Yaadon Ke Jharokhon | Baba Jaigurudev | आप क्या कहेंगे

सन् 77 का चुनाव हारने के बाद भूतपूर्व महिला प्रधानमंत्री (Mahila Prdhanmantri) स्वामी जी महाराज से मिलने मथुरा आश्रम (Mathura Aasram) पर रात्रि के बारह बजे के लगभग अपने सहयोगियों के साथ आई थीं। दो तीन घन्टे रहने के बाद रात्रि के अन्धेरे में ही वापस दिल्ली लौट गई थीं। यद्यपि उन्होंने पत्रकारों के समक्ष बाबा Jaigurudev से मिलने की बात को स्पष्ट रूप से नकारा भी पर यह बात तो न छिपनी थी न छिपी।

पत्रिकाओं ने बाबा Jaigurudev जी के साथ बात करते समय का फोटो प्रकाशित किया था। वर्तमान राजनीति का पहला और प्रमुख अंगझूठ है इसीलिए यह कोई विशेष बात नहीं थी प्रधानमंत्री (Pardhanmantri) जी के लिए।

Jai Guru Dev Images
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अखबारों में खबर छपी कि वर्तमान प्रधानमंत्री (Bartman Pradhanmantri) श्री राव ने बोफोर्स मामले में सोलंकी द्वारा किये गये पत्राचार की जानकारी से इन्कार किया है। बात सोचने की है। देश की गरिमा (Desh Ki Garima) को देखते हुए इतनी बड़ी बात हो जाय और प्रधानमंत्री (Pardhanmantri) को जानकारी न हो इसे हम देश का दुर्भाग्य और लोकतंत्र की असफलता ही कहेंगे।

आप क्या कहेंगे आप स्वयं विचार करें । Self Vichara

मुझे याद आ गयी (Yaadon Ke Jharokhon) कि जब भूतपूर्व प्रधानमंत्री (Bhutpurv Pardhanmantri) स्वामी जी से मिलने आयी थीं तो स्वामी जी महाराज ने एक प्रश्न किया था कि आप को मालूम था कि इमरजेन्सी में कितनी ज्यादतियाँ की गईं? मैं भी 21 महीने जेल में रहा हथकड़ियाँ और बेडियाँ भी लगायी गयीं। Pardhanmantri ने नकारते हुए कहा था कि मुझे इसकी कोई खबर नहीं थी यह मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने किया था।

स्वामी जी महाराज (Savami Ji Maharaj) ने उस समय यही कहा था कि तब तो आप को अपने पद से त्याग-पत्र दे देना चाहिए था। आप को नहीं मालूम था कि देश में क्या हो रहा है? यादों का झरोखा भी कभी इन्द्रधनुषी रंग ले लेता है और यादों का (Yaadon Ka) सिलसिला जब चल पड़ता है तो कहां-कहाँ की बातें आपस में तालमेल बिठाते हुए उठ खड़ी हैं सब कुछ आधुनिक फिल्मों जैसा।

माडलिंग का युग । Madling Yug

Yaadon Ke Jharokhon se यह माडलिंग का युग (Madling Yug) है। माडलिंग एक फैशन भी है, अर्थोपार्जन का साधन भी है और दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं फिल्मों की चकाचौंध करने वाली दुनियाँ की ओर कदम बढ़ाने का एक रास्ता भी है। कला का ही रूप विज्ञापनों के माध्यम से उभरा है। सूई से लेकर फ्रीज तक, रिक्श से लेकर हवाई जहाज तक, सौंदर्य प्रसाधन से लेकर ब्लेड, सेविंग क्रीम, साबून, शैम्पू सब कुछ में नारी की भागीदारी अहम भूमिका निभा रही है।

क्षमा कीजियेगा माडलिंग (Madling) और कला के नाम पर सब कुछ जायज है। परिवार नियोजन के प्रचार तो अनेक तरीकों से किये जा रहे हैं। यहाँ तक कि मर्यादा की सीमा लांघ कर भी अगर प्रचार हो सकता है तो होता है और होना चाहिए ऐसी लोकतंत्र की मान्यता है।

एक पुरानी घटना याद आ गई । Purani Ghatna

इन प्रचारों को देखकर मुझे एक पुरानी घटना (Purani Ghatna) याद आ गई। उन दिनों लखनऊ का महानगर, निरालानगर आदि क्षेत्र विकसित हो रहा था। इक्का दुक्का मकान बने थे। हम कुछ दिन निरालानगर की तरफ भी रहे। हमारे घर के आसपास फैला विस्तृत मैदान था।

मैदान में एक जमादार परिवार अपनी झोपड़ी डालकर रहता था। उस परिवार (Parivaar) में सात-आठ बच्चे थे। सबसे बड़ी लड़की 14-15 वर्ष की रही होगी और सबसे छोटा लड़का एक वर्ष के लगभग था। सब हष्ट-पुष्ट मस्त थे। जो बच्चे बड़े हो गये थे वे मां-बाप के काम में हाथ बंटाते थे। जो हाथ नहीं बंटा सकते थे वे घर पर छोटे भाई-बहनों को सम्हाला करते थे। कुल मिलाकर सुखी संतुष्ट परिवार (Parivaar) लगता था।

महानगर अस्पताल की दो नर्से । Mahanagro Ki Asptaal

Yaadon Ke Jharokhon Se एक दिन महानगर अस्पताल की दो सेविकायें (नर्से) उधर आईं। उस समय जमादारिन काम से लौटी थी और दरवाजे पर बैठी अपने बच्चों के साथ रोटी खा रही थी। वह दोनों परिचारिकायें जमादारिन को परिवार नियोजन (Parivaar Noyojan) की उपयोगिता समझाने लगी और उस पर दबाव डालने लगीं कि वह अस्पताल चलकर परिवार नियोजन के उपाय अपना ले। उन लोगों की भाषा Parivaar Noyojan की थी कि बच्चे ज्यादा होंगे तो खर्च कैसे चलेगा, शिक्षा कैसे दिला सकोगी कि बीमार पडेंगे तो दवा कैसे करोगी आदि-आदि।

जमादारिन सब सुनती रही और जब उनके भाषण खत्म हुए तो वह बड़े जोर से बोली-मेम साहब! जिधर से आई हो उधर ही वापस चली जाओ। तुमको मेरे बच्चे बीमार दिख रहे हैं? बीमार पड़े हमारे दुश्मन। जो सड़क पर घूम रहे हैं पढ़ लिखकर पहले जाओ उनको काम दिलाओ तब हमसे बात करो। हमारे बच्चे अपना काम करके पेट भर लेंगे। रोटी भगवान (Bhagvaan) देता है। जिसने मुंह बनाया है वह रोटी भी देगा। मेहनत मशक्कत करना हमारा काम है।

रोटी देना भगवान का । Bagvaan Ka Kam

आज भी जब कि परिवार नियोजन (Parivaar Noyojan) के विज्ञापन बढ़ते जा रहे हैं क्या वह अब भी जनमानस को प्रभावित करने में सफल हो पा रहे हैं? अगर हो रहे तो आबादी बढ़ कैसे रही है? इस संदर्भ में मुझे याद आ रही है एक मुस्लिम महिला (MUSLIM MAHILA) । उसने बड़ी साफ गोई की थी कि इसे आपकी कौम ने अपनाया है।

खुदाए पाक का खौफ नहीं रहा। हमारी कौम तो अब भी डरती है। बच्चे तो अल्लाहताला की देन है हम गुनाह क्यों करें। जो खुदा से डरता नहीं है खुदा उसको तबाह करता है माफ नहीं करता। मैं सोचने पर विवश हूँ कि यह प्रचारों का लोकतंत्र, विज्ञापनों का लोकतंत्र नेताओं अभिनेताओं का लोकतंत्र (LOKTANTR) कितना सफल रहा और कितनी सफलता इसको मिलेगी।

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