैं। उनका कोई रक्षक नहीं होता है। जीवों को संभल कर गुरु के पास जाकर साधन में तत्परता रखना जरूरी है जिससे सुरत अन्तर्गत में जाग जावे और शब्द की धार को पकड़ ले और सुरत में चैतन्यता आ जावे इससे गुरु (Guru) की आज्ञा में का पूरा पालन करना चाहिये।

सतसंगी के आपस के व्यवहार (Satsangi Ke Vebhar)

सतसंगी जनों (Satsangi Jano) को आपस में किसी प्रकार की तना-तनी नहीं करनी चाहिए और कोई ऐसा शब्द प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को दुःख हो। बचन उतना ही बोलो जो दूसरा आसानी से सहन कर सके। इस बात का सदा ध्यान रहे (Dhayan Rahe) कि दूसरा अपने से दुःखी न हो और परमार्थ की सीढ़ी से उतर न जाए बचन तौल कर मुंह से निकालो। सबको प्रिय भाव में लो। वह तुम्हारे साथ प्रेम से न बोले तो वह दुःखी न हो।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल में आपने स्वामी जी महाराज ने अपने डायरी में कुछ जनमानस के लिए प्रतिदिन के विचारों (Pratidin ke Vichar) का उल्लेख किया है। आशा है आप को ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। स्वामी महाराज की दया सब पर बनी रहे जय गुरुदेव।

परमात्मा की सत्ता पर पूर्ण विश्वास रक्खो। जीवन का मुख्य ध्येय

गुरु के अनमोल वचनों को हमेशा याद रखो | Guru Ke Vachan Yad Rakho