सत्संग प्रेमी भाइयों बहनों आज हम सत्संग अक्षरों के माध्यम से पूर्व में स्वामी जी महाराज द्वारा दिए गए सत्संग उनकी महत्त्वपूर्ण अंशों को आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। जिसमें ध्यान (Dhyan) करते समय साधक को क्या हिदायत दी जाती है? किन बातों का ध्यान रखना होता है और साधक को किस तरह से ध्यान मुद्रा में बैठकर एकाग्र चित्त होना चाहिये। साधक की शक्ति को जागृत करना है, ऐसे महत्त्वपूर्ण गुरुवाणी को हम इस आर्टिकल में आपके साथ सांझा करने जा रहे हैं, आप पूरा पढ़ें। चले शुरू करें, “जय गुरुदेव”
साधक को ध्यान की ताकत (Dhyan ki takat)
साधक को गिरने का संपूर्ण मार्ग अविश्वास, संत सतगुरु साधक को हर चीज दे सकते हैं। इसलिए सारे जीवन साधक परमार्थी धन से महरूम रहता है। गुरु साधक को लोक और परलोक के धन देते हैं जो उनका रहनुमाई में चलते और अपने पिता का आदर्श पैदा करते हैं।
नालायको को ना यहाँ कुछ मिलता है ना बाद में। इससे साधक को समझाया जाता है कि लायक बनकर गुरु से लोक परलोक का धन ले लो, ताकि यहाँ भी सुख हो और परलोक में जाने के समय भी सुख मिले।
साधकों की बहुत कमियाँ होती हैं जो कि गुरु समय आने पर उभायेगा और वह कमियाँ दूर होंगी। साधक को आँख बंद करके ध्यान व सुरत शब्द के अभ्यास में लगातार जब तक मौका मिले लगे रहना चाहिए, साधक पूर्ण विश्वास करें जो गुरु करते हैं वह सत्य है और हमारी तरक्क़ी हमारे साधन के अनुसार होगी।
गुरु की दया ध्यान के अनुभव (Dhyan ka Anubhao)
गुरु की दया हुई, रास्ता दिया और तुमको उस रास्ते (घाट) पर बैठाया जहाँ से रास्ता मालिक के मिलने का गया है। करनी के साथ दया, दया के साथ करनी पूर्व में दया हो चुकी है। साधक ध्यान में रखें कि यदि दया ना हुई होती तो गुरु अपना गूढ़ भेद कैसे आपको देते अब तो पालन करना होगा।
साधक को गुण छिपाना चाहिए और अवगुणों को प्रकट करना चाहिए, साधक विश्वास रखें कि जितना भी दुनिया साधक की बुराई निंदा करेगी, उतना ही साधक का पाप हल्का होगा। केवल अपने साधन के हेतु सुलभ रास्ता हम निकाल रहे हैं।
Read:- कर्म करने का उद्देश्य एवं उनके प्रकार
गुरु समरथ हैं वह सब बर्दाश्त करते हैं। केवल साधक घबरा जाता है। उसके लिए चाहे जो करें पर उन्हें ज़रा भी असर नहीं होता है। दुख सुख से नियरे हैं। सुरत को सूक्ष्म के साथ जोड़कर साधन करते रहो। जीवन इसी साधन के लिए मिलता है। जो यह साधन नहीं करते वह दुनिया में आए ना आये के बराबर हैं।
ध्यान के समय साधक को हिदायत (Dhyan ke samy sadhak)
साधक को हिदायत, सूरत आंखों के पीछे भाग में बैठी है। अपनी दोनों आखे गुरु की युक्ति अनुसार बंद करो और अंतर में नूर प्रकाश को एकटक हो कर देखो तो तुम्हें प्रकाशवान बिंदु मिलेगा, तुम अपनी सूरत को गुरु की युक्ति अनुसार उस प्रकाश बिंदु पर टिका दो।
जब सुरत उस प्रकाश बिंदु पर ठहरने लगे और सुरत तुम्हारी साफ़ होती हुई नज़र पड़ने लगे उस वक़्त तुम सावधानी से रहो। ऐसी नाज़ुक पवित्र अवस्था में साधक को समझकर रहने की विशेष ज़रूरत है। ज्यो-ज्यो प्रकाश उस बिंदु को बढ़ता जावे और प्रकाश स नज़र आने लगे उस वक़्त साधक आकाश की ओर देखने लगते है।
देखते ही जो आगे ले जाने वाला बिंदु है उसका आधार छूट जाता है और साधक अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। साधको तुम्हे गुरु का सत्संग अति होशियारी अर्थात विवेक से करना होगा। ताकि साधन करते वक़्त जो तुम्हारी त्रुटियाँ होती रहती हैं वह साधन करते वक़्त ना हो।
Read:- साधक के क्या-क्या कर्तब्य होना चाहिये?
जब साधक ने साधना करते वक़्त प्रकाशवान बिंदु का आधार छोड़ दिया और खुले आकाश में केवल प्रकाश देखता है उस वक़्त साधक सोचता है कि आगे कुछ नहीं या कोई रचना नहीं है। साधक को साधन करने की प्रक्रिया भली-भांति गुरु से समझते रहना चाहिए ताकि साधन करते वक़्त गलतियाँ ना हो।
ध्यान में दिखने वाला प्रकाश (Dhtan me dikhne bala parkash)
साधन करते वक़्त सुरत ने अपनी सही निशाने के बिंदु को पकड़ लिया था जब-जब सुरत बिंदु पर ठहर जाएगी उसी तरह सुरत का प्रकाश बढ़ता जाएगा और सुरत पुष्ट पौड़ होती जाएगी। प्रकाश के पाने से सुरत में ताकत भी आएगी और एक नशा भी मस्ती का सुरत पर चढ़ेगी।
जब सुरत का प्रकाश का नशा चढ़ना शुरू होता है उसी वक़्त से घट में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार कमजोर होने लगते हैं। जब सुरत बिंदु पर टिकी रहे तो कुछ दिन के बाद सुरत तीसरे तल पर पहुँचती है जहाँ पर आत्म ज्ञान होता है।
जब सुरत को अपना ज्ञान हो गया उसी वक़्त प्रलोभन की शक्ति आ जाती है जो कि इस बात का ज्ञान देती है कि तुम राजपाट, धन, जन विद्या मान आदि जो चाहे ले सकते हो। इन शक्तियों का आविष्कार इसलिए होता है कि साधक साधन के द्वारा अपनी सुरत को आगे ना ले जा सके.
सूरत की डोर निरंजन भगवान के पास, मन की डोरी माया के हाथ, बुद्धि की डोर विष्णु के हाथ, चित्त की डोर ब्रह्मा के हाथ, अहंकार की डोरी शिव के हाथ में है। अपने-अपने गुण के देवता जिसकी डोर पकड़े हुए हैं, जब सुरत ऊपर चढ़ना चाहती है उसको उभार देते है ताकि सूरत ऊपर ना चढ़ सके और जो सच्चा तत्व नाम है उसको ना पा सके.
ध्यान पोस्ट निष्कर्ष
साधको आपको गुरु का सत्संग ज़रूर से ज़रूर करना होगा, जितना भी वक़्त मिले, क्योंकि सत्संग से यह लाभ होगा कि जब तुम साधना में बैठोगे और सुरत अपने निशाने पर आएगी और नाम के साथ लगकर ऊपर चढ़ना प्रारंभ करेगी। उसी वक़्त विकारी अंग सुरत को गिराना सकेंगे। जब विकारी अंगो का आकार सुरत के ऊपर से दूर हो और नाम नशा सुरत लक्ष्य पर जमा देगी ताकि सुरत की चाल आगे को होगी ‘ जय गुरुदेव”
Read the post:-
- जीवात्मा (सुरत) सुख कैसे पाए? सुरत का आस्तत्व
- गुरु का पथ अपनाना क्या सरल है या नहीं?
- साधना करते वक़्त दया के निशान | रूहानी सफ़र में