संतों का देश सतलोक अविनाशी पुरुष की महिमा-Santo Ka Desh

Santo Ka Desh: महानुभाव जयगुरुदेव इस आर्टिकल के माध्यम से आप जानेंगे संतों का देश सतलोक अविनाशी महापुरुष की महिमा का वर्णन जो सटीक शब्दों में Santo Ka Desh Nirala है। महापुरुषों ने संतो के देश की व्याख्या की है सतलोक और अविनाशी महापुरुष के वर्णन के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण वाक्य जो अपने सत्संग के माध्यम से प्रेमियों के साथ सांझा किए, चलिए जानते हैं जय गुरुदेव,

संतों का देश

सन्तों का देश (Santo Ka Desh)

सन्तों के देश में सदा प्रकाश है। सदा जगमग ज्योतें जलती रहती हैं। सदा अमृत बरसता रहता है। वह अथाह सन्तों का देश महान (Santo Ka Desh Nirala) प्रकाश के भण्डार से भरा रहता है। अजर अमर जहाँ पर सुख है। सुगन्ध अपार है। एक-एक कंगूरे पर जो कला है उससे कोटानिकोट ब्रह्माण्ड लटके हुए हैं जहाँ ज्योतियों के फर्श बिछे हुये हैं।

बिना धरती के अमृत का समुद्र भरा हुआ है। उसी में से अमृत की बूंद उलझकर आई। उसी से सन्त हुये हैं। प्रलय और उत्पत्ति में वह आता नहीं। सन्त उत्पत्ति तथा प्रलय का सदा तमाशा देखा करते हैं। सन्त स्वतः अपनी इच्छा से प्रलय स्थान पर आये अविनाशी सन्तों को ही कहते हैं।

अविनाशी सतपुरूष (Avinashi Satpurush)

सबका कारन और करने वाला तथा सबसे अलग रहने वाला वहीं अविनाशी सतपुरूष (Avinashi Satpurush) है जो सत्तलोक (Satlok) में है। जिस तरह से जल की तरंग जल में ही समा जाती हैं इसी तरह से उस अथाह जल के तरंग सन्त हैं देखने में अलग मालुम होते हैं परन्तु वह अथाह जल से भिन्न नहीं हैं उसी में समा जाते हैं।

सन्त ही पूर्ण अखण्ड और सदा प्रकाशमय हैं। उस परम तत्व से मिलना सुख की राशि है। गुरु का कहना है कि हरि हीरा पूरे गुरु के पदों में है। जिसका मन पवित्र है, उसको गुरु के सुबचन मिलने पर संजीवन मूर बूटी नाम की मिल जाती है। सन्तों के बचनों को सत्य तुम्हें जानना चाहिए और सन्तों में तथा सत्तपुरूष साहब में कोई भेद न जानना चाहिये।

दोनों एक हैं। सन्त ही सार और असार का भेद देते हैं तथा मन में अनेक प्रकार का कल्पित भ्रम जो फैला हो उसको बताते हैं। मन तरंग मस्ती में आकर निज रूप को भूल बैठा जिस तरह पवन के आने पर पत्ते झूला करते हैं उसी तरह मन भी तरंग में झूला करता है।

अमर पद सत्तलोक (Amar Pad Satlok)

मन जो किसी समय में मणि के समान था पर आज जंग लग गया कमों का और सार आनन्द को त्याग कर असार में फंस गया। साहब के साथ सुरत गुरु को पाकर जल की भांति जल-जल ही में समा जाता है। उसी तरह सुरत समा जाती है। जब जीव अमर हो जाता है।

पिण्ड को तथा अण्ड को तथा ब्रह्माण्ड को छोड़कर अमर पद सत्तलोक में पहुँच जाता है, तब जाकर अवस्था में पहुँचा जाता है। जिस तरह पुरइन पर पानी नहीं असर करता उसी तरह सन्तों पर कोई संसार का असर नहीं होता है।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने संतों का देश (Santo Ka Desh) सतलोक और महापुरुषों का कुछ शब्दों में वर्णन जाना। आशा ऊपर दिया गया कंटेंट महापुरुषों के शब्द आपको जरूर अच्छे लगे होंगे।जय गुरुदेव

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