पापाचारी जीव जब नरक में जाता है तब उसकी क्या गति होती है?

पापाचारी जीव जब इस शरीर को छोड़कर यमलोक जाता है तब उसके साथ क्या-क्या यातनाएँ दी जाती हैं? क्या-क्या उसकी दुर्गति की जाती है? यह सब कुछ पूर्ण महापुरुष जानते हैं जिनकी दृष्टि खुली रहती है। वह स्वर्ग नरक पूरे ब्रह्मांड भगवान सब कुछ अपनी दिव्य दृष्टि से देखते हैं और लोगों को बताते हैं कि नर्क में जीव को क्या-क्या यातनाएँ दी जाती हैं? कैसे-कैसे उसकी दुर्दशा की जाती है यह महात्मा सब कुछ अपनी दृष्टि से देख कर इस संसारी लोगों को बतलाते हैं। महात्मा सब कुछ जानते हैं चलिए जानते हैं पापा चारी जीव जब नरक में जाता है तब उसकी क्या गति होती है? चलिए पढ़े, जय गुरुदेव

पापा चारी जीव की बुद्धिमत्ता

पापाचारी जीव चोरी करते हैं शराब पीते हैं, मांस खाते हैं, घूस लेते हैं पर नारियों को बरबाद करने में अपनी शान समझते हैं। छोटी बालिकाओं का जीवन कन्या के रहते हुये नष्ट कर देते हैं। बिना दया के दूसरे जीवों के शरीर के टुकड़े करना अपना धर्म समझते हैं। दया का तो एक कण नहीं रहता। जानवरों की भाति अपना जीवन व्यतित करते हैं और जहाँ भी जाते हैं वहाँ अपनी ही स्त्रियाँ समझते हैं। यही बुद्धि प्रवाह रूप बहती है। असत्य में फंसा देना अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं।

बिना देखे दूसरों को अरोपी व अपराधी साबित करते हैं। सज्जनों के दुश्मन होते हैं। पर निन्दा तो उनक जबान पर होती है और स्वप्न में पर निन्दा की हुँकारी लगाते हैं। ग्रन्थ, पुराण, रामायण गीता के विरोधी रहते हैं। सत्य प्रचार होने देते नहीं हैं। उसमें सदा निशाचरों की भांति बाधा पहुँचाते हैं।

राज्य का उलंघन करना उनकी प्रकृति में रहता है। केवल खाना और सोना ताश आदि जुआ खेलना और व्यसनी वस्तुओं का सेवन करना अपनी पूजा समझते हैं। जो कोई मिलने जाता है उससे कहला देते हैं कि हजूर साहब पूजा अन्दर कर रहे हैं और हजूर साहब उसी वक्त चाय आदि पीते या हंसी दिल्लगी करते हैं। जरूरत वालों से मिलना उस वक्त होता है जब वह इनकी पूजा कई हजार रूपयों में करे।

पापाचारी कुकर्मी जीवों की दुर्दशा

पापाचारी जीवों की मृत्यु के समय यमराज के दुष्ट यमदूत हाथों में हथौड़ी एवं मुग्दर लिये आते हैं। वे बड़े भयंकर होते हैं और उनकी देह से दुर्गन्ध निकलती रहती है। उन यमदूतों पर दृष्टि पड़ते ही मनुष्य कांप उठता है और प्राता माता तथा चाचा पुत्र आदि दोस्तों को पुकारता है और खतरनाक आवाज में चिल्लाने लगता है।

उस वक्त उसकी वाणी स्पष्ट समझ में नहीं आती है। एक शब्द एक ही आवाज जान पड़ती है। भय के मारे रोगी की आँखे कांपती है और उसी भय में उसका मुख सूख जाता है। आँख ऊपर को उलटने लगती है। दृष्टि की शक्ति भी नष्ट हो जाती है।

फिर वह अत्यन्त वेदना से पीडित होकर उस शरीर को भी छोड़ देता है और फिर यम के डोरी के आधार पर चलता है। फिर इसका वहाँ इन्साफ होता है तब फिर इसको दूसरा शरीर दिया जाता है जो रूप रंग रेखा ने इसी शरीर से मिलता जुलता है परन्तु पिशाच शरीर होता है।

पिशाच शरीर माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं कर्म जनित होता है और यातना भोगने के लिये ही मिलता है। उसी पिशाच शरीर से यातना भोगनी पड़ती है। तुरन्त ही यमराज के दूत उसे अपने कांटों के रस्से में बाँध लेते हैं।

शरीर से पापाचारी जीव निकलते समय

मृत्यु काल आने पर जीव को दारूण दुःख होता है जिस दुख से जीव अत्यन्त दुखित हो जाता है और महान भयंकर आवाज में चिल्लाता है। उस समय भूतों से उसके शरीर का सम्बन्ध टूट जाता है। जीव शरीर से निकलते समय जोर-जोर से रोता है। माता, पिता, भाई, स्त्री, मामा, चाचा, मित्र और गुरु इन सबसे नाता टूट जाता है।

सभी सगे मित्र सम्बन्धी आंखों में आंसू भरे देखते रह जाते हैं और वह अपने शरीर को त्याग कर यमलोक की यात्रा के लिये उसी खतरनाक यमदूतों के रास्ते से चल पड़ता है। वह मार्ग अन्धकार पूर्ण, अपार, अति भयंकर और पापियों के लिए अति दुर्गम होता है। यमदूत पाश में बाँधकर उसे खीचते और मुग्दरों से पीटते हुए विशाल पथ पर ले जाते हैं।

यमदूतों के अनेक रूप

यमदूतों के अनेक रूप होते हैं और समस्त प्राणियों को भय पहुँचाने के लिये होते हैं। उनके मुख विकराल और नासिका टेढी आँखें तीन ठोढ़ी कपोल और मुख फैले हुए तथा लम्बे होते हैं। वे अपने हाथों में विकराल एवं भयंकर आयुध लिये रहते हैं। उन आयुधों से अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं

पाश, सांकल और दण्ड से भय पहुँचाने वाली महाबली महा भयंकर यम किंकर यम की आज्ञा से प्राणियों की आयु समाप्त होने पर उन्हें लेने आते हैं। जीव यातना भोगने के लिये अपने कर्म के अनुसार जो भी शरीर ग्रहण करता है उसे ही यमराज के दूत यम के लोक में ले जाते हैं।

वे उसे काल पाश में बांश कर पैरों में बेडी डाल देते हैं बेडी की साकल बज्र के समान कठोर होती है। यह किंकर क्रोध में भर उस बंधे हुये जीव को भली भांति पापाचारी जीव को पीटते हुए ले जाते हैं। वह लड़खड़ाकर गिरता है, रोता है और हाय बाप हाय मइया, हा पुत्र हाय स्त्री हाय माँ हाय देवी कह बारम्बार चीखता और चिल्लाता है।

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पापाचारी जीव की दुर्दशा यमपुरी में

दूषित कर्म वाले उस पापी को वे तीखे शूलों मुग्दरों खड़गों और शक्तियों के प्रहारों और ब्रजमय भयंकर डण्डों से घायल करके जोर-जोर से डांटते और पीटते हैं। कभी-कभी तो एक-एक पापी को अनेक यमदूत चारो ओर से घेर-घेर कर पीटते हैं। बेचारा जीव दुख से पीड़ित और मुर्छित होकर इधर-उधर गिर पड़ता है।

फिर भी वे दूत उसे घसीट कर ले जाते हैं। कहीं भयभीत होते कहीं त्रास पाते कहीं लड़खड़ाते और कहीं दुख से रूदन करते हुए जीव को उस मार्ग से जाना पड़ता है। यमदूतों की फटकार पड़ने से वे उद्विग्न हो उठते हैं यानी भय से बेहबल शरीर से कांपने और दौड़ने लगते है।

जो मार्ग उनके चलने का है उसमें कांटे बिछे होते हैं और कुछ दूर तक तपी हुई बालू पड़ती है। जिन मनुष्यों ने सात्विक भाव से परोपकार नहीं किया और जीवों को आराम नहीं पहुँचाया वे उस मार्ग पर जलते हुये पैरो से चलते हैं।

मांस खाने वाले लोग

जीव हिंसक मनुष्यों के सब ओर मरे हुए बकरों की लाशें पडी होती हैं। जिन-जिन जीव जन्तुओं को मार कर उनकी चमड़ियाँ जीते जी उधेड़कर बुद्धिहीन मनुष्य सेवन करते हैं शरीर त्यागने के पश्चात् उनके इर्द गिर्द वे आत्माएँ जिनको उन्हनि बुद्धिहीनता से भक्षण किया था।

पापाचारी जीव चिल्लाती और चिखती है जिनकी जली और फटी हुई चमड़ी के मेदे से रक्त की दुर्गन्ध आती रहती है। वे वेदना से पीड़ित, होकर जोर-जोर से चिल्लाते और चीखते हुये यममार्ग की यात्रा करते हैं और वे मुंह फाड़कर कहते हैं कि इनको छोड़ों में इन का भक्षण करूंगा।

उस वक्त शक्ति दायक यमदूत खड़ग तोमर बाण तीखी नोक वाले शूलों से उसका अंग-अंग विदीर्ण कर देते हैं, कुत्ते बाघ भेड़िये इनके शरीर का मांस नोच-नोच कर खाते रहते हैं मांस खाने वाले लोग उस मार्ग पर चलते समय आरों से चीरे जाते हैं अथवा सूअर अपनी दाढ़ों से दबा कर उसके शरीर को फाड़ देते हैं।

जो निःअपराध जीवों को मारते

जो अपने ऊपर विश्वास करने वाले स्वामी मित्र अथवा स्त्री की हत्या करते हैं वे शास्त्रों द्वारा अथवा ऋषियों की वाणी द्वारा छिन्न-भिन्न व्याकुल होकर यम लोक के मार्ग पर जाते हैं। जो निःअपराध जीवों को मारते व मरवाते हैं वे राक्षसों के ग्रास बन करके उस पथ से यात्रा करते हैं।

jo पराई स्त्रियों के वस्त्र उतारते हैं अर्थात उन्हें भ्रष्ट करते हैं वे नंगे करके दौड़ते हुए यमलोक में लाये जाते हैं। जो दुरात्मा पापाचारी, अन्न वस्त्र, सोने घर और खेत का अपहरण करते हैं यमलोक मार्ग पर पत्थरों व लाठियों और डण्डों से मार कर उन्हें जर्जर कर दिया जाता है और वे अंग प्रत्यंग से प्रचूर रक्त बहाते हुए यमलोक में जाते हैं।

जो निरपराध नरक की परवाह न करके साधु, सज्जनों का धन हड़प लेते हैं उन्हें मारते और गालियाँ सुनाते हैं, उन्हें सूखे काटों में बाँध कर आँखें फोड दी जाती हैं और नाक कान काट दिये हैं फिर उनके शरीर में पीप और रक्त बदबूदार पोत दियो जाते हैं तथा काल के समान गीध और गीदड़ उन्हें नोच कर खाने लगते हैं।

इस दशा में क्रोध में भरे हुए भयानक यमदूत उन्हें पीटते हैं और वे पापाचारी जीव को चिल्लाते हुए यमलोक के पथ पर घसीटे जाते हैं। सन्त और साधु के साथ अपमान दुर्व्यवहार अर्थात् उनके साथ चतुरता करने वालों की यही दुर्गति होती है।

रौरव नर्क पापाचारी जीव को रुलाने वाला

इस प्रकार वह मार्ग बड़ा दुर्गम और अग्नि के समान ज्वलित है। इसे रौरव नरक कहते हैं। यह रौरव नर्क जीवों को रुलाने वाला है। वह नीची ऊँची भूमि से युक्त होने के कारण मानव मात्र के लिए अगम है। तपाये हुए लांब की भांति उसका वर्ण हैं। वहाँ अग्नि की चिनगारियाँ और लपट दिखाई देती हैं।

वह मार्ग कटको और संकटों से भरा है शक्ति और नुकीले बज्र आदि आयुधों से व्याप्त है। ऐसे कष्टप्रद नुकीले मार्ग पर निर्दय यमदूत जीव को घसीटते हुए ले जाते हैं और उन्हें सब प्रकार के अस्त्र शस्त्रों मारते हैं। इस तरह पापयुक्त अन्यायी मनुष्य विवस होकर मार खाते। हुय यमदूतों के द्वारा यमलोक में ले जाये जाते हैं।

यमराज के सेवक अर्थात यमराज के पुलिस सभी पापियों को उस दुर्गम मार्ग में अवहेलनापूर्वक ले जाते हैं जिस प्रकार पुलिस एक मुलजिम को पकड़कर अवहेलना पूर्वक ले जाती है। वह अत्यन्त भयंकर मार्ग समाप्त हो जाता है तब यमदूत पापाचारी जीव को तांबे और लोहे की बनी भयंकर यमपुरी में प्रवेश कराते हैं।

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यमपुरी का विस्तार

यह यमपुरी बहुत विशाल है। उसका विस्तार लाख योजन का है। वह चौकोर है। उसके सुन्दर दरवाजे हैं जिसकी वहार दीवारी सोने की बनी है जो हजार योजन ऊंची है। इस पुरी का पूर्व द्वार बहुत सुन्दर है। यहाँ फहराती हुई सैकड़ों पताकार्य उसकी शोभा बढ़ाती हैं।

हीरे नीलम, पोखराज और मोतियों से वह द्वार सजाया हुआ है। वहाँ गन्धर्वो और अपसराओं के गीत और नृत्य होते रहते हैं। उस द्वार से देवताओं, ऋषियों योगियों, गन्धर्वो सिद्धों यक्षों और विद्याधरों का प्रवेश होता है।

उस नर्क का उत्तर द्वार घन्टा छत्र चंवर तथा नाना प्रकार से अलंकृत है। वहाँ वीणा और येणु की मनोहर ध्वनि गूजती रहती है। गीत, संगल तथा ऋग्वेद आदि के सुमधुर शब्द होते हैं वहाँ ऋषियों का समुदाय शोभा पाता इस उत्तर द्वार से उन्हीं पुण्यात्माओं का प्रवेश होता है।

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