Sawan Ashram | आध्यात्मिक डोर | भूते न भविष्यते

जय गुरुदेव आध्यात्मिक डोर, भूतो न भविष्यति, सावन आश्रम (Sawan Ashram) की महिमा का जिक्र परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के सत्संग पुस्तिका के माध्यम से कुछ अनूठे और रहस्यमय अद्भुत लीलाओं का वर्णन इस सत्संग आर्टिकल में करने वाले हैं। जिसमें Sawan Ashram सन्त कृपाल सिंह, स्वामी सच्चिदानंद जी और ऐसे अनेक महात्माओं के बारे में कुछ इस सत्संग आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं। जय गुरुदेव,

Sawan Ashram
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स्वामी जी महाराज बोले कि:

बहुत पहले की बात है। स्वामी जी महाराज अपने एक प्रेमी के रिश्तेदार के घर लखनऊ में एक दो बार गए। उनके रिश्तेदार को नौकरी नहीं मिल रही थी। उन प्रेमी ने स्वामी जी से इसके लिए प्रार्थना की। स्वामी जी ने दया की और उनको नौकरी मिल गई।

एक दिन उन रिश्तेदार की पत्नी ने बातों की बातों में मुझसे कहा कि क्या हैं तुम्हारे बाबा जी मेरे घर आते थे तो चाय पीकर ही जाते थे। उनके कहने का लहजा ऐसा था कि मुझे उनकी बात बुरी लगी। कुछ दिन बाद स्वामी जी लखनऊ घर पर पधारे। मेरे दिल में तो बात थी ही। कोई बात चली तो मैंने स्वामी जी से सीधे सपाट कह दिया कि आप ने वहाँ चाय क्यों पी थी? स्वामी जी ने मेरी तरफ देखा और कुछ मुस्कुराते हुए बोले कि तू क्या कह रही है? उन लोगों ने आग्रह किया था।

मैंने कहा कि उन्होंने मुझसे ऐसा कहा कि जब बाबा जी आते हैं तब चाय पीकर जाते हैं। मुझे बहुत बुरा लगा। स्वामी जी महाराज बोले कि तुमने जबाब क्यों नहीं दिया? चाय पी तो एक प्याली पी और नौकरी दिला दी। उसके बाद स्वामी जी ने फिर कहा कि मैं किसी के मुफ्त का एक गिलास पानी भी नहीं पीता। एक गिलास पानी का भी अदा कर देता हूँ।

सावन आश्रम (Sawan Ashram) सन्त कृपाल सिंह

बात सन् 61 जनवरी की है। स्वामी जी महाराज बीकानेर में सत्संग कर रहे थे। उनका सन्देश हम लोगों को मिला लखनऊ में कि दिल्ली फंक्शन है तुम थे लोग वहा पहुँचो मैं भी पहुँच रहा हूँ। स्वामी जी ने यह भी सन्देश दिया कि तुम लोग सावन आश्रम पहुँचना मैं वही रहूंगा। Sawan Ashram सन्त कृपाल सिंह जी ने बनवाया था। उसमें स्वामी जी के लिए उन्होंने एक कमरा बनवा कर रखा था।

जब हम दिल्ली पहुँचे तो हमारे पहुँचने से पहले स्वामी जी महाराज दिल्ली पहुँच चुके थे सावन आश्रम से नहा धोकर किसी प्रेमी से मिलने चले गये थे और वहाँ के सिक्रेटरी से कह गये थे कि लखनऊ से हमारे दो लोग आ रहे हैं उन्हें यहीं ठहराइएगा। जब हम लोग दिल्ली पहुँचे तो स्वामी जी के कमरे में हम लोगों को ठहराया गया।

हम लोग नहा धोकर धूप में बैठे ही थे कि सेक्रेटरी ने एक लड़की को भेजा कि जाओ लखनऊ से स्वामी सच्चिदानन्द जी आये है उनसे कह दो कि स्वामी जी का फोन आया है वह पूछ रहे थे कि वह सब आये हैं कि नहीं।

स्वामी सच्चिदानन्द जी

वो लड़की आई। उसने कहा कि सरदार जी ने हमें भेजा है यह बताने के लिए कि एक आदमी का फोन आया है कि लखनऊ से स्वामी सच्चिदानन्द जी आने वाले थे आये कि नहीं। पहले तो मेरी समझ में नहीं आया लेकिन तुरन्त यह समझते देर नहीं लगी कि स्वामी जी ने फोन किया होगा और यह लड़की कहीं गलत समझ गई है।

मैंने हंसते हुए उससे कहा कि वह आ गये हैं। फिर हमने जाकर सरदार जी से बात की। उन्होंने हम लोगों से कहा कि आपके स्वामी जी का फोन आया है। उन्होंने आप लोगों को अशोक नगर में बुलाया है। अशोक है नगर सावन आश्रम (Sawan Ashram) के पास ही था।

हम लोग टहलते हुए निकल पड़े। हम थोड़ी दूर गये थे कि देखा स्वामी जी महाराज मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे चले आ रहे हैं। वह दृश्य ऐसा था जो शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। हम देखते ही रह गये। स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए पूछा कि तुम लोग आ गये? और हम लोगों को लेकर उस कोठी में गये जहाँ शाम को फंकशन होने वाला था।

संगत खिलौना या राजनीतिक पार्टी नहीं

चर्चाएँ तो हर प्रकार की होती रहती हैं। जब चर्चा होती है तो बातें कानों में आती ही हैं। एक राजनीतिक चाल यह भी है कि जब कोई मामला पकड़ में आए तो उसे दबाने के लिए एक ऐसा सुर्रा छोड़ दो ताकि सब उसमें उलझ जाय और मामला रफादफा हो जाए।

गुरू पूर्णिमा का विशेष पर्व या महोत्सव 19 से 24 जुलाई 94 तक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। स्वामी जी महाराज ने तो कहा ही था कि ‘ भूते न भविष्यते। देखने वाले चकित रह गए। सारी की सारी व्यवस्था संगत के खून पसीने की कमाई का था। कितने भण्डारे अनवरत गति से चलते रहे। नए लोगों ने, शेखपुर व आसपास क्षेत्र ग्रामवासियों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।

जब कोई बात किसी को नहीं मिली तो यह चर्चा उठी कि फलां संगत टूट जाएगी, ये हो जाएगा वा हो जाएगा। न जाने क्या-क्या बातें फैली। किसने कही किससे कही किससे कही क्यों कही इन सब पचड़ों में जाने की जरूरत नहीं। ये संगत है कोई पार्टी या खिलौना नहीं जो टूटेगी।

आध्यात्मिक डोर से बाँधकर

बात पुरानी है। एक बार एक सज्जन स्वामी जी महाराज के पास आए। यह तो बात सही है कि संगत भानुमती का कुनबा है, कहां-कहाँ के लोग इसमें आकर बैठे हैं। बाबा जी ने उन्हें जोड़ा है, आध्यात्मिक डोर से बाँधकर रखा है।

हाँ! तो उन साहब की किसी सत्संगी से व्यक्तिगत मनमुटाव था। रही होगी उनकी कोई आपसी बात। उन्होंने स्वामी जी महाराज से कहा कि अमुक (नाम बताने की जरूरत नहीं) व्यक्ति रहेगा तो आपकी संगत टूट जाएगी।

स्वामी जी महाराज ने यह सुनकर तेज स्वर में कहा था क्या कहा? संगत टूट जायेगी? क्या उसने संगत खड़ी की है? संगत मैंने खड़ी की तुमटूट जाओ वहटूट जाए संगत नहीं टूटेगी। संगत मेरे लिए है और रहेगी मैं संगत के लिए हूँ।

निष्कर्ष

महानुभाव ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने सावन आश्रम (Sawan Ashram) संत कृपाल सिंह जी महाराज और सच्चिदानंद जी महाराज जैसे महापुरुषों से जुड़ी हुई कुछ अद्भुत कहानी के रूप में या जानकारी पढ़ी जो बाबा जयगुरुदेव सत्संग पुस्तकों में उल्लेखित किया गया है। आशा है आप को ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा। मालिक की दया सब पर बनी रहे “जय गुरुदेव”

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