काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आने पर सतसंगी का कर्म

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार यह मनुष्य शरीर के विकार, यह कैसे विकसित होते हैं? इन्हें कैसे शांत कर सकते हैं? क्या सत्संग वचनों से हम इन विकारों से बच सकते हैं? कैसे हम अपने जीवन में संतोष पा सकते हैं? काम क्रोध लोभ मोह अहंकार यह मनुष्य के अंदर छिपे हुए अंदरूनी अवगुण रूपधारी विचार हमारे जीवन को तहस-नहस कर देते हैं। महात्मा सत्संग के माध्यम से इनसे बचने के उपाय बताते हैं चलिए जानते हैं क्या कहते हैं महापुरुष।

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आने पर
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आने पर

सतसंगी का कर्म काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आने पर

सतसंगी का व्यवहार कैसा होना चाहिए? जिनको ज्ञान होने लगे उनको चाहिए कि किसी के यहाँ खाने की चेष्टा में न रहे अपनी मेहनत का किया हुआ भोजन करना चाहिये। जहाँ कहीं जायं वहाँ व्यवहार के अनुसार भोजन बाज़ार में कर ले ऐसा करने से किसी का दिल नहीं दुखेगा और सतसंगी बोझा नहीं बनेगा।

सतसंगी को भवसागर से पार होने की युक्ति सरल है वह यह है कि अपना आपा सतगुरू को सौंप दे और उसके नाम रूपी जहाज में सुरत को बैठा देवे। अनेक प्रकार के भ्रम संसय को छोड़े तथा डवांडोलता भी छोड़ देवे और प्रीति प्रतीति चरण कंवलों में बढ़ाता जाये ओर कुसंग से सदा बचा रहे।

सुरत रूपी आत्मा का ज्ञान तीसरे तिल में दोनों आँखों के मध्य भाग में होता है। यहाँ पाँचों तत्वों और तीनों गुणों की गाँठ प्रकाश में सुरत के साथ बंधी है। ब्रह्म ज्ञानी सत चित्त आनन्द भी इस को कहते हैं। राजा जनक को तीसरे तिल पर आत्म ज्ञान हुआ था। सार सुमिरन संतों का है जिससे सुरत सत्य लोक तक पहुँच जाती है।

प्राण योग करके तीसरे तिल में

जो महात्मा प्राण योग करके तीसरे तिल में पहुँचे थे वहाँ रूक कर यह कहकर चुप हुए हैं कि अहं ब्रम्हास्मि और ठहर गये। बुद्धि योग वाले सतोगुण में दृष्टि योग वाले रजोगुण में, हठ योग वाले तमोगुण में और प्राण योग वाले पहिले आकाश यानी झंझरी द्वीप में समाये।

उन्होंने सहस दल कंवल में देखा कि यहाँ तीन चीजें अनादि है। माया, ब्रह्म, जीव और जो त्रिकुटी शब्द की धार पर चढ़े उन्होंने छः चीजें अनादि की बयान की। माया, ब्रह्म, जीव, कर्म, ईश्वर, वेद। इनको वह शब्द नहीं मिला जिसका सिलसिला इसके द्वार में लगा हुआ था। बगैर सतगुरू के वहाँ टटोलने गये इस कारण आगे दयाल देश में न पहुँच सके।

गुरु के बचनों का माला

सावन आश्रम दिल्ली में एक घन्टा सतसंग किया प्रथम तो मैंने यह कहा कि दो माह हुआ है जब कि आपको याद दिलाया था कि हमारा भजन क्यों नहीं बनता है। आपको चाहिए कि दो महीना गृहस्थी में रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करें ताकि शारीरिक शक्ति आप में रहे। साधन करते समय सुस्ती न आवे। भवन में तरक्की हो।

गुरु के बचनों का माला पहिन लो। जो वह कहें उसको अमल करो। जीवन को बना लेना यह आपकी नहीं गुरु की शान होगी। तुम्हें देखकर लोग एक रास्ता गुरु के पास आकर पकड़ लेगें। यदि गुरु के जो बचन निकल रहे हैं उन्हें माला बनाकर हृदय में नहीं पहिन लेते हो तो तुम गुरु के शिष्य कहलाने के अधिकारी नहीं बनोगे।

जब तुम्हें काम, क्रोध, लोभ, मोह सतावे उस समय गुरु को अपने सामने खड़ा करके इनसे (दुर्गणों से) विरोध करो। ज्योंही इनकी याद आयेगी त्योंही तुम्हारा काम क्रोध शान्त हो जावेगा। तुम किसी से लड़ो मत।

शील धारण करो

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह तुम्हारे शत्रु हैं। ये गुरु की दया से मारे जायेंगे। गुरु तुम्हें अपना मन्त्र ये देगें और इनके काटने का शस्त्र देंगे। वह शस्त्र गुरु देते हैं शील, क्षमा, सन्तोष, विरह, विवेक। जब काम तुम्हें तंग करे तब तुम शील धारण करो और क्रोध आवे तक तुम क्षमा धारण करो और लोभ आवे तब तुम सन्तोष धारण करो और समझो कि गुरु की ऐसी मौज है। हमारे लिये उन्होंने बहुत दिया है और जब तुम्हें मोह सतावे, तब तुम यह विचारो कि जगत नाशवान है यहाँ कोई चीज नहीं रहेगी। गुरु ने विवेक दिया है। अन्त में पापों का मूल अहंकार है।

“करा कराया सब गया, जब आया अहंकार”

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आने पर

अहंकार के आने पर तुम अपने को दीन, छोटा समझो कि मैं एक मिट्टी का कण हूँ जो कि सबके पगों की धूल बनकर कुचला करती है। यह गुरु की दात है। गुरु दया से तुम्हें यह दान देना चाहते हैं। परन्तु तुम सोते हो और गुरु के वचनों को सुन कर भूल जाते हो।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से अपने काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार जैसे विकारों के बारे में जाना। जो हमारे शरीर में छुपे हुए अंदरूनी गुण हैं। इन्हें कैसे शांत किया जा सकता है? सत्संगी का कर्म कैसा होना चाहिए? आदि तमाम चीजों को जाना। आशा है ऊपर दी गई जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। जय गुरुदेव मालिक की दया सबको प्राप्त हो।

Read:- इस मानव अनमोल तन (Anmol Tan) से गुरु की निन्दा स्वप्न में भी नहीं

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *