गुरु की कृपा जब होती है एक साधक पर, जब गुरु के बताए हुए नियमों पर चलते हैं और जब शिव नेत्र खुलता है गुरु की दया देखने को मिलती है। वास्तव में गुरु दर्शन का फल हमारे जीवन में कितना बड़ा फायदा होता है? यह सब जिन्होंने गुरु का दर्शन किया है ह्रदय भाव से उनके ह्रदय में उस प्रसन्नता का बखान किया नहीं जा सकता है। गुरु कृपा और गुरु दर्शन का बहुत बड़ा लाभ होता है महात्माओं ने सत्संग में सब कुछ बताया है। तीसरा नेत्र (शिवनेत्र) खोलने की विधि और गुरु दर्शन का लाभ गुरु कृपा से क्या-क्या होता है? चलिए जानते हैं जय गुरुदेव।
गुरू दर्शन का फल
गुरू दर्शन से महान लाभ होता है। शरीर पीड़ा बहुत कम होती है। मानसिक रोग जाता है। संशय भ्रम और दुख मिटता है तथा किये हुये क्रियामाण कर्म कट जाते हैं और महापुरूष की वह दया प्राप्त होती है जो पुस्तकों में लिखी नहीं जा सकती है। सुरत के ऊपर का मैल कट जाता है और मन पवित्र होता है। इन्द्रियाँ भोगों की तरफ से हटकर घृणा करने लगती हैं। गुरु दर्शन से मालिक याद आता है, जो तुम्हारे करीब बैठा है। अन्तर की शिवनेत्र आँख खुलती है।
शिवनेत्र आँख खुलने
शिवनेत्र आँख खुलने का जब मैं उपदेश करता हूँ, उस समय लोग आश्चर्य में पड़कर तरह-तरह की बातें करने लगते हैं। कहते है कि कलयुग में शिवनेत्र आँख खुलती ही नहीं। जिस किसी का दिल चाहे जिसके शरीर में ताकत है और जो समय देना चाहते हैं उनकी शिवनेत्र आँख जरूर खुलेगी।
हमारे पास आओ हम आपको युक्ति बतायेंगे। यह कार्य महान गुरु की दया पर निर्भर है। कृपाकर तुम्हें बुला रहे हैं। कहते हैं, बुद्धि विद्या छोड़ो और जल्दी आओ समय निकला जा रहा है मृत्यु आ रही है। बहुत से लोग जो सतसंग में आकर उपदेश ले लेते हैं चार बहुत जल्दी करते हैं कि अभ्यास में बैठते ही शीघ्र रस मिलने लगे।
गुरु पर तान मारते हैं और अपनी हालत नहीं परवते कि माँ भी कितनी गुनावन भरी हैं। अपनी कसर भी दूर नहीं करते हैं। गुरु पर ऐब लगाकर दूर होते हैं और कहते हैं कि गुरु ने दया नहीं की। हमको कुछ न करना पड़े गुरु पार करें। मन को गुरु मोडे और अन्तर में तरंग न उठने देवें और उनकी हर प्रकार की सहायता करें।
गुरु की कृपा
वह यह नहीं जानते कि गुरु की कृपा तीसरे तिल पर पहुँच कर होगी। गुरु तीसरे तिल के नीचे नहीं आते। अभ्यास गुरु की दया लेकर तुम्ही को करना होगा। अभ्यास के समय गुरु की दया गुप्त काम करेगी परन्तु गुरु दया तीसरे तिल पर प्रगट होने लगती है।
तुम गुरु को दोष न देकर जो गुरु कहें उसके अनुसार अपनी रहनी बना लो, प्रेम विश्वास दिन-प्रतिदिन बढ़ाते चलो। कुछ दिन में तुम्हें दया मालूम पड़ने लगेगी। मेरा विश्वास है कि हर महात्मा के समय में लोग साधन करते हुये उनकी बुराई देखने लगे जो गुरु बतलाते हैं उसको न करते हुए उसके विपरीत करने लगे।
गुरु में ऐब देखते हैं। इन्होंने ऐसा क्यों किया, नहीं करना चाहिए। अनेक अवगुण निकालते हुये काल ने उन्हें बहकाया है। परन्तु गुरु सब साफ करते हैं शिष्यों के अवगुणों को कभी नहीं देखते वह चाहते हैं कि इनमें कोई दुर्गुण न रह जावे और वह साफ हो जावे।
गुरु के दरबार में
जो शिष्य कहलाते हैं जिसको गुरु के दरबार में मान मिलता है और हमेशा पास रहते हैं उन्हीं के ऊपर भूत सवार होता है। वह गुरु में अवगुण देखने लगते हैं यह नहीं जानते हैं कि गुरु समरथ होते हैं। जैसे हमारे गुरु महराज में कुछ लोग बुराई निकाला करते थे जब कि उमर 35 वर्ष की थी और स्त्री बच्चे सदा उनके साथ रहे,
परन्तु कुछ कह ही दिया करते थे। पास रहने का नाम शिष्य नहीं है और मान पा लेने का नाम पहुँचा हुआ नहीं कहते हैं। गुरु के दरबार में हर किस्म के लोग अनेक भाव में पड़े रहते हैं। गुरु किसको किस तरह सुधारते हैं यह तो गुरु मुख जाने।
सेवक नाम उसी का है जो गुरु में किसी प्रकार का अवगुण न देखे और गुरु जो कहें उस आदेश का पालन करें। वह सुमिरन ध्यान भजन में लगा रहे जिससे मन इन्द्रियाँ मोटी न होने पावे।
सन्त मत की साधना में
सन्त मत की साधना में मन और इन्द्रियाँ स्वाभाविक कर्म अनुसार भरमती हैं और कर्म अनुसार जो गुरु कहते हैं उसको नहीं करते हैं। गुरु आदेश के अनुसार जल्दी कर्म कटेंगे। कर्म कटते समय या जमीन साफ होते समय गर्द जरूर अधिक उड़ेगी।
जमीन साफ करने वाले के कपडे गन्दे जरूर होते हैं और मुंह भी गन्दा हो जाता है। इसी तरह से जब कोई सुरत शब्द की साधना करना शुरू करता है या नाम और स्वरूपों का सुमिरन करता है उस समय कर्मो की एक प्रकार की धूल उडती है।
जिससे साधक के मन इन्द्रिय बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और सब विचार साधक छोड़ देता है। गुरु मर्यादा से बहुत दूर होने लगता है। बचनों का उल्लघन बार-बार करता है। शिष्य एक प्रकार की जिद्द करने लगता है। यदि उस सपय निकटवर्ती गुरु भाई उसे समझावे तो उससे खीझने लगता है और उसको भला बुरा कहने लगता है,
गुरु भाई यदि गुरू, की बात की याद दिलाता है, तो भी उसमें समझ नहीं आती है और अपने अवगुणों को देखता हुए सुमिरन ध्यान भजन छोड़कर बुराई तथा अनेक प्रकार की आलोचना में लग जाता है और संत मार्ग से बहुत दूर होकर फिर से काल के पेटे में पहँच जाता है।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने यह जाना कि गुरु कृपा, गुरु की दया जब एक साधक पर पढ़ती है तो उसके अंतर आत्मा तीसरा नेत्र (शिव नेत्र) , गुरु की अपार दया और कृपा से खुलता है गुरु दर्शन के बहुत बड़े लाभ होते हैं। आशा है ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा।
और अधिक सत्संग पढ़ें: सुरत शब्द की साधना अंतर की कमाई के लिए कैसे तैयार हो सकते