सुरत शब्द की साधना अंतर की कमाई के लिए कैसे तैयार हो सकते

सुरत शब्द की साधना के लिए हम कैसे तैयार हो सकते हैं? क्योंकि जब पूरा गुरु मिल जाता है तब हम सुरत शब्द की साधना से कुछ कमाई कर सकते हैं। इस संसार की चमक दमक देखकर ग्राहक फंस जाते हैं उसी तरह से एक साधक भी संसार के चमक दमक को देखकर के अंतर की कमाई करने से रुक जाता है। संत भाव में हमारे मेहमान होते हैं सुरत शब्द मार्ग की साधना के लिए हमें पूरे गुरु की जरूरत होती है। जब तक पूरा गुरु नहीं मिलेगा तब तक सुरत शब्द की साधना करना असंभव है। चलिए जानते हैं महापुरुषों ने इसके बारे में क्या कहा? जय गुरुदेव,

सुरत शब्द की साधना
सुरत शब्द की साधना

सन्त भव में मेहमान हैं

सन्त संशय रूपी भव में मेहमान बनकर कुछ ही दिन के लिए आते हैं अपने कर्म करके दुख उठाते हैं। मन का मैल गुरु चरणों में लिपटने लगता है मुकुर उन्हीं की दया भाव दृष्टि से साफ होगा। सुरत मन के पवित्र होने पर जो धार अन्तर में अमृत के शब्द नाम के साथ आती है मन पीएगा तब मस्त होगा।

फिर अचल समाधि में प्यार में लग जाएगी। जो मर कर फिर से जीता है वही सार रस पीता है। अन्तर में चारो दिशा में ज्योति का प्रकाश है। गुरु कृपा मार्ग देकर सन्त वापस घर में चले जाएंगे। सन्त चलते फिरते तीर्थ हैं सब देशों में पहुँच जाते हैं इनसे मिलो।

सुरत शब्द मार्ग की साधना

जो भी आदमी या स्त्री सुरत शब्द मार्ग की साधना करना चाहते हैं, उसको चाहिए कि खाना कम खावें और गिजा इस्तेमाल न करें नहीं तो मन मोटा होगा और सुरत शरीर में फैलेगी सिमटाव न होगा। मन भी ऊपर की तरफ नहीं चढ़ेगा। जो लोग गिजा खाकर कहते हैं कि हम भजन करते हैं उनका कहना सर्वदा असत्य है।

लोग उनकी बुद्धि की चतुरता से दूसरों को धोखा देते हैं और छल बल पाखण्ड रचकर गृहस्थी से रोटी पैसा लूट रहे हैं। अपने को साधू पहुँचा हुआ कहते हैं। श्राप देते हैं। कुछ लोग सन्त मत में आकर शब्द मार्ग का भेद लेकर और साधना न करते हुए दूसरों को उपदेश करते हैं। कितना बड़ा पाप कमा रहे हैं और पाप की गठरी दूसरे के सिर पर लाद रहे हैं।

अपने गुरु महाराज की आज्ञा से जिनसे हमने साधन का रास्ता उपलब्ध किया था, उसकी कमाई में लग गया। कम बोलना, कम खाना, गम खाना और अन्तर में सुरत शब्द की साधना में लगे रहना यही अपना मुख्य ध्येय था। मुझे बहुत कम बोलने के नाते लोग पागल के रूप में कहते थे।

सुरत शब्द की साधना के साथ

हमारे स्वामीजी के पास दो आदमी हमारे साथ ही में उपदेश लिये थे एक तो कथा वाचक थे और दूसरे भी ब्राह्मण थे। कथा वाचक जी ने उपदेश लेने के बाद अपनी कथा जारी रक्खी और एक माह बाद मथुरा शहर में वही उपदेश कितने आदमियों को दिया जो गुरु महाराज ने बताया था और गुरु महाराज अभी मौजूद थे।

दूसरे सज्जन को दमा का रोग था जो आज भी भजन कर ही नहीं पाये। दमा वाले व्यक्ति की गारन्टी है कि वह भजन नहीं कर सकता है। सुरत शब्द के साथ लग नहीं सकती है और न एकाग्र दृष्टि ठहर सकेगी। वह भी बगैर गुरु कृपा के उपदेश करने लगे। सन्त मत तथा गुरु के मार्ग को कलुषित करते हैं।

जीवों को पूरा घोटना हो रहा है। जीवों को किस तरह बहकाया गया है यह तो उनका दिल जानता है आगे वह उन सबका भार लादेंगे और अनेक प्रकार की यातना सहेंगे। बड़ा भारी दंड दिया जायेगा। कुछ लोग गुरु की तारीफ सुनकर आते हैं कि पूरे होंगे।

पूरा गुरु नहीं मिला

जिसे बीमारी, धन की इच्छा, मुकदमा, लड़ाई में तंगी, शादी, नौकरी आदि और बहुत-सी इच्छाएँ हैं जिन्हें यहाँ लिखना उचित नहीं है जैसे माताओं को सबसे बड़ी इच्छा पुत्र की है और हमारा पति न मरे, पुत्र न मरे यह भावना लेकर अनेक जगह कुकर्म माता-पिता से होते हैं जैसे विन्ध्याचल जाकर मनौती बकरे की बलि देना और बहुत से बड़े-बड़े पाप हैं और उसको करते हैं। कुछ दिन सतसंग में रहे और छोड़कर चले गये।

यह लोग नीच प्रकृति के तथा बहुत धोखेबाज स्वार्थी हैं और कहते हैं कि मुझे कुछ मिला नहीं इसलिए उनको छोड़ दिया। हमारे पास काशी नगरी से बहुत लोग आये और हमारे पास दो वर्ष तक रहे। कुछ ने धोखा दिया रुपया मार दिया। जब देने का समय आया तब कहते हुए अलग हुए कि हमको पूरा गुरु नहीं मिला इस वजह से हम दूसरी जगह गये।

मतलब गुरु छिपा था। वे हरामखोर हैं उनका भला तो यहाँ भी नहीं है और आगे भी नहीं होगा और सत्य है कि नर्क में अवश्य जायेंगे। जिन गुरूओं ने उनको बहकाया है वह और जो उनके पास रहते हैं वह खुद अपने अन्तर में गुरु चेला जानते हैं कि हम में क्या है या नहीं। शान गुमान और अन्तर में लोलुपता की प्रबल ज्वाला जल रही है। ऊपर से दोनों क्या रंग रूप बना रहे हैं यह कलई रहती नहीं है। दूसरों को क्या उपदेश देंगे और क्या अनुभव करावेंगे।

चमक देखकर ग्राहक फंस जाते

बनावट सदा काम नहीं करती है कलई ज्यादा दिन रहती नहीं है, परन्तु चमक बहुत होती है। कलई की चमक देखकर ग्राहक फंस जाते हैं, परन्तु पीछे बहुत पछताते हैं। जीव को प्रथम कदम रखना चाहिए समझ बूझकर। महान आत्माओं का सतसंग सुनें।

महापुरूषों के पास आकर मनुष्य अपनी खराबी दूर कराना नहीं चाहता न शुद्ध बनना चाहता है। चाहता है कि मान मिले और लोग कहें कि वकील साहब बहुत भक्त हैं तथा ऊपर चढ़ चुके हैं। गुरु सम्मान पाने की चेष्टा में रहते हैं अनुभवी पुरुष जड़ अंग्रेजी विद्या से पहचाने नहीं जा सकते।

यह सच है कि अन्तर का आनन्द सुरत शब्द योग से इतनी शीघ्रता से नहीं मिलता है जैसा कि संसार के ओगों और सामानों में प्राप्त हो जाता है। इन्द्रियाँ भोगों में जल्द लिपट जाती हैं। इन्द्रियों के साथ कर्म करते-करते बहुत मुद्दत गुजर गई और हाल के कर्म में भी फंसा हुआ है।

अन्तर की कमाई

अन्तर की कमाई अभी शुरू की है, फिर दोनों कर्मो का फल शीघ्र कैसे मिल सकता है। कारण अन्तर में रस पाने का जो समय अभ्यास में दिया जाता है वह बहुत कम है। समय जान के साथ और बढ़ाकर देना चाहिए और जो समय तुम रहे हो उसमें आधे से ज्यादा भोगों तथा वासनाओं की तरंगों में बहकर इन्द्रियाँ भोगों की तरफ दौड़ती रहती है और किया हुआ नष्ट होता है।

इसी कारण सही फल, अन्तर का असर मालूम नहीं होता और मन फीका हो जाता है। जिज्ञासू को चाहिए कि गुरु स्वरूप से प्रेम और लगन के साथ अभ्यास करें और दिन में बहुत दफे बैठना चाहिये। सुमिरन ध्यान भजन नित्य करना, साथ जोश में गुरु के दर्शन और सतसंग के लिये नित्य उठाना चाहिए दर्शन और सेवा के लिए नवीन भाव प्रेमी के उत्पन्न होगें तभी अन्तर का रस शब्द की धार के साथ मिलेगा।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से यह जाना कि सुरत शब्द की साधना, संत भाव में मेहमान होते हैं, सुरत शब्द मार्ग की साधना के लिए हमें क्या करना चाहिए और सुरत शब्द के साथ जोड़ने के लिए किस प्रकार की साधना करना चाहिए? पूरा गुरु नहीं मिले तो क्या यह संभव है, इस संसार की चमक-दमक से एक साधक पर क्या असर पड़ता है आदि तमाम चीजों को पढ़ा। आशा है ऊपर दिया गया कंटेंट जरूर अच्छा लगा होगा। गुरु महाराज की दया सबको प्राप्त हो। जय गुरुदेव

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