जीवात्मा (सुरत) सुख कैसे पाए? सुरत का आस्तत्व

जय गुरुदेव, सत्संग प्रेमियों, मेरे अच्छे महानुभाव, इस लेख के माध्यम से हम सुरत का आस्तत्व और आत्मा सुख और उसकी प्राप्ति जैसे सत्संग लेख को आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। जिसमें परम पूज्य स्वामी जय गुरुदेव जी महाराज ने अपनी आध्यात्मिक सत्संग में इन महत्त्वपूर्ण बातों की चर्चा अपने प्रेमियों के साथ कि हैं। यह आध्यात्मिक सत्संग है इसे आप पूरा पढ़ें चलिए शुरू करें। जय गुरुदेव,

Jeevaatma sukh kaise paye
Jeevaatma sukh kaise paye

सुरत (जीवात्मा) का उतार और फ़साव (Surat ka fasaav)

सुरत शब्द के द्वारा उतरती हुई सतलोक से आई है और रास्ते में इसमें अपना आपा धारण किया हुआ है। आंखों के पीछे आकर जड़ मिलौनी में फसी है और आंखों के ऊपरी भाग में अंधकार आ गया है।

अब सुरत (जीवात्मा) को अनंतर में कुछ दिखाई नहीं देता है। इससे अज्ञान हैं और अपने सच्चे सतलोक के रास्ते को भूल गई. यदि कोई मनुष्य दुनिया के रास्ते को भूल जाता है तो उस वक़्त उसे हजारों आदमियों से पूछना पड़ता है तब जाकर सही रास्ता मिलता है।

मालिक से मिलने का रास्ता तो ऐसा है कि जिससे पूछो वह भी नहीं जानता है। बताओ तुम्हें कैसे परमात्मा का रास्ता मिले और कैसे प्रभु के पास पहुँचेंगे? भूले लोगों को समझाया जाता है कि तुम संत सतगुरु की तलाश करो। जो गुरु उस भगवान के पास तक पहुँचा हुआ हो वह तुम्हें ज़रूर उस प्रभु के पास पहुँचा देगा।

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भगवान के प्रति जिज्ञासु (Bhagvaan ke pirati)

खोज करने से लोगों को सतगुरु मिल सकता है। बगैर खोज के तुम्हें संसार की चीज बाज़ार में नहीं मिलती है। अपनी ज़रूरत की चीज के वास्ते 10 दुकानदारों से पूछना होगा और उसके लिए हमें समय ख़र्च करना होता है।

शरीर से बहुत मेहनत करनी पड़ती है तब वह दुकान मिलती है और हम उसके पास पहुँचकर दीन अवस्था में मांगते हैं। दुकानदार तुम्हारी जिज्ञासा को देखता है और समझता है कि हमारे मांगे पैसा देगा या नहीं।

जब समझ लेता है कि रुपया देगा उस वक़्त अपनी चीज दिखाता है और तुम ख़ुशी के साथ आकर अपने घर में सजाकर रखते हो। तुमने साधक बनकर कितनी तलाश की गुरु की और उसके पास कितने ख्वाहिशमंद रहे।

ओछी समझ साधक की (Sadhak ki samajh)

ओछी समझ साधक की गलतियों का पहाड़ हो और अपनी गलतियाँ दूसरों पर लादता हो तो वह साधक, साधक नहीं है नादान है। उसकी समझ ओछी है। साधक अगर अच्छी समझ लेकर परमार्थ मैं निकलेगा, तब तो महात्मा की तलाश कर सकता है बरना साधक का न होना नादानी है।

साधक गुरु के पास आता है तो भगवान को नहीं मांगता है। वह तो संसारी वस्तुओं को मांगता है। इसलिए उसे परमार्थी नहीं समझना चाहिए, उसको संसारी कहते हैं। यदि सत्संग में पढ़ा रहा तो शायद समझ में आ जावे।

सुरत (जीवात्मा) का आस्तत्व (Surat ka astatv)

साधक सुरत (जीवात्मा) अपने अस्तित्व को भूल चुकी है इसे अपने सत्ता की ख़बर नहीं है। ताकत का जोहर सुरत के अंदर मौजूद है। पर जब तक सतगुरु की प्राप्ति ना होगी तब तक सुरत (जीवात्मा) की सूक्ष्म शक्ति नहीं जागेगी।

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सुरत (जीवात्मा) प्रकाश का भंडार है पर सुरत क्या करें? सुरत (जीवात्मा) के प्रकाश से मन रचना करता है और इंद्रियों के स्वभाव को खींच लेते हैं। वह अपनी और इंद्रियों को खींच लेते हैं। इस तरह से सुरत अपने प्रकाश को जड़ पदार्थों के साथ मिला चुकी है।

जब सतगुरु पावे और उनके उपदेश को ग्रहण करें तब कहीं यह विचार आवे कि मैं मन तन और भोग के साथ फंसा हूँ और कोई सामान हमारे काम नहीं आवेगा। आख़िर हमें संसार से निराशा और खाली जाएंगे।

गुरु से मार्ग प्राप्ति (Guru Se Marg)

जब गुरु का शब्द सुने तो साधक की बुद्धि अपना विचार त्याग कर गुरु विचार के साथ होकर मज़बूत हो जाती है। तब बुद्धि में विवेक आता है। बुद्धि सत्य असत्य का निरूपण करती है। उस वक़्त आत्मवेदना प्रारंभ हो जाती है।

तड़प और विवेक के साथ गुरु चरणों में लगा दी जाती है। उस अवस्था में गुरु अपना मंतव्य देता है तब साधक उस साधन की प्रक्रिया में लग जाता है। साधक आराम चाहता है और चाहता है कि गुरु हर प्रकार से संसार का सामान दे और हमारी तकलीफें रफा कर दे।

सुख और उसकी प्राप्ति (Sukh ki pirapti)

साधक को समझना होगा कि सुख अपने कर्म अनुसार ही मिलेगा। गुरु तो अपनी कमाई मैं से दान करना ही रहता है। पर हम उसका दान लेने के हकदार हो और उसका पूरा लाभ उठा सकें तब संसारी आदमी अपनी कमाई में से देता है पर दिया हुआ दान चंद ही दिन रहता है इस वास्ते साधु को कमाई करो।

लोक और परलोक की कमाई करनी होगी तभी लाभ होता है। संत जन अपनी कमाई में से कुछ देते हैं पापी आदमी को भी विश्वास दिला देते हैं कि भगवान की सत्यता है और अंतर में अनुभव कराते हैं।

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पर संत सतगुरु के दिए हुए परमार्थी धन में ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। जो रास्ता गुरु ने दिया और कमाई के वास्ते आदेश दिया हैं उसकी कमाई करना चाहिए। तब साधक गुरु का दिया हुआ परमार्थी धन रख सकेगा।

नहीं तो उतना ही अनुभव करके रह जाएगा और जब मलिन पर्दा किसी समय आवेगा। उस वक़्त साधक गुरु की प्रीति और पद से अविश्वास लाकर गिर जाएगा और दूसरों से शिकायत करेगा कि मुझे कुछ प्राप्त नहीं हुआ। मालूम होता है कि गुरु पूरा मुझे नहीं मिला।

अभाव का फल साधक को (Sadhak ko fal)

साधक इस अवस्था में किसी दूसरे महात्मा के पास पहुँचेगा और उसी धन को पाने की भीख मांगेगा। ना साधक ने पहले गुरु से पाया और ना दूसरे से पा सकेगा। साधक को अभाव हो गया। गुरु रास्ता के साथ इस अभाव का फल साधक को होगा।

परमात्मा के रास्ते का अभाव साधक पर आ गया तो साधक परमात्मा की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है।यदि साधक कपटी है और गुरु के पास पहुँचकर कपट करता है तो यह सत्य है कि सारी उम्र गुरु के पास रहकर भी कुछ नहीं पा सकता है। गुरु जानकार शक्ति है। क्षण-क्षण पर विश्वास लाकर भी साधक गुरु के प्रति अविश्वास की स्वास खींचता रहे तो साधक का कल्याण नहीं होगा।

पोस्ट निष्कर्ष

गुरु प्रेमियों अपने ऊपर दिए गए आर्टिकल में सुरत (जीवात्मा) के अस्तित्व के बारे में और आत्म सुख और उसकी प्राप्ति के बारे में जाना ।आशा है आप को ऊपर दिए गए सत्संग आर्टिकल ज़रूर पसंद आए होंगे। अपने अच्छे दोस्तों के साथ इस आर्टिकल को शेयर करें। जय गुरुदेव।

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