Antar Drishti से क्या देख सुन सकते है? आँख के अन्दर का रास्ता

अंतर्दृष्टि (Antar Drishti) खुल सकती हैं यदि हमें पूर्ण महात्मा सुलभ रास्ता बताएँ, आंखों के अंदर से गया रास्ता, उस रास्ते से हम अंदर के लोको की संरचना देख सकते हैं। महात्मा अपने सत्संग के माध्यम से नामदान और भजन करने की प्रक्रिया बतलाते हैं। यदि कोई मानव उस प्रक्रिया को अपनाये तो निश्चय ही Antar Drishti खोल करके उस परमपिता प्रभु का दर्शन और दीदार कर सकता है। चलिए महात्माओं ने सत्संग के माध्यम से क्या बताया है जानते हैं;

Antar Drishti
Antar Drishti

अन्तर में वे सामने मिलते हैं (Antar Drishti Me)

अन्तरध्यान होकर के, दृष्टि जोड़ करके देखो तो वे सामने खड़े हैं। हमको भी इस बात के लिये कहते हैं। परन्तु जब गुरु के पास में गये तो विश्वास मिला। जब बाहर की आंखें खोलते थे तो देखते थे कि बाहर का जगत तो ऐसा है। लेकिन यह कैसे हो सकता है कि बड़े-बड़े ब्रह्माण्ड भी हैं।

यह हमको भी बात असम्भव मालूम होती थी। लेकिन गुरु ने दया करके अपने क्लास में बैठा करके इस विद्या को पढ़ाया और जब आँख खुली तो विश्वास हुआ कि वास्तव में गुरु है और उनकी रचना भी बहुत बड़ी है। यह विश्वास किसी को उसी अवस्था पर आता है।

लेकिन नहीं उनकी बातों पर मुझे पूरा विश्वास था। चाहे हमको उसमें कुछ हो या न हो पर उनके शब्दों के ऊपर विश्वास था और उसका परिणाम आज यह हुआ कि आज सही मालूम हो गया कि गुरु अन्तर में भी हैं और गुरु बाहर भी हैं।

नामदान लेने के दिन से वे अंग संग रहते हैं

तो साधना करने वाले इस पर कभी यह ख्याल न करें कि वह महात्माओं की वही शक्ति हमसे है जिस दिन से आकर उसने आपको उपदेश दिया है कि उसी दिन से वह आ करके साथ हो गई हैं। उसकी शक्ति आप कब पा सकते हो जब अन्तर में थोड़ा-सा घूम जाओ। यह रास्ता निकलने का है। बड़ा अच्छा आप को दूर बतलाया।

दोनों आँखों के बीच से रास्ता (Antar Drishti) गया हुआ है

ये दोनों आँखें मेहराव हैं ये दोनों आँख क्या हैं ये दोनों आँखें गिर्जागर और मस्जिद हैं, मन्दिर हैं। दोनों आँखों के दर्म्यान में एक रास्ता गया हुआ है, उस रास्ते से भगवान के यहाँ से हम आए हुए हैं। अगर ये दोनों आँखें बाहर की आप की बन्द हो जांय तो बाहर की दुनियाँ खत्म हो जायेगी और अगर तीसरी आँख (Antar Drishti) वह।

खुल जाये तो भगवान की सैरगाह में हम दाखिल हो जायेंगे। कितना अच्छा रास्ता है। अगर बैठ करके हम उसमें जाना चाहते हैं तो यह दरवाजा यह कपाट, वह फाटक है जिसमें हम प्रवेश हो जांय, दाखिल हो जांय तो इतने करीब भगवान का देश है, इतने निकट भगवान का देश है कि हम जल्दी से जल्दी जा सकते हैं।

अब तक हमको यह मार्ग नहीं मिला था

लेकिन अफसोस है कि वह मार्ग नहीं दिया गया। अफसोस है कि हमको नहीं मिला, जिसमें तुरन्त हम प्रवेश ह करके और भगवान की उस दुनियाँ में चले जाते और जहाँ जा करके हमको शान्ति मिल पाती। हम तलाश कर रहे हैं लेकिन हमको महात्मा कोई नहीं मिला।

आकाशवाणी सब के अन्दर आ रही

तो जो लोग इस रास्ते पर लगे हुए हैं जो लोग उस आकाशवाणी के रास्ते पर लगे हुए हैं, उनके घट-घट के अन्दर में आकाशवाणी उतर रही है। परमात्मा की आवाज घट-घट के अन्दर में हो रही है। परमात्मा का जहूर सबके घट में उतर रहा है। लेकिन यह है कि पास होते हुए हम अपने कामों में इतने व्यस्त रहे कि परमात्मा की सत्ता को नहीं समझ सके।

अन्दर में आवाज को सुनो

इसलिए जरा इधर से सुनकर के देख लो कि आवाज आ रही है वहाँ से कि नहीं आ रही है। जरा आँखें बन्द करके (Antar Drishti se) देखो किसी महात्मा की अनुमति ले करके उनकी सम्मति ले करके और बैठकर देखो कि हम उस दुनियाँ में दाखिल हो रहे हैं कि नहीं।

निष्कर्ष:

महानुभाव ऊपर दिए गए लेख के अनुसार आपने महात्माओं द्वारा बताए गए सत्संग को पढ़ा। जिसमें अपनी तीसरी आँख Antar Drishti से यह चमत्कार देख सकते हैं। जब हम इन आंखों को बंद करके गुरु के बताए हुए रास्ते पर चलेंगे तो निश्चय ही अंतर्दृष्टि से ऊपरी मंडलों की रचना देख सकते हैं। आशा है आपको यह लेख जरूर अच्छा लगा होगा जय गुरुदेव, मालिक की दया सब पर बनी रहे।

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